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कोई बुरी लत नहीं होने से रफी को मिले थे अमर गीत

नई दिल्ली(प्रैसवार्ता) 'मन तड़पत हरि दर्शन को और ओ दुनिया के रखवाले जैसे गीतों को अपनी मखमली आवाज से अमर बनाने वाले मोहम्मद रफी को दरअसल ये गीत उनके निव्र्यसनी होने की वजह से मिले थे और आज भी नए गायकों के लिए ये गीत प्रतिभा की असल कसौटी बने हुए हैं। मशहूर संगीतकार नौशाद अपने अधिकतम गीत तलत महमूद से गवाते थे। एक बार उन्होंने रिकार्डिंग के दौरान तलत महमूद को सिगरेट पीते देख लिया था। इससे चिढ़कर उन्होंने फिल्म बैजू बावरा के लिए मोहम्मद रफी को साइन कर लिया। रफी के बारे में माना जाता था कि वह कट्टर मुसलमान थे और सिगरेट शराब तथा किसी भी तरह के नशे से दूर ही रहा करते थे। इन गीतों ने मोहम्मद रफी को और प्रसिद्ध बना दिया और उनकी गायकी ने नौशाद पर ऐसा जादू किया कि वह उनके पसंदीदा गायक बन गए। इसके बाद नौशाद ने लगभग सभी गानों के लिए मोहम्मद रफी को बुलाया। रफी ने नौशाद के लिए 149 गाने गाए हैं जिनमें से 81 गाने उन्होंने अकेले गाए हैं। नौशाद शुरू में रफी से कोरस गाने गवाते थे। गीतों के जादूगर ने नौशाद के लिए पहला गाना ए आर करदार की फिल्म पहले आप (1944) के लिए गाया था। इसी समय उन्होंने कि गांव की 'गोरी' फिल्म के लिए अजी दिल हो काबू में नामक गाना गाया। मोहम्मद रफी इस गाने को हिंदी भाषा की फिल्मों के लिए अपना पहला गाना मानते थे। सुरों के बेताज बादशाह रफी को 1960 में चौदहवीं का चांद हो या गाने के लिए पहली बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था। उन्हें 1968 में 'बाबुल की दुआएं लेती जा' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था। इन दोनों का संगीत रवि ने दिया था। रफी को सर्वश्रेष्इ पाश्र्च गायक का फिल्मफेयर पुरस्कार छह बार मिला। इसके अलावा उन्हें दो बार सर्वश्रेष्ठ पाश्र्चगायक के राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 1950 और 1960 के दशक में मोहम्मद रफी कई संगीतकारों के पंसदीदा गायक बन गए। इनमें ओ.पी. नैयर शंकर जयकिशन तथा सचिनदेव बर्मन मुख्य हैं। एस डी बर्मन ने 50 और 60 के दशक में रफी को एक समय देवानंद की आवाज बना दिया था। ' दिन ढल जाए', तेरे मेरे सपने, या हर फिक्र को धुंए में उड़ाता, जैसे गीतों को कौन भूल सकता है। ओ.पी. नैयर तो रफी से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने गायक तथा अभिनेता किशोर कुमार की फिल्म 'रागिनी' के लिए मोहम्मद रफी से मन मोरा बावरा नामक गाना गवाया। इसके बाद रफी किशोर कुमार के लिए कई अन्य फिल्मों में भी गाने गाए। नैयर ने रफी से 97 गाने गवाए। इनमें से रफी ने 56 गाने अकेले गाए हैं। इनमें नया दौर 'तुमसा नहीं देखा' तथा कश्मीर की कली नामक हिट फिल्में और उनके हिट गीत शामिल हैं। शंकर जयकिशन के सबसे पसंदीदा गायक बन चुके मोहम्मद रफी ने उनके लिए 341 गाने गाए। इन गानों में से 216 ऐसे गाने थे जिन्हें रफी ने अकेले गाया था। रफी के बारे में एक दिलचस्प वाकया है जब वह अपने भाई हमीद के साथ एक बार के एल सहगल के कार्यक्रम में शिरकत करने गए थे। बत्ती चले जाने के बाद सहगल ने कार्यक्रम में गाने से इनकार कर दिया। इसके बाद इनके भाई हमीद ने आयोजकों को कहा कि उनका भाई इस कार्यक्रम में गाकर भीड़ को शांत करा सकता है। बालक रफी (13) का यह पहला सार्वजनिक कार्यक्रम था। इसके बाद उन्होंने बुलंदियों की राह पकड़ी और गीतों के बेताज बादशाह बन गए। लाहौर रेडियो स्टेशन से उनके लिए स्थाई गायक का भी प्रस्ताव आया था। मोहम्मद रफी ने 11 भारतीय भाषाओं में तरकीबन 28 हजार गाने गाए। रफी के प्रशंसकों का मानना है कि उन्होंने 28 हजार से अधिक गाने गाए हैं। एक अनुमान के मुताबिक इनमें से चार हजार 516 हिंदी गाने हैं। सुरों का पर्याय बन चुका यह कलाकार आज ही के दिन हमें छोड़ कर सदा के लिए चला गया। उनके बारे में किसी गीतकार ने ठीक ही लिखा है, न फनकार तुझसा तेरे बाद आया, मुहम्मद रफी तू बहुत यादा आया।

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