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कच्ची शराब के गोरख धंधे में सिरसा नंबर वन

सिरसा(सिटीकिंग)हरियाणा राज्य का जिला सिरसा कच्ची शराब के गौरखधंधे में नम्बर वन बनता जा रहा है, जिस कारण न सिर्फ राज्य सरकार को राजस्व की क्षति हो रही है, वहीं कच्ची शराब के सेवन से लोगों में कई प्रकार की जानलेवा बीमारियां भी उत्पन्न हो रही हैं। प्रैसवार्ता द्वारा एकत्रित की जानकारी के अनुसार जिला सिरसा के समस्त 333 ग्रामों में न सिर्फ कच्ची शराब का लोग सेवन करते हैं-बल्कि कच्ची शराब तैयार भी करते हैं। ''दूध-दही की नदियां'' बहाने वाले हरियाणा राज्य के इस जिला में कच्ची शराब की नदियां बह रही हैं। कच्ची शराब का धंधा इस कद्र तेजी पकड़ रहा है, कि समय रहते हुए पुलिस प्रशासन व आबकारी विभाग द्वारा इस पर अंकुश न लगाया गया, तो यह गोरख धंधा एक व्यापार का रूप धारण कर लेगा। जिलाभर में करीब बीस हजार लीटर कच्ची शराब तैयार होकर बिकती व प्रयोग होती है, जिससे राजस्व की काफी आर्थिक क्षति होती है। जिले की घग्घर बैल्ट के अधीन पडऩे वाले ज्यादातर ग्रामों में कच्ची शराब का कारोबार अपनी जड़े जमा चुका है। ग्राम ख्योवाली, ओटू, थेड़ी मोहर सिंह, करीवाला, केलनियां, दड़बा, बुढ़ाभाणा, बप्पां, कुत्ताबढ़, अहमदपुर, ढाणी, सुखचैन, लकड़ांवाली, फग्गू, भंगू, केवल, दादू, तिलोकेवाला, झिडी, सिकंदरपुर, हांडीखेड़ा, दड़बी, रसूलपुर थेड़ी, जसानिया, शकर मंदौरी पीली मंदोरी, माखो सरानी, जोगीवाला, चाहरवाला, जमाल, बरासरी, रूपाणा, रूपावास, निरबाण, मानकदिवान व कागदाना समेत 150 से अधिक ग्रामों में कच्ची शराब का कारोबार चलता है। कच्ची शराब का कारोबार करने वाले एक सौदागर ने प्रैसवार्ता को बताया कि करीब दो दशक पूर्व राजस्थान की एक जाति विशेष द्वारा कच्ची शराब का नुस्खा कई ग्रामों में दिया गया था, जो अब जिला भर के हर ग्राम में पहुंच चुका है। राजस्थान की इस विशेष जाति का कच्ची शराब निकालना पुश्तैनी धंधा है। दिलचस्प यह भी है कि जहां बहुत से लोग मुनाफा कमाने के लिए इस धंधे से जुड़े हुए हैं, वहीं अपने शौक के लिए बड़े-बड़े जमींदार/अमीर लोग भी कच्ची शराब तैयार करवाते हैं। कच्ची शराब तैयार करने वालों की जिला भर में, जहां संख्या बढ़ रही है, वहीं कच्ची शराब का सेवन करने वाले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। इस कारण शराब के ठेकेदार को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
कैसे निकलती है कच्ची शराब: कच्ची शराब निकालने के माहिर एक व्यक्ति ने प्रैसवार्ता को बताया कि सबसे पहले एक ड्रम में 5 लीटर पानी व एक किलोग्राम गुड़ डाला जाता है और फिर उसे मिट्टी या तूड़ी में दबाते हैं। गर्मी के कारण उससे खमीर तैयार होने पर ड्रम को अग्रि भी के ऊपर रख दिया जाता है, जिसके बाद ड्रम में छेद कर उसमें प्लेट लगाकर एक पाईप निकाल कर ड्रम पर परात जैसा बर्तन रख दिया जाता है। पाईन का सिरा चूंकि ड्रम के बाहर रखा जाता है, जिसके आगे बोतल या कोई बर्तन रख दिया जाता है। अग्रि के सेक से भाप बनने उपरांत बूंद के रूप में बर्तन में टपकरना शुरू हो जाता है। इस नुस्खे से तैयार पहली बोतल काफी तेज होती है, इसे क्षेत्रिय भाषा में पहले तोड़ की दारू कहा जाता है। इस प्रकार कच्ची शराब का सेवन ग्रामीण स्तर से निकल कर शहरी क्षेत्रों की तरह बढऩे लगा है और सस्ती होने के कारण शहरी क्षेत्रों में शराब का सेवन करने वालों की निरंतर संख्या बढ़ती दिखाई देने लगी है।

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