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अंग प्रत्यारोपण के लिए भेड़े

नई दिल्ली (प्रैसवार्ता) बिट्रेन के निवादा विश्व विद्यालय के प्रौफेसर इस्माइल जनजानी ने अपने सहयोगी वैज्ञानिकों के साथ भेड़ की एक ऐसी आकृति विकसित की है, जिसमें मनुष्यों की कोशिकाएं मौजूद हैं, जिससे भेड़ों में इंसानी अंगों से मिलने-जुलते अंगों का निर्माण संभव हो सकेगा। ऐसे अंगों को जरूरत पडऩे पर जरूरतमंद इंसान में आसानी से आत्यारोपित किया जा सकेगा। प्रौ. जनजानी की इस खोज की दुनिया भर में अलोचना भी हो रही है, मगर अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे मरीजों के लिए एक वरदान होगा। दुनिया भर की अलोचना तथा कानूनी अड़चनों के चलते बिट्रेन के निवादा विश्वविद्यालय ने मानव कोशिकाओं युक्त भेड़ों का विकास किया है, जिनमें 15 प्रतिशत कोशिकाएं इंसानी शरीर की और 8.5 प्रतिशत कोशिकाएं जानवरों की है। इस शोध के क्षेत्र में उम्मीद की नई किरण है। इस तकनीक के जरिये किसी भी मरीज की अस्थिमज्जा से स्टेम कोशिकाओं को अलग कर उन्हें भेड़ के गर्भ में डाला जाता है, जो सभी अंगों में पहुंचती है। मेमने के पैदा होने के दो महीने बाद यकृत, हृदय, फेफड़े और मस्तिष्क का विकास शुरू होता है और यह सभी अंग आशिक तौर पर इंसानी अंगों की तरह होते हैं। वैज्ञानिक जनजानी के मुताबिक, जिसे मरीज के अंग की जरूरत है, उसकी अस्थिमज्जा से स्टेम कोशिकाओं को जानवर के गर्भ में आवाहित कर मरीज की जरूरत के अनुरुप अंगों का निर्माण संभव है। वैज्ञानिक जन्जानी ने इस खोज पर 50 लाख पौण्ड खर्च किये हैं, जबकि सात वर्ष का समय खर्च हुआ है। भले ही इस शोध को लेकर प्रश्र उठ रहे हैं कि वैज्ञानिकों का सृष्टि नियमों के विरोध में काम करना उचित नहीं है, परन्तु बॉयलाजिकल ट्रैंड से जुड़े लोगों का मानना है कि भविष्य में इस आकार के प्रत्यारोपण के कारण विषाणु घातक भी हो सकते हैं या नहीं, इस पर शोध जरूरी है।

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