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डाक व्यवस्था की शरुआत, कब और कैसे?

डाक व्यवस्था आज सारी दुनिया में प्रचलित हैं विदेशो में बैठे हुए हमारे मित्रो या संबंधियों के पत्र हमें कुछ ही दिनों में प्राप्त हो जाते हैं मुंबई, कलकत्ता या किसी दुसरे स्थान से लिखा गया पत्र भी हमें मात्र तीन दिनों में मिल जाता हैं यह सब डाक व्यवस्था का ही तोकमाल हैं हमारे द्बारा भेजे पत्रों को ले जाने का काम मोटर, रेलों, और हवाई जहाजों द्वारा किया जाता हैं एक स्थान से दूसरे स्थान तक पत्रों को ले जाने का कार्य हजारो लाखो लोग करते हैं

प्राचीन काल में संदेश भेजने का कार्य लोग निजी तौर पर किया करते हैं 16 वी शताब्दी में डाक व्यवस्था का कार्य सरकार ने अपने हाथो में ले लिया था इसके तीन प्रमुख कारण थे- पहला यह कि सरकार लोगो के संदेहपूर्ण संदेशो पर नज़र रखना चाहती थी दूसरा कारण डाक व्यवस्था देश के लिए धन इकठा करना था और तीसरा कारण जनता कि भलाई का था वर्तमान में जनता की सेवा ही डाक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य था

सन 1609 तक सरकार द्वारा नियुक्त किए गए विशेष संदेशवाहक ही पत्र ले जाने का काम करते थे सन 1680 में लन्दन के एक व्यापारी ने शहर व आस पास के इलाको में डाक वितरण हेतू अपनी डाक व्यवस्था शुरू की थी सन 1840 में इग्लैंड में डाक व्यवस्था का सारा ढांचा बदल गया इसी वर्ष डाक टिकटें जारी की गई और सारे देश के लिए दरें सम्मान कर दी इग्लैंड की इस व्यवस्था को अन्य देशो ने भी अपनाना शुरू कर दिया

वर्तमान दूनिया की सबसे बड़ी डाक सेवा अमेरिका की हैं किंतु बेहतर सूविधा के द्रष्टिकोण भारत की डाक व्यवस्था अमेरिका में श्रेष्ठ मानी जाती हैं

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