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हरियाणा बढ़ता जल संकट एक खतरा

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) जल ही जीवन हैं पानी बचाईये, जैसे नारे हरियाणा की दीवारों पर पोस्टर बनकर चिपके देखे जा सकते हैं, परन्तु यह सत्यता हैं कि राज्य का 60% भूमिगत जल पीने योग्य नही हैं भूमिगत जल का स्तर दिन प्रतिदिन खतरनाक ढंग से निचे गिर रहा हैं, परन्तु इससे बेखबर राज्य का सरकारी तंत्र योजनाये बनाकर सरकारी फाइलों की शोभा बढ़ने में अधिक विश्वास रखता दिखाई देता हैं परिणामस्वरूप पीने लायक पानी के प्राकृतिक भण्डार का 80% दोहन हो चुका हैं इस दोहन का परिणाम अर्थ व्यवस्था पर सीधे पड़ेगा, क्योंकि हमारा देश कृषि प्रधान देश हैं वर्त्तमान में भी 70% आबादी ग्रामो में रहती हैं और कृषि से जुड़े व्यवसाय करती हैं यह स्थिति रही तो इसका सीधा असर कृषि पर पडेगा प्रेसवार्ता को मिली जानकारी के अनुसार केन्द्रीय भूजल बोर्ड ने अपने सर्वे में कहा हैं कि हरियाणा प्रदेश में ऐसे 55 क्षेत्र हैं, जहां पर भूजल लगातार गिर रहा हैं जो कि चिंता का विषय हैं करनाल, कैथल, कुरुक्षेत्र, अम्बाला, यमुनानगर, पानीपत, सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, भिवानी तथा महेंद्रगढ़ जिलो में किसानो ने सीचे के लिए नलकूपों पर उच्च क्षमता की मोटर लगा राखी हैं, ऐसी स्थति में भूमिगत जल का दोहन अधिक होता हैं

इस दोहन को रोकने के लिए इस क्षेत्रो में सरकारी योजनाए किसान जल की क्षति को रोकने में विफल रहीं हैं गहराते जल संकट में कम समय में पैदा होने वाली फसलों की भूमिका महत्वपूर्ण हैं हमारे देश में स्वतंत्रता प्राप्ति उपरांत कृषि वैज्ञानिकों के अथक प्रयास से उन्नत किस्मों के बीजों का विकास हुआ, जिसमे साठी धान भी हैं, जो करीब 60 दिनों में तैयार हो जाता हैं, लेकिन इसका एक भयावह दुष्परिणाम भी हैं, जिसका खुलासा हुआ हैं साठी धान के एक किलोग्राम के उत्पादन में लगभग 500 लीटर पानी खर्च होता हैं, जो सामान्य धान की फसल से अधिक होता हैं गौरतलब हैं की समस्या के समाधान हेतु यदि कृषक साठी धान की बजाये दलहन फसल को बढावा दे, तो समाधान हो सकता हैं कृषि शोध के मुताबिक दलहन फसलो में पानी की जरूरत धन व गेहू की तुलना में कम होती हैं, इससे भी भूजल को सरक्षण मिलता हैं भूजल की कमी से खेत की मिटटी की उर्वरा शक्ति का भी हास होता हैं दलहन की खेती करने से भूमि की उर्वरा शक्ति का विकास धीरे धीरे होता हैं, जो पर्यावरण व भूजल सरक्षण के लिए उपयोगी हैं

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