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सांपो की अनोखी दुनिया

  • सांप के काटने पर मरने वाले व्यक्ति अधिकतर व्यक्ति डर से मरते हैं-जहर से नहीं
  • सांप का जहर असल में उसकी लार का एक रूप होते हैं
  • सांप बहुत ही शर्मीले होते हैं और मनुष्य से दूर रहना ही पसंद करते हैं, जबकि मजबूरी में आक्रमण करते हैं
  • सांप के पाव नही होते फ़िर भी भाग सकते हैं, वृक्ष पर चढ़ सकते हैं, वहां से कूद सकते हैं और तैर भी सकते हैं कुछ सांप सीमित दूरी तक उड़ने की शक्ति भी रखते हैं
  • सांपो के बाहरी कान व पलके नहीं होती
  • कुछ मादा सांप अपने अंडो को वर्षो तक अपने पेट में सुरक्षित रख सकते हैं
  • कुछ जहरीले सांप वैसे तो जहरी ग्रन्थ से पैदा होते हैं और बचपन में भी जहरीले होते हैं
  • कुछ जहरीले सांपो की आँख और नाक के मध्य में एक छेद होता हैं जिसकी सहायता से वह गर्म खून वाले शिकार की पहचान कर लेते हैं

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पक्षी जो सिर्फ़ किताबो में हैं


दुनिया में भांति-भांति के रंग बिरंगे और खूबसूरत पक्षी हैं, लेकिन कई पक्षी ऐसे भी रहे हैं, जिन्हें हम अब केवल किताबो में ही देख सकते हैं, क्योंकि स्वार्थी मनुष्य की वजह से वे हमेशा हमेशा के लिए इस दुनिया से विलुप्त हो गए हैं प्राणीशास्त्र विलुप्त पक्षियों की श्रेणी में डोडो, माओ, रॉक जैसे पक्षियों को शामिल करते हैं इन पक्षियों के विषय में वैज्ञानिकों द्वारा दी गई जानकारियों का ब्यौरा बड़ा ही रोचक हैं

डोडो मारीशस में पाई जाने वाली एक भोली भाली और भारी भरकम चिडिया थी सन 1507 में जब पुर्तगाली इस द्वीप पर पहुंचे, तो इसका नाम डोडो रखा वास्तव में डोडो एक पुर्तगाली शब्द हैं, जिसका अर्थ होता हैं मूर्ख अपने नाम के अनुरूप डोडो व्यवहार करती थी वह शत्रुओ से से अपना बचाव नहीं कर पाती थी मूर्ख और सवभाव से आलसी इस पक्षी का पुर्तगाली आसानी से शिकार कर लेते थे इसलिए पुर्तगाली के मनपसंद व्यजनों में डोडो का मॉस मुख्य था

डोडो एक बड़े मुर्गे के आकार का पक्षी था, जिसका एक नहीं कई दुम होती थी रंग बिरंगे डोडो जब झुंड बनाकर लुढ़कते गिरते चलते थे, तो लोग उन्हें देखकर खूब हँसते थे कुछ प्राणीशास्त्रियो का मानना हैं कि पहले डोडो पक्षी भी उड़ना जानते रहे होंगे किंतु कुछ परिस्थितिजन्य कारणों से शायद वे उड़ना भूल गए हैं उनका आलसी स्वभाव और उस शक्ति का अभाव ही उनके विनाश का कारण बन गया, क्योंकि इन कारणों से वे आसानी से कुत्ते बिल्लियों के हाथ लग जाते थे इस तरह 1640 तक डोडो पूरी तरह से विलुप्त हो गए 1638 को इसे आखरी बार लन्दन में देखा गया, इसके बाद जीता जागता पक्षी इतिहास बन गया

विलुप्त होने वाले दूसरे पक्षियों में माओ भी एक हैं माओ पक्षी पहले न्यूजीलैंड की हरी भरी धरती पर बसते थे सोलहवी शताब्दी में जब मनुष्य के कदम इस धरती पर पड़े तो इन पक्षियों पर आफत आ पडी माओ कुछ कुछ मौजूद शतुरमुर्ग और एमु से मिलते जुलते थे माओ अपने विशाल आकार के कारण अपनी मजबूत टांगो के बल पर काफ़ी तेज़ गति से भाग सकते हैं पक्षियों में आपसी भाईचारे की भावना भी थी

तीसरी विलुप्त प्रजाति मेडागास्कर का रॉक पक्षी था, जिसकी उचाई १२ फीट तक होती थी यह पक्षी मेडागास्कर द्वीप के पक्षीराज कहलाते थे रॉक पक्षी को मेडागास्कर वासी इसे हाथी पक्षी भी कहते थे सुप्रसिद्ध मार्को पोलो ने इस पक्षी को मनुष्य के दुगने कद का बताया हैं मेडागास्कर की लोककथाओं में इस पक्षी का काफी वर्णन किया गया हैं कथाओ के अनुसार यह पक्षी पहले उड़ते थे यहाँ के निवासी इन्हे शैतान की आत्मा मानते थे और इनकी पूजा करते थे लेकिन मार्को पोलो के अनुसार यह पक्षी उड़ने में असमर्थ थे माना जाता हैं कि इस पक्षी का अंडा एक फीट तक लंबा होता था और उसमे दो गैलन तक पानी आ सकता था, यह प्रकति की अदभूत रचना थी

