कविताएं दिल से
बेरुखी इस कदर दिखायेंगे मालूम न था, बस चाँद रोज में बदल जायेंगे मालूम न था,
वो भोलापन वो मासूमियत दिल लुभाया था जिसने, दिल लगाकर दिल जलाएंगे मालूम न था,
यू तो खाते रहे कसमे साथ जीने मरने की, चाँद कदमो पे डगमगाएंगे मालूम न था,
हमने तो आपको खुदा माना था, मगर वो अपना भी न बनाएगें मालूम न था,
बच के निकलते हैं लोग कांटो से सुना था हमने, हम फूलो में ही उलझ जायेंगे मालूम न था (वंश जैन सिरसा)