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संगीत का सिरसा शहर से बहुत पुराना नाता

19 मार्च 2010
ज के नये कलाकार न तो संगीत की पूरी शिक्षा लेते हैं और न ही निरंतर रियाज़ करते है। वे सिर्फ एलबम निकाल कर रातों रात ही विख्यात होने के स्वप्न लेते हैं। इसलिए वे अपनी संगीत वीडियों में अश्लील दृश्य डालने से भी परहेज नही करते। इस प्रकार के गाने एक बार तो श्रोताओं के मन को भाते है परन्तु थोडे समय के बाद उन गानों को भूला दिया जाता है। दूसरी और अगर पुराने गीतों की बात करें तो आज भी उन्हें उसी ललक के साथ सुना जाता है। क्योंकि उनका जुडाव मनोरंजन के अतिरिक्त हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं से भी होता है। यह कहना है गायन, वादन व नृत्य के शिक्षक महेश शर्मा का। जोकि सी.डी. एल.यू. के समुदायिक रेडियो स्टेशन के कार्यक्रम हैलो सिरसा में एम ए की छात्रा अपराजिता के साथ संगीत के विभिन्न पक्षों पर बातचीत कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि समाज को दलदल में जाने से रोकने के लिए हमें युवाओं को जागरूक करना होगा।
पेश है इस वार्तालाप के अंश:
सिरसा में संगीत की स्थिति को आप कैसे देखते हैं?
संगीत की बात करें तो इस शहर का संगीत से बहुत पुराना संबंध रहा है। तारा नगर निवासी स्व. मोती लाल शर्मा ने सिरसा में शास्त्रीय संगीत की आधारशिला रखी थी। उस समय सिरसा में शास्त्रीय संगीत का बहुत ज्यादा प्रचलन था। उन दिनों कलकत्ता में भी कोई नया कलाकार तैयार होता तो उसे यही कहा जाता था कि पहले अपनी कला का प्रदर्शन सिरसा के संगीत प्रेमियों के समक्ष करे। सिरसा वासियों को यदि किसी की प्रस्तुति पसंद आती तो उसे निपुण कलाकार माना जाता सिरसा धार्मिक और सांस्कतिक के साथ-साथ कला प्रेमियों की नगरी भी है। आज भी शास्त्रीय संगीत के संबंध में सिरसा अन्य शहरों से बहुत आगे है। आज की युवा पीढी को भी शास्त्रीय संगीत से जोड़े रखने के हम प्रयासरत हैं।
पश्चिमी संगीत के संदर्भ में आपके क्या विचारहै?
पश्चिमी संगीत के लिए भी हमारा नजरिया सिर्फ संगीत का ही है। जैसे कि मां शब्द नाभि से निकलता है और दिमाग तक असर करता है। मां बोलते ही आत्मा को अपार शांति की अनुभूति होती है जो कि मम्मी इत्यादि बोलने में नहीं होती। इसी प्रकार शास्त्रीय संगीत में और पश्चिमी संगीत में भिन्नता है। शास्त्रीय संगीत प्राचीन सभ्यता है। यह संगीत भगवान तक जाने का भी साधन माना जाता है। किसी समय में रागों द्वारा वर्षा भी करवा ली जाती थी। शास्त्रीय संगीत सुनते ही तन-मन में एक शांत व सुखद एहसास होता है। जो कि पश्चिमी संगीत में असंभव है।
आप संगीत में बढ रही फूहड़ताका जिम्मेदार किसे मानते हैं?
आज के दौर में परिवार में बैठकर टी।वी देखना लगभग नामुमिकन सा है। कार्यक्रमों के अलावा विज्ञापनों में भी अश्लीलता की भरमार मिलती है। आलोचक इस पर रोक लगाने की मांग करते है लेकिन इसके हम स्वयं भी दोषी हैं। इस प्रकार के फू हड़ता को यदि हम देखना व सुनना बंद कर दें तो निस्संदेह इस प्रकार की गंदगी में कमी आएगी। हमें अपने पुराने गीतों को सम्मान देना चाहिए। अपनी संस्कृति पर आघात होने से बचाने के लिए हमें आमजन को जागरूक करना होगा। हमारे देश के युवाओं को अच्छे संस्कारों से भरपूर करना होगा। जैसे कि देसी व शुद्ध भोजन करने वाले लोगों की लम्बी आयु होती है। उसी प्रकार शास्त्रीय संगीत भी सदाबहार है।-प्रवीण कुमार इन्सां

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