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सिरसा में गायकी पर बेववार्ता कार्यक्रम आयोजित

16 फरवरी 2010
प्रस्तुति: मनमोहित ग्रोवर, जसप्रीत सिंह
गायकी में कामयाबी के लिए कतई आवश्यक नहीं कि लचर व द्विअर्थी गीतों का सहारा लिया जाए या फिर वीडियो एलबम में फूहड़ता भरे दृश्य परोसे ही जाएं। ऐसे छोटे-बड़े कलाकारों की संख्या बहुत है जिन्होंने कभी गुणवत्ता के मामले में कोई समझौता नहीं किया। यह कहना है जानी-मानी पंजाबी लोक गायिका शमां लवली का। लेडी गुरदास मान और जट्टी पंजाब दी के खिताब से नवाजी जा चुकी शमां का कहना है कि उन्होंने कभी इस मामले में किसी लालच के सामने घुटने नहीं टेके। बकौल शमां कलाकार को अपनी कला पर भरोसा हो तो ही वह लचरता के खिलाफ अड़ कर खड़ा हो सकता है। शमां लवली चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो स्टेशन पर हैलो सिरसा कार्यक्रम में केंद्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान से बातचीत कर रही थीं। शमां कहती है कि लचरता का इलाज काफी हद तक संगीत प्रेमियों के हाथ में भी है और वे हल्के स्तर के संगीत को खरीदना व सुनना बंद कर दें तो ऐसे संगीत को परोसने वाले स्वयं अपना रास्ता बदल लेंगे। उन्होंने गायकों का आवाहन किया कि वे गायकी में फूहड़ता के खिलाफ स्वयं भी खड़े हों। प्रस्तुत है इस बातचीत के संपादित अंश:
आपका गायन की ओर रुझान कैसे हुआ?
गायकी की कला खुदा की देन होती है। मुझे शुरू से ही गायन का शौंक था और मैं स्कूल में सभी गायन प्रतियोगिताओं में भाग लेती थी। मैं हर प्रतियोगिता में जीत के निश्चय से भाग लेती थी। उस समय मैने एक राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में जीत हासिल की। उसके पश्चात मुझे उस समय के प्रसिद्ध कलाकारों के सम्मुख गाने का अवसर प्राप्त हुआ, जिससे मुझे प्रोत्साहन मिला। चूंकि मैं हाकी की अच्छी खिलाड़ी थी और मेरे पिता खेलों के दम पर मुझे आला पुलिस अधिकारी बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने मुझे संगीत की डगर पर बढऩे से रोक दिया। संगीत के प्रति मेरी लगन और प्रतिभा को मेरे पति निशान सिंह राठौर ने बखूबी समझा और मुझे इस मामले में कुछ कर दिखाने का मौका दिया। मै अभिभावकों से कहना चाहती हूं कि वे अपने बच्चों पर अपने सपने लादने के बजाय बच्चों की अपनी रुचि के क्षेत्र में कॅरियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करें।
संगीत के नाम पर फूहड़ता परोसी जा रही है। आपकी क्या राय है?
कुछ गायक द्विअर्थी व लचर गायकी का सहारा लेकर रातों -रात शिखर पर पहुंचना चाहते है। इस प्रकार की गायकी का समाज पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। मगर मेरा मानना है कि ऐसी गायकी का सफर बहुत लंबा नहीं होता। स्वच्छ गायकी के सिरमौर गायकों में गुरदास मान व हंस राज हंस जैसी शख्सियतों की गिनती होती है। ये लोग बगैर फूहड़ता और लचरता के जन जन के प्रिय हैं। अभिप्राय यह है कि कामयाबी के लिए लचरता का आसरा लेने की आवश्यकता कतई नहीं है।
आपके प्रशंसक आपको हिंदी में भी सुनना चाहते हैं। इस बारे में क्या सोचती हैं आप?
मैंने शुरुआत हिंदी से ही की थी। मगर जब से व्यावसायिक गायन प्रारंभ किया तब से पंजाबी गा रही हूं। अब तक के मेरे तमाम एलबम पंजाबी में ही हैं। मगर बहुत जल्द मेरा पहला हिंदी एलबम संगीत प्रेमियों की खिदमत में पेश होगा। मैने उस पर काम प्रारंभ कर दिया है।

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