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उम्र की दहलीज पार करने के बाद स्त्री

हर नारी के जीवन में एक बसंत ऋतु आती है, पतझड़ का संदेश लेकर। तब नारी का जननी रूप तिरोहित होने लगता है। और उसके भीतर दवि उभरती है। एक प्रौढवंय माता की विज्ञान की भाषा में इसे रजोनिवृति कहते है। उम्र की इस दहलीज को पार करने के बाद नारी गर्भ धारण करने में असमर्थ हो जाती है। इसे लगता है कि जैसे प्रकृति ने उसका समस्त आकर्षण एक बारगी छीन लिया हो। रजोनिवृति की दशा में अंडाशय में अंणाणु का निर्माण बंद हो जाता है और महिलाएं चाह कर भी गर्भ धारण नहीं कर सकती। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि राजनेनिवृति के लिए जिम्मेवार है एस्ट्रोजेन नामक हार्मोन के स्राव में होने वाली कमी पिछले दशक तक यह माना जाता था कि एस्ट्रोजेन केवल एक मादा जनन हार्मोन है, जो यौन उतकों, मुख्य रूप से हाइपोथैमेलेस, बाहरी प्रमस्तिष्क, स्तन ग्रंथियों, गभ्राश्य, यौन आदि को हि नियप्त्रित करता है। पर नवीनतम शोध निष्कर्षों से पता चलता है कि एस्ट्रोजेन भले ही मुख्य रूप से एक जनन हार्मोन हो, पर उसके कार्यक्षेत्र में बहुतेरी गतिविधियां आती है, उदाहरण के लिए मूत्र-विसर्जन, पोषक तत्व का अवशोषण एवं उपापचय अस्थि एवं खनिज उपापचय, रक्तचाप एवं हृदय की कार्यप्रणाली याद्दाशत एवं सज्ञानता, जीवन में एक अंतनिहित एक खाय लय एवं लत आदि एस्टोजेन के ही प्रभाव क्षेत्र में होने वाली कमी ने केवल मादा जननतन्त्र के समाथर्य का अपहरण कर लेते है, बल्कि शरीर क्रिया प्रणाली की व्यापक रूप से प्रभावित भी करती है। रजोनिवृति के उपरांत न तो अंडाशय में अंडाणु बनते है, न ही एस्ट0हायल या प्रोजेस्टरॉन का संश£ेषण ही होता है। इनिहिबिन ग्लाईको प्रोटीन भी रक्त से गायब होने लगता है। शरीर में होने वाले परिवर्तन को भापॅकर बाह्य प्रमस्तिष्क ग्रंथियां हरकत में आती है तथा फॉलिकिल स्टिमुलेटिंग हार्मोन एवं ल्युटिनाईजिंग हार्मोन का भरपूर स्राव होने लगता है। यही कारण है कि 40-50 के की उम्र में, जब मासिक स्राव जारी रहता है, फॉलिकिल स्टिमुलेटिंग हार्मोन का स्राव बढ़ जाता है, ल्युटिनाईजिंग हार्मोन का चिकित्सा जगत में यह धारण प्रचलित रही है कि रजोनिवृति अंडाशय के अंडाणु के अंडाणु उत्पादन क्षमता के चुक जाने का परिणाम पात्र है। पर अब वैज्ञानिकों के बीच यह विवाद का विषय है कि रजोनिवृति को आमंत्रण देने में अंडाशय एवं हाइपोथेनेमस पीयूष ग्रंथियों की जिम्मेवारी कितनी है। चिकित्सा विज्ञानियों का एक वर्ग कहता है कि रजानिवृति उसके बाद होने वाले मानसिक उतार-चढ़ाव अंडाशय में होने वाले परिवर्तन के परिणाम मात्र है। पर वैज्ञानिकों का दूसरा वर्ग मानता है कि रजोनिवृति केन्द्रीय सा्रयुतंत्र में होने वाले परिवर्तन का परिणाम है। यही परिवर्तन नारी के गर्भ धारण करने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। चाहे जो भी हो, रजोनिवृति नारी के जीवन में एक नया मोड़ लेकर आती है। उसके शरीर में परिवर्तन का एक चक्र शुरू हो जाता है। इस समय वह भावना के एक झंावत में फंसी होती है। कभी उसे अपनी स्वरूप दिव्य एवं उज्जाला नजर आता है तो कभी अपने को लुष्ठिता से अधिक आंकती इस अवस्था में महिलाएं चिड़चिड़ी हो जाती है, ईष्यार्लु हो जाती है। आमतौर से महिलाओं में से परिवर्तन रजोनिवृति की शुरूआती दौर में ही परिलक्षित होते है, पर कुछेक स्ऋियों की तो यह जीवन पद्धति ही बन जाती है। रजोनिवृति को टालने के अनेक प्रयास किए गए है। कभी एस्ट्रोजेन को सेवन कराकर तो कभी विटामिन की गोलियां पकड़ा कर। पर अभी तक इसमें कोई कामयाबी नहीं मिली है। -मनमोहित ग्रोवर (प्रैसवार्ता)

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