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वित्त विहीन शिक्षकों का दर्द

26 फरवरी 2010
प्रस्तुति:सत्यवीर सिंह, बिजनौर, प्रैसवार्ता
उत्तर-प्रदेश माध्यमिक शिक्षा की रीढ़ राज्य में चल रहें लगभग 14500 वित्त विहीन स्कूल हैं। सरकार इनकी ओर से ऑख बन्द किए हैं। 1986 में तत्कालीन सरकार नें शिक्षा प्रेमियों का आह्वान किया था कि वे अपनें संसाधनों से विद्यालय खोलें और बच्चों को शिक्षा प्रदान कर देश सेवा करें। सरकार के इस आह्वान पर राज्य के शिक्षा प्रेमियों नें खुले दिल से माध्यमिक स्कूल खोलें। तब से आज तक ये वित्त विहीन विद्यालय बिना किसी सरकारी मदद के शिक्षा देने का कार्य कर रहें हैं। वित्त विहीन विद्यालयों में कार्य करनें वालें शिक्षक समान काम समान वेतन के संवैधानिक अधिकार के लिए पिछले पॉच वषों से संघर्ष कर रहें हैं , लेकिन इनकी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं है। केन्द्र सरकार राष्ट्रीय माध्यमिक सर्व शिक्षा अभियान चला रही हैं लेकिन उ0प्र0 सरकार ने वित्त विहीन स्कूलों कों इस अभियान सें मिलनें वालें लाभों से बंचित करनें का निर्णय लिया हैं। यह फैसला इन स्कूलों एवं इनमें कार्य करनें वालें शिक्षकों के हितों पर कुठाराघत है। इसी संदर्भ में हजारों वित्त् विहीन शिक्षाकों नें 23 फरवरी 2010 कों जन्तर मन्तर पर धरना दिया। वित्त विहीन शिक्षको की मांगे थी कि वित्त विहीन शिक्षक माध्यमिक शिक्षा का 70 प्रतिशत कार्य वहन करतें हैं अतः राष्ट्रीय माध्यमिक सर्व शिक्षा अभियान के तहत मिलनें वाली धनराशि में से 70 प्रतिशत धन वित्त विहीन विद्यालयों को दिया जाय , इसके लिए केन्द्र सरकार , प्रदेश सरकार को स्पष्ट निर्देश दे। समान काम का समान वेतन दे। माध्यमिक सर्वशिक्षा अभियान के अंतर्गत 5 किमी में एक जूनियर हाई स्कूल को उच्चीकृत करनें के बजाय वित्त विहीन स्कूलों को अनुदान देकर बुनियादी आवश्यकताए पूरी की जाय। शिक्षाकों नें वित्त विहीन स्कूलों में कार्य करनें वालें अध्यापकों के आगे लगे अंशकालिक शिक्षक का शब्द हटा कर पूर्णकालिक शिक्षक का दर्जा दिये जाने की मांग भी की क्योंकि सभी शिक्षक विद्यालयों मं पूरे समय कार्य करतें हैं। लेिकन इसके बदलें उन्हें मात्र 500 सें 2000 के बीच वेतन मिलता है। ये शिक्षक विषय विशज्ञों की भॉती तथा उनके बराबर मानदेय के लिए भी संघर्षरत हैं।

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