सिटीकिंग परिवार में आपका हार्दिक स्वागत है। सिटीकिंग परिवार आपका अपना परिवार है इसमें आप अपनी गजलें, कविताएं, लेख, समाचार नि:शुल्क प्रकाशित करवा सकते है तथा विज्ञापन का प्रचार कम से कम शुल्क में संपूर्ण विश्व में करवा सकते है। हर प्रकार के लेख, गजलें, कविताएं, समाचार, विज्ञापन प्रकाशित करवाने हेतु आप 098126-19292 पर संपर्क करे सकते है।

BREAKING NEWS:

वर्तमान समाज और नारी

शिक्षा और आधुनिक सभ्यता द्वारा नारी चाहे जितना स्वतंत्र और विकसित हो चुकी है, लेकिन स्वतंत्र समाज का दृष्टिकोण आज भी स्त्री के लिए हेय और शंकालु रहा है। उसके जीवन के प्रत्येक मोड़ पर हर पग पर समाज की तीखी प्रक्रिया और नुकीली नजरें रहती हैं। समाज में कां के अलावा स्त्री की कोई भी भूमिका सम्माननीय नहीं मानी जाती। प्रसिद्ध राष्ट्र कवि मै शिलीशरण गुप्त द्वारा लिखित निक्त पंक्तियां- ''अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी।'' आज भी सत्या साबित हो रही है, क्योंकि जिस समाज में 75 प्रतिशत नारी अशिक्षित या केवल साक्षर हो वहां नारी के स्वतंत्र या खुशहाल होने की कामना हम कैसे कर सकते हैं। नारी की निरक्षरता या मात्र साक्षरता से आर्थिक परालम्बता के कारण पुरूष के अधीन रहती है। आर्थिक स्वतंत्रता के अभाव में तथा अपने अधिकारों अनशिक्षता के कारण उसका जीवन नरकीय हो जाता है, जबकि नारी विकास के रथ का एक महत्वपूर्ण पहिया है। आज नारी अपने आर्थिक स्वालम्बन के लिए छटपटाती है। श्रम पर विश्वास होने के कारण उसमें एक अदम्य विश्वास है, इसलिए हर महत्वकांक्षी युवती अपनी प्रगति और मुक्ति के लिए संघर्ष कर रही है। आज की प्रबुद्ध नारी लगातार सामाजिक मान्यताओं और भेदभाव को बढ़ाने के लिए प्रयासरत है वह प्रतिद्वन्दिता और परस्पर दोषारोपण से मुक्त होना चाहती है। अपनी सामाजिक स्थिति में सुधार के लिए अपना आत्म-विशेषण करना चाहती है। भीतर-भीतर सुलगते यह प्रश्र नारी के निजी अस्तित्व और अस्मिता को चुनौती देते हैं और फिर अपने अधिकारों के लिए प्रेरित करते हैं। यह सत्य है कि वर्तमान स्थितियां तेजी से बदल रही हैं, लेकिन पुरूष का दृष्टिकोण लगभग अपरिवर्तित है। आधुनिकता के नये दबावों ने स्त्री की स्थिति को कुछ अधिक जटिल बना दिया है। आज हम जिस मुकाम पर खड़े हैं उसके आगे सामती जड़ता और उपभोक्तावादी मोह की अंधी गली है साथ ही स्त्री की नियति पूरे समाज की नियति के साथ गुंथी हुई है। एक छोटा सा दायरा मध्य व उच्चवर्ग में मुक्त होती स्त्रियों का जरुर है, लेकिन वह दलित जातियों के आरक्षण की तरह है। इस स्थिति में स्त्री जाति की मुक्ति बहुत दूर है। वर्तमान समाज ने क्या स्त्री क्या पुरूष सबको अंधे स्वार्थ ने अपने बाहुपाश में जकड़ लिया है, इसलिए मानवीय मूल्यों का विघटन तेजी से हो रहा है। हमारी सांस्कृतिक मान्यताएं छिन्न-भिन्न हो रही हैं। ऐसे में राष्ट्र के विकास के लिए समाज को सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है। आज के आधुनिक समाज और समकालीन महानगरी परिवेश ने नारी के अंदर एक चेतना जागृत की है वह पुरूष के कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहती है। शिक्षा, राजनीति, नौकरी सबमें पुरूषों की बराबर की हिस्सेदार है। आज की नारी पुरानी रूढि़वादी मान्यताओं को तोड़कर आगे बढऩा चाहती है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली शहरीकरण, आद्यौगिकीकरण ने नारी को स्वतंत्र जीवन-यापन के नये आयाम प्रदान किये हैं, किंतु वही उसके सामने विभिन्न प्रकार की समस्यायें भी खड़ी हो गयी हैं। जेसे-दाम्पत्य संबंधों का टूटना संयुक्त परिवार का अंत तथा कामकाजी महिला का भावात्मक संघर्ष आदि। कुछ हद तक नारी की इस दयनीय स्थिति के लिए नारी ही जिम्मेदार ठहरती है और खुद नारी होकर नारी का शोषण करती है। पुरानी मान्यताओं को बरकरार रखना चाहती है, अपने को पुरूष से नीचा दर्जा देती है। नारी मुक्ति आंदोलन से प्रेरित वह आत्म-निर्भर, स्वयं समर्थ तथा पुरूष प्रधान समाज के लिए एक चुनौती बन गयी है। आज के कथाकार ने अपनी सीमाओं और संस्कारों के साथ नारी शक्ति उसकी विवशताएं और दयनीयता को कथा साहित्य में स्थान मिला। समाज में नारी चेतना को लेकर हमारी समानातंर महिला लेखिकाओं ने साहित्य जगत में धूम मचा दिया है। नारी जीवन का कटु विम्ब मालती जोशी, दीप्ती खण्डेलवाल, मेहरून्निसा, परवेज, शिवसी आदि की कहानियों में देखने को मिलता है। समाज के विघटित होते मानवीय मूल्यों को जिंदा रखने के लिए सही मार्ग-दर्शन की आवश्यकता है इसके लिए स्त्री का शिक्षित होना अति आवश्यक है, क्योंकि स्त्री की शिक्षा, सुरक्षा और जागरुकता से ही समाज को दिशा मिल सकती है।-नेहा तिवारी ''सौम्या''(प्रैसवार्ता)

Post a Comment