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सादगी और संघर्ष के कायल-हरियाणा वासी (धोखा दिया नहीं,बल्कि खाया)

रोहतक (प्रैसवार्ता) हरियाणा की जनता आज भी धरती पुत्र स्व. चौ. देवी लाल की सादगी और संघर्ष की कायल है। चौ. देवी लाल ने अपने राजनीतिक जीवन में सत्ता को कभी महत्व नहीं दिया। वह देश के पहले जनप्रिय नेता थे, जिन्हें सत्ता और सत्ता से बाहर भी बराबर का सम्मान मिलता रहा और उन्होंने ने भी जीवन भर कमेरे वर्ग के हितों को ऊपर रख राजनीति करते हुए किसान, मजदूरों के हितों से कभी समझौता नहीं किया। उनकी सादगी, संघर्ष और त्याग से हरियाणा ही नहीं, बल्कि पूरा देश प्रभावित रहा। जनता द्वारा उन्हें ''ताऊ'' उपनाम दिया गया, तो उन्होंने भी उक्त सम्मान को पूरी मर्यादा के साथ निभाया। विपक्ष की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए ताऊ ने शैंटिग इंजन की भूमिका निभाई और राजनीति में आदर्श, त्याग के नैतिक मूल्य निर्धारित कर राजनीतिक लोगों को राजनीति का पाठ पढ़ाया। ''ताऊ'' शब्द को अपने आप में सम्मान और त्याग का प्रतीक भारतीय संस्कृति में माना गया है। चौ. देवी लाल ने 1987 के संघर्ष में अपनी सोच बदल ली और उनके लिए अपने-पराये का कोई महत्व नहीं रहा। ''ताऊ'' ने ऐसे लोगों को सत्ता में पहुंचाया, जिन्होंने कभी स्वप्र में सत्ता का ख्याल किया हो। भले ही राजनीति में उन्हें बार-बार धोखा मिला, मगर उन्होंने अपनी तरफ से किसी को धोखा नहीं दिया। देश की राजनीति में ''ताऊ'' कभी हीरो तथा कभी जीरो खेल में खेले। ताऊ भीड़ की राजनीति करते थे और भीड़ के बलबूते ही सत्ता के शिखर पर पहुंचे। मरणोपरां उपरांत भी उनकी याद को तरोताजा रखने के लिए उनके जन्म दिवस पर लाखों की भीड़ एकत्रित होती है। ताऊ ने भीड़ केवल अपने लिये ही नहीं, बल्कि राजनीति में साथ रहे नेताओं के लिए भी एकत्रित की। भीड़ जुटाने का उनमें जादुई करिश्मा था, जो आज भी खरा उतर रहा है। ताऊ की सोच ऐसी थी कि गरीब, किसान, मजदूरों के दुख को देखकर वह स्वयं तडफ़ने लगते थे। ताऊ पर जातिवाद के आरोप भी लगे थे, परन्तु उन्होंने कभी इसकी परवाह नहीं की और जिस तरफ अपना कदम बढ़ाया, उस मंजिल तक पहुंचे कर ही दम लेते थे। चौ. देवी लाल विरोधियों के भी कायल थे और कई बार वह स्वयं उन नेताओं के पास चले जाते थे, जो उनके कट्टर विरोधी थे और अपने व्यक्तित्व से उन्हें भी प्रभावित किया। चौ. देवी लाल ने स्व. राजीव गांधी को अपने व्यक्तित्व से इतना प्रभावित किया कि राजीव गांधी भी चौ. देवी लाल की तारीफ करने लग गये थे। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता, कि ताऊ देवी लाल का मान सम्मान कभी कम नहीं हुआ। विपक्ष में आते ही वह हीरो बन जाते थे। भले ही ''ताऊ'' ने कई बार चुनाव हारे, मगर राजनीति उनके इर्द-गिर्द ही घूमती रही। सत्ता पर काबिज उनके व्यक्तित्व से भयभीत रहे। ''ताऊ'' ने ताऊ शब्द की मर्यादा को कायम रखते हुए अपने विरोधियों के मुख से ही अपने आप को ताऊ ही कहलवाया। जिक्र योग है कि हरियाणा में ताऊ का दर्जा पिता श्री से भी ऊंचा माना जाता है और ताऊ ने सभी देशवासियों का ताऊ बन कर ही अपना मान-सम्मान कायम रखा, जिस कारण देश की राजनीति में चाचा और बापू के बाद चौ. देवी लाल को ही ताऊ का दर्जा मिला।

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