समझ से परे दिख रहा है आर.टी.आई.एक्ट
ऐलनाबाद(प्रैसवार्ता)आप सबको 'राइट टू इंफार्मेशन एक्ट (आर.टी.आई)' के बारे में तो पता ही होगा, लेकिन क्या आपको आर.टी.आई. फाइल करना आता है? क्या आपको आर.टी.आई. की फीस और ये फीस किसके नाम जमा करनी हैं, इसके बारे में पता है, नहीं न? सरकार ने आर.टी.आई. एक्त तो बना दिया, लेकिन आम आदमी आर.टी.आई. फाइन करने को लेकर काफी असमजस में रहता है, वजह है केंद्र सरकार ने आर.टी.आई. एक्ट के संबंध में लोगों में जागरूकता फैलाने संबंधी जो बजट तैयार किया है, वह काफी कम है और साथ ही जो बजट है उसका भी पूरा इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। ऐसे में स्वाभाविक है, कि हर एक व्यक्ति को इस एक्ट की जानकारी नहीं होगी। उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार की ओर से सरकारी कार्यों में पारदर्शिता, उत्तरदायित्व के संवद्र्धन तथा आम जनता को विभिन्न सरकारों व अन्य विभागों संबंधी विभिन्न जानकारियां प्रदान करने के उद्देश्य से सन् 2005 में जन सूचना अधिकार नियम यानिकी आर.टी.आई. एक्ट लागू किया गया। नियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति फाइल लगाकर किसी भी विभाग व सरकार के कार्यों अन्य जरूरी सूचनाओं को हासिल कर सकता है, परंतु खेद का विषय है कि आत जनता के हित में बनाया गए इस कानून की पूरी जानकारी हर एक नागरिक तक पहुंचाने में सरकार असमर्थ रही है। यहां तक की आधे से अधिक लोग तो ऐसे हैं, जिन्हें यह भी नहीं मालूम कि इसकी फीस क्या है? इसका फार्म कौन सा है? इसकी फाइल कैसे और कहां लगती है? ऐसे में इस नियम में सरकार द्वारा खर्च होने वाली राशि पानी में बहाने के समान है। वहीं दूसरी ओर एक दिलचस्प बात यह भी सामने आई है, कि इस नियम के प्रचार-प्रसार की मुख्य वजह सरकारी अधिकारी-कर्मचारी ही रहे हैं, तभी तो वर्ष 2008-09 में आर.टी.आई. के इफैक्टिव इंप्लीमेंटेशन के लिए सरकार की ओर से 10 रुपए की राशि आबंटित की गई थी, जिसमें से सिर्फ 7.29 करोड़ रुपए ही खर्च हो पाए। वहीं 2009-10 के लिए 14.16 करोड़ रुपए की राशि आबंटित की गई है, जिसमें से अभी तक 3.53 करोड़ ही खर्च हो पाए। इसके साथ-साथ कोई सुशिक्षित व समझदार व्यक्ति जैसे-तैसे इस नियम की पूरी जानकारी पता कर किसी विभाग या अन्य कार्य की सूचना जानना चाहता है तो कई बार विभाग उसे आधी-अधूरी जानकारी देकर गुमराह कर देता है, वहीं दूसरी ओर साथ में यह भी लिखा जाता है, कि अगर उसे और जानकारी चाहिए तो 10 रुपए प्रति पेज के हिसाब से लगेंगे, ऐसे में नियम की पारदर्शिता पर सवाल उठने स्वाभाविक है। चलो आम व्यक्ति की बात दूर की है, अगर हम सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को ही क्यों न ले लें। कई बार तो यह बात भी सामने आती है, कि पब्लिक इंफार्मेशन अफसरों को भी ये नहीं पता होता कि इसकी फीस किसके नाम जमा की जाएगी। गौरतलब है, कि ट्रेनिंग के जारी सर्कुलर के अनुसार आर.टी.आई की फीस डिपार्टमैंट के अफसर के नाम जमा की जाएगी, लेकिन कई जगह इसे भी खारिज कर दिया जाता है। इसकी बड़ी वजह सही ढंग से विज्ञापन और जागरूकता सभी अभियान नहीं चला जाना है। वहीं दूसरी ओर सरकार द्वारा जारी किया गया यह बजट काफी कम है और जो बजट जारी किया है, उसका प्रयोग सही ढंग से नहीं हो रहा। सरकार चुनावों में विज्ञापनों में फालतू पैसा खर्च करती है, लेकिन इस नियम के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए बहुत कम विज्ञापन कर रही है। ऐसे में सरकार की नीयत पर सवाल उठना लाजिमी है। इस नियम में यहां अधिक कामयाब न होने व हर एक नागरिक को इसके बारे में न पता होने की एक बड़ी वजह हमारे सरकारी ढांचे की कमियां ही हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार चाहे इस अधिकार को भारत की कामयाबी कहकर कितना ही ढोल क्यों न पीटे?