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ऋषि-मुनियों की तपस्थली के नाम से जाना जाता है ऋषिकेश

30 दिसंबर 2009
ऋषिकेश(सिटीकिंग) ऋषिकेश का नाम भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में जाना जाता है। ऋषिकेश पूर्व में हषिकेश के नाम से जाना जाता था। ऋषिकेश का इतिहास पौराणिक ग्रंथों में आज भी पढऩे को मिलता है। ऋषिकेश ऋषि-मुनियों की तपस्थलियों के नाम से भी जाना जाता है, जहां आज भी ऋषिमुनि गंगा तट के किनारे तप कर कई सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। ऋषिकेश की सीमा चार जिलों से घिरी हुई है जिनमें पौड़ी, नई टिहरी, हरिद्वार व देहरादून शामिल हैं। यहीं से विश्व प्रसिद्ध चारधाम श्री बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री सहित हेमकुण्ट साहिब की यात्रा शुरू होती है। ऋषिकेश में पौराणिक भारत भगवान का मंदिर, भैरो मंदिर, काली मंदिर, चन्द्रशेखर सिद्धपीठ, नीलकंठ महादेव सोमेश्वर महादेव, वीरभद्र महादेव व सिद्धपीठ हनुमान जी की आज भी देश एवं विदेश से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है, जिससे देश-विदेशों में प्रतिवर्ष कई लाखों की संख्या श्रद्धालु इन सिद्धपीठों के दर्शन कर पुण्य कमाते हैं। वहीं ऋषिकेश में मनोकामना सिद्ध मां गंगा की अविरल धारा बहकर गंगा सागर तक पहुंचती है, जिसमें प्रतिदिन लाखों की संख्या में लोग स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं। ऋषिकेश में रामझूला लक्ष्मण झूला, गीता भवन, परमार्थ निकेतन, 13 मंजिल मंदिर सहित अन्य रमणीक स्थलों पर लाखों की संख्या में देश-विदेश पर्यटक दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। तीन माह बाद हरिद्वार-ऋषिकेश में महाकुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है, जिसमें करीब 15 से 20 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना है, श्रद्धालु महाकुंभ में हरिद्वार हरकी पैड़ी पर स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं। कहा जाता है कि हरकी पैड़ी पर समुद्र मंथन के समय जब देवगणों और राक्षसों को अमृत बंट रहा था, तब कुछ अमृत हरकी पैड़ी पर बह रही गंगा की अविरल धारा में गि गया था, जिसके कारण हरकी पैड़ी इस विशेष स्थान पर स्नान करने से श्रद्धालु पुण्य अर्जित करते हैं। ऋषिकेश से करीब 15 किमी. नीलकंठ महादेव का सिद्ध मंदिर भी है, जहां पर सावन के माह में लोग लाखों की संख्या में पहुंचकर शिवलिंग पर जल चढ़ाकर पुण्य लाभ कमाते हैं। कहा जाता है कि महादेव ने जब विष धारण कर लिया था तो वह नीलकंठ पर्वत पर आकर तपस्या करने लगे, इसीलिए इस मंदिर को नीलकंठ महादेव के नाम से जाना जाता है। नीलकंठ महादेव में अब तो बारहों महीने ही श्रद्धालु शिवलिंग पर जल चढ़ाकर दर्शन करने आते हैं, लेकिन सावन के महीने में नीलकंठ महादेव पर जल चढ़ाने का पुण्य लाभ अधिक मिलता है। ऋषिकेश में स्थित त्रिवेणी घाट पर गंगा-यमुना-सरस्वती का संगम भी होता है जिसे देखने के लिए देश-विदेशों से लाखों की संख्या में पर्यटक पहुंचकर आनंद उठाते हैं, त्रिवेणी घट पर इस संगम का अद्भुत नजारा पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है। वहीं मां गंगा तट के किनारे शाम के समय जब श्री गंगा सेवा समिति द्वारा आरती की जाती है तो मां गंगा के जंगल के तटीय क्षेत्र में हिरन, मोर, हाथियों का झुंड आकर गंगा जल ग्रहण करता है व मां गंगा की हो रही आरती का अनुभव महसूस करता है। यह नजारा देख पर्यटक मुग्ध हो जाते हैं और मां गंगा को प्रणाम करते हैं।

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