पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनी बागोर की हवेली
हर मौसम के लिए अलग-अलग रंग में रंगे कक्षों की साफ सफाई एवं मरम्मत से उदयपुर की ढाई सौ साल पुरानी बागोर की हवेली एक बार फिर पर्यटकों को लुभाने लगी है। इस हवेली में ऐसे अनेक कक्ष अलग-अलग रंगों में रंगे हैं जिनका उपयोग मौसम के अनुकूल हुआ करता था। इन कक्षों में सुसज्जित वस्त्रों का इस्तेमाल भी उसी के अनुरूप होता था जैसे फागुन माह में फगुनियां एवं श्रावण में लहरियां इत्यादि। इस हवेली में राजा रजवाडे के जमाने के शतरंज, चौपड़ सांप सीढ़ी और गंजीफे आज भी मौजूद हैं जिसका उपयोग राजपरिवार की महिलाएं खेल, व्यायाम तथा मनोरंजन के लिए किया करती थीं। इस हवेली में स्वर्ण तथा अन्य बेषकीमती अलंकारों को रखने के लिए अलग तहखाना बना हुआ था। ऐतिहासिक बागोर की हवेली में वास्तुकला एवं भित्तिचित्रों को इस तरह से संजोया गया है कि यहां आने वाले देशी, विदेशी पर्यटक इसे देखना नहीं भूलते। खासकर इस ऐतिहासिक हवेली को पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र का मुख्यालय बनाए जाने से यहां की रौनक नए सिरे से बढ़ गई है। इस हवेली का निर्माण वर्ष 1751 से 1781 के बीच मेवाड शासक के तत्कालीन प्रधानमंत्री अमर चन्द्र बडवा की देखरेख में हुआ था। ऐतिहासिक पिछौला झील के किनारे निर्मित इस हवेली में 138 कक्ष, बरामदे एवं झरोखे हैं। इस हवेली के द्वारों पर कांच एवं प्राकृतिक रंगों से चित्रों का संकलन आज भी मनोहारी है। इस हवेली में स्नानघरों की व्यवस्था थी जहां मिट्टी, पीतल, तांबा और कांस्य की कुंडियों में दुग्ध, चंदन और मिश्री का पानी रखा होता था और राज परिवार के लोग पीढ़ी पर बैठकर स्नान किया करते थे। मेवाड के इतिहास के अनुसार महाराणा शक्ति सिंह ने बागोर की इस हवेली में निवास के दौरान ही त्रिपउलिया पर महल का निर्माण कराया था, जिसका 1878 में विधिवत मुर्हूत हुआ था लेकिन इसके बाद से ही बागोर की हवेली की रौनक कम होनेलगी है। मनमोहित ग्रोवर(प्रैसवार्ता)