भक्ति के अभाव में जीवन नीरस:संत प्रीतमदास रामायणी
24 मार्च 2010
हिसार। श्रीरामलीला कमेटी कटला के माध्यम से हिसार नगर की झूथरा धर्मशाला में नवरात्रे के पावन अवसर पर चल रही दिव्य रामकथा के आठवें दिन श्रीधाम वृंदावन से पधारे संत श्री प्रीतमदास रामायणी ने कल की कथा में कहा कि आज पूरे समुदाय को शांति की जरूरत है, लेकिन यह शांति हमारे जीवन में भक्ति के माध्यम से ही प्राप्त हो सकती है। अगर हमारे जीवन में ज्ञान है, पर भक्ति का अभाव है तो हमारा जीवन नीरस रहेगा। अगर भक्ति है, ज्ञान नहीं है तो हमारे जीवन में भटकाव आ सकता है। ज्ञान भक्ति के साथ-साथ अगर हमारे जीवन में कर्म योगा है तो साधक अपनी साधना से जल्दी सफलता को प्राप्त कर लेता है। तीनो साधन हनुमान जी को प्राप्त थे, इसलिए शांति रूपी सीता का पता लगाने के लिए हजारों वानर सुग्रीव के द्वारा भेजे गए उन हजारों वानरों में से कोई इधर भटक गया तो कोई उधर, परंतु हनुमान महाराज इन सभी बाधाओं को पार करके कथा में शांति रूपी सीता के पास पहुंच जाते हैं, जो वारदान रावण हजारों वर्ष की तपस्या करने के बाद प्राप्त नहीं कर पाए, वही वरदान श्री हनुमान जी ने माता जानकी से प्राप्त कर लिया, क्योंकि हनुमान जी के जीवन में ज्ञान कर्म भक्ति का संगम था।
हिसार। श्रीरामलीला कमेटी कटला के माध्यम से हिसार नगर की झूथरा धर्मशाला में नवरात्रे के पावन अवसर पर चल रही दिव्य रामकथा के आठवें दिन श्रीधाम वृंदावन से पधारे संत श्री प्रीतमदास रामायणी ने कल की कथा में कहा कि आज पूरे समुदाय को शांति की जरूरत है, लेकिन यह शांति हमारे जीवन में भक्ति के माध्यम से ही प्राप्त हो सकती है। अगर हमारे जीवन में ज्ञान है, पर भक्ति का अभाव है तो हमारा जीवन नीरस रहेगा। अगर भक्ति है, ज्ञान नहीं है तो हमारे जीवन में भटकाव आ सकता है। ज्ञान भक्ति के साथ-साथ अगर हमारे जीवन में कर्म योगा है तो साधक अपनी साधना से जल्दी सफलता को प्राप्त कर लेता है। तीनो साधन हनुमान जी को प्राप्त थे, इसलिए शांति रूपी सीता का पता लगाने के लिए हजारों वानर सुग्रीव के द्वारा भेजे गए उन हजारों वानरों में से कोई इधर भटक गया तो कोई उधर, परंतु हनुमान महाराज इन सभी बाधाओं को पार करके कथा में शांति रूपी सीता के पास पहुंच जाते हैं, जो वारदान रावण हजारों वर्ष की तपस्या करने के बाद प्राप्त नहीं कर पाए, वही वरदान श्री हनुमान जी ने माता जानकी से प्राप्त कर लिया, क्योंकि हनुमान जी के जीवन में ज्ञान कर्म भक्ति का संगम था।