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वकीलों के दो सौ नए चैंबर बनाने के लिए के होगा पुरजोर प्रयास

05 मार्च 2010
प्रस्तुति:प्रवीण ,सूरज व आयुष्मान
सिरसा बार एसोसिएशन वकीलों के लिए लगभग दो सौ नए चैंबर बनाने के लिए पुरजोर प्रयास करेगा। इसके लिए प्रयास पहले ही प्रारंभ कर दिए गए हैं। अप्रैल में हाइकोर्ट निरीक्षक न्यायाधीश जब जिले के दौरे पर आएंगे तो इस मामले में ठोस निर्णय होने की संभावना है। यह कहना है जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय बंसल का। वे सामुदायिक रेडियो स्टेशन के कार्यक्रम हैलो सिरसा में केंद्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान के साथ श्रोताओं से रूबरू हो रहे थे। न्यायपालिका में बढ़ते भ्रष्टाचार के लिए बंसल नियुक्ति प्रक्रिया में राजनीतिक हस्तक्षेप को सबसे अधिक जिम्मेदार मानते हैं। नियुक्तियां मेरिट पर हों तो स्थिति में खासा बदलाव आ सकता है। बंसल ने कहा कि जीवन में सबसे बड़ा धन संतोष धन है। इसी की कमी के कारण आज हर क्षेत्र म से विकास के साथ साथ भ्रष्टाचार में भी दिन -ब- दिन इजाफा हो रहा है। आज मानवीय गुणों को पुन: जागृत करने की जरूरत है। कड़ी मेहनत द्वारा कमाया गया पैसा ही सुख समृद्धि की अनुभूति करवाता है। भ्रष्ट तरीके से कमाया गया पैसा जितनी तेजी से आता दिखाई देता है, उतनी ही तेजी से चला भी जाता है। पेश है इस वार्तालाप के संपादित अंश :नई पीढ़ी के वकीलों के समक्ष क्या चुनौतियां हैं? मैं महसूस करता हूं कि नई पीढ़ी के अधिकांश वकील मेहनत करने को राजी नहीं हैं। वे पेशे में जल्द से जल्द स्थापित तो होना चाहते हैं मगर उसके लिए जितना श्रम करना चाहिए उतना वे नहीं करते। कटु सत्य है कि वे पुस्तकाल्य में जा कर अध्ययन नहीं करते और न ही वरिष्ठ वकीलों के अनुभव का लाभ लेते हैं। नए वकीलों में कोर्ट का फोबिया भी देखने को मिल रहा है। अदालत में पेश होने से वे बचना चाहते हैं। इस प्रवृत्ति के चलते उनका विकास अवरूद्ध होना स्वाभाविक है। निजी तौर पर मैं मानता हूं कि नए वकीलों को हाथ से अधिक से अधिक लिखना चाहिए। हाथ से लिखने की आदत छूटने के कारण भी बहुत हानि हो रही है। नए वकीलों के लिए काम की कमी भी एक बड़ी चुनौती है। सिकुड़ते काम के अवसरों के कारण नए वकील जल्द निराशा के भंवर में फंस जाते हैं। मगर यह भी सत्य है कि परिश्रमी और प्रतिभावान लोगों के लिए काम की कोई किल्लत नहीं है। सिरसा बार की मुख्य समस्याएं क्या है? वर्ष१९८२ में वकीलों की संख्या २५० के करीब थी। उस समय बनाया गया लिटिगेंट शेड उनके लिए पर्याप्त था। लेकिन आज ये संख्या बढ़कर ११०० के करीब है। लिहाजा वकीलों के पास बैठने की जगह की खासी कमी है। शैड केअंदर बने बीस चैंबर सरकारी है। लगभग दौ सौ नए चैंबर का निर्माण समय की आवश्यकता है। फतेहाबाद में हाल ही में चैंबर बने हैं। यहां भी उसी तर्ज पर सरकार से भूमि लेकर वकीलों के खर्च पर नए चैंबर जल्द बनाए जाएं, हम इसके लिए प्रयास करेंगे। अदालत आने वाले आम जन के लिए पेयजल व शौचालय आदि की मौजूदा व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। महिला शौचालय का होना न होना एक जैसा है। इस मामले में भी तत्काल कुछ करना होगा। न्यपालिका में भ्रष्टाचार किस हद तक जड़े जमा चुका है? भ्रष्टाचार का कोई मापदंड नही होता। आज से लगभग चालीस वर्ष पूर्व की बात क रें तो उस समय किसी साथी के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की खबर मिलने पर उसके साथ चाय पीना भी न्यायाधीश बुरा समझते थे। अब स्थिति वैसी नहीं है। पहले की अपेक्षा न्यायपालिका की साख में गिरावट आई है। मगर इसका यह अर्थ भी नहीं कि सारी व्यवस्था ही भ्रष्ट हो गई है। भ्रष्टाचार पर अंकुश इस लिए भी नहीं लग रहा कि भ्रष्टाचार के आरोपियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती।

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