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पंजाब में हो रही है, भ्रूण हत्या में बढौतरी

बठिण्डा(न्यूजप्लस): स्वास्थय एवं परिवार कल्याण विभाग तथा सयुंक्त राज्य जनसँख्या की एक रिपोर्ट अनुसार भारत वर्ष में सबसे अधिक लिंग भेदभाव वाला राज्य पंजाब पहले नम्बर पर हैं, जहाँ एक हज़ार बालको पर 710 बालिकाए हैं जबकि अनुपात 960 से अधिक होना चाहिए प्रदेश में गर्भपात के सर्वाधिक मामले भी यह चिंता का विषय हैं, जिसके लिए पुरानी दहेज प्रथा, महिलाओ की पुरानी गृहणी भूमिका, बालिकाओ में असार्क्षता तथा आर्थिक आभाव जिमेवार हैं विज्ञान में प्रगति ने लिंग भेद में प्रभावशाली भूमिका अदा की हैं, जिसके चलते भ्रूण परीक्षण व भ्रूण हत्याओ में वृद्धि हुई हैं पंजाब राज्यों में प्रतिदिन संकडों हत्याए हो रहीं हैं, जबकि राज्य सरकार ने कानून बनाकर अपना कर्तव्य निभा दिया हैं सरकार भले ही इस समस्या से चिंतित होने की बात कहे,मगर गम्भीरता से न लिये जाने के कारण आने वाले समय एक तिहाए युवक अविवाहित रह सकते हैं अविवाहित युवको का रुझान अपराध युवक की और बढेगा, तो राज्य में बलत्कार जैसी घटनाए होंगी न्यूज़प्लस द्वारा किए गए सर्वेक्षण से पता चला हैं कि भ्रूण हत्या के मामले में ग्रामीण क्षेत्रो ने शहरो को पीछे छोड़ दिया हैं और मुस्लिम, सिख व अन्य सभी वर्गों के लोग भ्रूण हत्या की और आकर्षित हो रहे हैं लिंग अनुपात में निरंतर असंतुलन के कारण समाज में विवाहिक समस्या विकराल रूप धारण कर सकती हैं सरकार ने लिंग भेद परीक्षण पर प्रतिबन्ध लगाया हैं, जिसे पी एक्ट कहा गया हैं न्यूज़प्लस को कुछ महिलाओ ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग की कुछ महिला कर्मचारी न केवल गर्भपात/भ्रूण हत्या के लिये प्रेरित करती हैं, बल्कि मददगार बनती हैं राज्यों में लड़कियों की कम हो रही संख्या का एक दुखद पहलु यह भी हैं कि बीमार होने पर 80% महिलाओ को अस्पताल नसीब नहीं होता, जबकि शेष लड़किया अस्पताल तक तो पहुँच जाती हैं वह भी ऐसी स्थिति में मौत के करीब पहुँच चुकी होती हैं राज्य सरकार ने यदि भ्रूण हत्या को रोकने में कारगर कदम न उठाये तो यह आंकडा 600 तक रह जाएगा वर्तमान में जन्म दर देखने से पता चलता हैं कि भारतवर्ष में प्रति मिनट 400 के करीब महिलाए गर्भवती होती हैं, जिनमे से 190 अनचाहे गर्भ को ,110गर्भ से सम्बंधित बीमारियों का शिकार, 40% गर्भपात करवाने के अतिरिक्त करीब एक प्रतिशत जन्म देते हुए समय बच्चे को खो बैठती हैं या स्वयं मृत्यु का शिकार हो जाती हैं भारतीय समाज में लड़को का लालन-पालन, शिक्षा पर विशेष ध्यान देना, लड़कियों पर कम ध्यान देना, लड़के के बीमार होने पर हर तरह से उपचार करवाना और लड़की के बीमार होने पर उपचार में अनदेखी करना आदि पहलु भी लड़कियों कि कम हो रहीं संख्या के लिये दोषी खे जा सकते हैं सरकार को केवल कानून बनाने तक ही समित रहकर धार्मिक व सामाजिक संस्थाओ के सहयोग से जागरूकता लाने के लिये प्रयास करने चाहिए ताकि भ्रूण हत्या पर अंकुश लगाया जा सके अन्यथा आने वाले समय में अविवाहितों के लिये लड़किया ढूढना टेडी खीर साबित होगी

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