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सबसे उत्तम सेवा, राष्ट्र सेवा

08 मार्च 2010
सिरसा(अमित सोनी) जो व्यक्ति अपने मन एवं अन्तश्चक्षु द्वारा संसार को देखता है, संसार को हृदय में बसाकर रखता है वह व्यक्ति कभी भी प्रभु कृपा मार्गी नही हो सकता उक्त विचार आचार्य गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महाराज ने श्री अनाज मंडी में बाल रसिक संघ द्वारा आयोजित श्री मद्भागवत कथा सप्ताह के पांचवे दिन उपस्थित श्रद्धालुओं पर अमृतवर्षा करते हुए व्यक्त किए। आचार्य जी ने कहा कि जो अपने नेत्रों से तथा अंतरात्मा के भाव से एक बार प्रभु की सांवली सलोनी सूरत का दर्शन कर लेता है वह फिर संसार के मतलब का नहीं रह जाता है। आचार्य श्री ने राष्ट्र भावना के प्रति सजगता दर्शाते हुए कहा कि सबसे प्रथम मानव का कर्तव्य है कि वह राष्ट्र के प्रति अपनी सेवा समर्पित करता रहे। सबसे उत्तम सेवा राष्ट्र सेवा है। धन का, मन का सबसे बड़ा सदुप्रयोग राष्ट्र सेवा है। दूसरी सबसे बड़ी सेवा मानवता की है। अगर वह समर्थ है तो उसे पात्रता को ध्यान में रखते पात्र व्यक्ति की हर संभव सहायता करनी चाहिए। ध्यान रहे कुपात्र को यदि दान दिया गया तो उसके कुकृत्य का भागी उसकी मदद करने वाला भी होगा। अत: बड़े ध्यान से पात्र की सहायता आवश्यक है। तुमने यदि किसी दुखिया की सहायता की है, तो वह बिहारी जी की पूजा है। आज कार्यक्रम में आचार्य जी ने श्रीकृष्ण लीला, श्री गोवर्धन पूजा, झूला उत्सव, छप्पनभोग आदि चीजों का बड़ी सजीवता से वर्णन किया। माखन चोरी की बहुत सुन्दर झांकी मंच पर दिखाई गई। माखन चोरी के अभिप्राय की व्याख्या व्यास पीठ पर आसीन श्री गौरव कृष्ण जी ने बड़े सुंदर ढग़ से की। कथा में श्री गोस्वामी जी ने बताया कि दुराचारी कंस ग्वाल बालों से कर के रूप में दूध, दही और माखन लेता था। उस माखन आदि को अत्याचारी कंस एवं उसके अनुचर खाकर बलवान होते थे तथा बृजवासियों को प्रताडि़त करते थे। इसलिए उस दूृध, दही, माखन आदि को प्रभु ने चुराकर ग्वालों को खिलाकर हष्ट-पुष्ट करना, दृष्टों का मुकाबला करने योग्य बनाना था। चीरहरण की व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि उस समय गोपियां नग्नावस्था में जल में स्नान करती थीं। उसे बंद करवाने के लिए ही श्रीकृष्ण ने चीरहरण की बाल लीला की। उन्होंने संदेश दिया कि किसी भी व्यक्ति को स्नान करते समय अंग पर एक वस्त्र अवश्य रखना चाहिए क्योंकि नग्नावस्था में स्नान जलदेवता यानि वरुण का अपमान है। व्यास पीठ से भजन के स्वर गुंजित हुए, माखन खा गयो बिहारी मेरो हंस-हंस के... सारा पंडाल इस भजन पर झूमकर नाचने लगा। इसी दौरान श्री कृष्ण बाल ग्वालों द्वारा मटकी फोड़कर माखन चुुराने की मनभावन झांकी छोटे-छोटे बाल कलाकारों ने पेश की। गोवर्धन पूजा के दौरान कथाव्यास गोस्वामी जी ने अपने सुप्रसिद्ध भजन, श्री राधे-राधे-राधे बरसाने वाली राधे पेश किया। इस भजन पर तो पूरा पंडाल ही नाचने लगा। गोस्वामी जी ने पूरे भजन को बड़े सुमधुर ढंग से प्रस्तुत किया। गोवर्धन गिरिराज को छप्पन भोग भी लगाया गया। भोग लगाते हुए आचार्य श्री ने कहा कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण पूजा कर रहे थे तथा स्वयं गिरिराज के रूप में पूजा को स्वीकार भी कर रहे थे। छप्पन भोग के दौरान ही श्रद्धालुओं से उनके स्थान पर खड़े खड़े ही राधा जी की आरती के माध्यम से परिक्रमा भी करवाई गई। छप्पन भोग मुख्य यजमान मा. रोशनलाल गोयल ने सपत्नीक लगवाया। दैनिक यजमान के तौर पर इनेलो के जिलाध्यक्ष पदम जैन,प्रदीप मेहता अशोक जैन मूनक, राजीव गर्ग अनिल पटेल समालखा, अशोक गुप्ता, पवन मांडा आदि उपस्थित हुए।

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