माओ, डोडो तथा रॉक तीनो पक्षी मनुष्य के क्रूर अत्याचारों की वजय से इस पृथ्वी से विलुप्त हो गए इन तीनो पक्षियों का आकार प्रकार के कारण प्रकृति में मुख्य स्थान हैं हलाँकि पक्षियों को कई और भी प्रजातिया विलुप्त हो गई हैं और कई ख़त्म होने की कगार पर हैं दुनिया में भाँती-भाँती के रंग बिरंगे और खूबसूरत पक्षी हैं, लेकिन कई पक्षी ऐसे भी रहे हैं, जिन्हें हम अब केवल किताबो में ही देख सकते हैं क्योंकि स्वार्थी मनुष्य की वजह से वे हमेशा के लिए इस दुनिया से विलुप्त हो गए हैं प्रानीशास्त्री के विषय में वैज्ञानिकों द्वारा दी गई जानकारी का ब्यौरा बड़ा ही रोचक हैं (मनमोहित ग्रोवर)

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जहां घर-घर बिच्छू हैं

हनुमानगढ़ः- जंगलों में हिसंक जानवर पंछी और जहरीले, जीव जंतुओं का होना एक साधारण बात है पर यह जानकर आश्चर्य होगा कि दुनिया में कुछ ऐसे ग्राम भी है, जहां घर घर में जहरीले जीव जंतुओं का बोलबाला है दक्षिणी अफ्रीका में जोहसटर नामी कस्बे में कई हजार घर हैं और इनमें पांच-पांच ईंच लंबे काले रंग के बिच्छुओं की भरभार है इन बिच्छुओं में काफी जहर रहता है जिस पत्थर या चट्टान के नीचे यह बिच्छु रहते हैं वह भी जहरीले हो जाते हैं यदि गल्ती से इन पत्थरों या चट्टानों पर कोई जानवर या पक्षी बैठ जाये, तो उसकी मृत्यु हो जाती है यहां के लोग इन बिच्छुओं से बचने के लिए अपने शरीर पर प्रतिदिन जडी बूटियों का लेप करते हैं और यह लेप पालतु जानवरो और पक्षियों पर भी किया जाता है ताकि उन पर कोई प्रभाव न पड़ेऐसे ही राजस्थान के गीजगढ़ नामी एक ग्राम में बड़ी संख्या में बिच्छु हैं- जोंकि घरों में तबाही मचाते है घर के बिस्तर, अलमारी, चुल्हा, घर के चौंक चबूतरे इत्यादि स्थानों पर यह बिच्छु चींटी मकोड़ों की तरह भारी संख्या में इधर उधर फुद्कते रहते हैं और यहां के लोग इनसे बचने के लिए ऊंचे स्थानों पर रहते है रात को सोते समय चारपाई के चारों पांव के नीचे पानी भरी थाली रखते हैं, ताकि बिच्छु पानी की मदद से चारपाई पर न आकर डंक मार सके आश्चर्यजनक बात यह भी है कि ग्राम में बड़ी संख्या में जहरीले सांप और गोहर भी है तथा इनमें से प्रतिदिन ८-१० गोहरे ५०-६० सांप और सैंकडों संख्या में बिच्छु मारे जाते हैं स्पेन के बोरिया ग्राम में पीले रंग के बिच्छुओं की भरमार हैं यहां के कुछ आदिवासी इन बिच्छुओं का जहर निकालकर नशीली दवाईयां भी बनाते हैं यहां के बिच्छुओं की एक विशेष पहचान है कि वह डंक मारने से पहले अपने मुंह् में इस प्रकार का संगीत पैदा करते हैं उतरी अमेरिका की सैडसन नामी बस्ती में खतरनाक जहरीले सांप और बिच्छु होते हैं यह सांप बिच्छु घरों में इस प्रकार आराम करते देखे जा सकत हैं- जैसे वह अपने बिल में आराम कर रहे है

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डाक व्यवस्था की शरुआत, कब और कैसे?

डाक व्यवस्था आज सारी दुनिया में प्रचलित हैं विदेशो में बैठे हुए हमारे मित्रो या संबंधियों के पत्र हमें कुछ ही दिनों में प्राप्त हो जाते हैं मुंबई, कलकत्ता या किसी दुसरे स्थान से लिखा गया पत्र भी हमें मात्र तीन दिनों में मिल जाता हैं यह सब डाक व्यवस्था का ही तोकमाल हैं हमारे द्बारा भेजे पत्रों को ले जाने का काम मोटर, रेलों, और हवाई जहाजों द्वारा किया जाता हैं एक स्थान से दूसरे स्थान तक पत्रों को ले जाने का कार्य हजारो लाखो लोग करते हैं

प्राचीन काल में संदेश भेजने का कार्य लोग निजी तौर पर किया करते हैं 16 वी शताब्दी में डाक व्यवस्था का कार्य सरकार ने अपने हाथो में ले लिया था इसके तीन प्रमुख कारण थे- पहला यह कि सरकार लोगो के संदेहपूर्ण संदेशो पर नज़र रखना चाहती थी दूसरा कारण डाक व्यवस्था देश के लिए धन इकठा करना था और तीसरा कारण जनता कि भलाई का था वर्तमान में जनता की सेवा ही डाक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य था

सन 1609 तक सरकार द्वारा नियुक्त किए गए विशेष संदेशवाहक ही पत्र ले जाने का काम करते थे सन 1680 में लन्दन के एक व्यापारी ने शहर व आस पास के इलाको में डाक वितरण हेतू अपनी डाक व्यवस्था शुरू की थी सन 1840 में इग्लैंड में डाक व्यवस्था का सारा ढांचा बदल गया इसी वर्ष डाक टिकटें जारी की गई और सारे देश के लिए दरें सम्मान कर दी इग्लैंड की इस व्यवस्था को अन्य देशो ने भी अपनाना शुरू कर दिया

वर्तमान दूनिया की सबसे बड़ी डाक सेवा अमेरिका की हैं किंतु बेहतर सूविधा के द्रष्टिकोण भारत की डाक व्यवस्था अमेरिका में श्रेष्ठ मानी जाती हैं

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