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जहां दूल्हे को करनी पड़ती है, ससुराल में नौकरी

दिल्ली(प्रैसवार्ता)देश में नारी के उत्थान के लिए कानून में परिवर्तन से लेकर सामाजिक व राजनीतिक मंचों पर आवाज उठाई जा रही है। महानगरों में नारी को अधिक विद्या, अधिकार और स्वतंत्रता देने के लिए जुलूस-जलसे किए जा रहे हैं। संसद में ओरतों के आरक्षण के लिए बिल पारित करने की आवाज बुलंद की जा रही है, लेकिन ऐसे ही देश में जहां मर्दों के चंगुल से औरतों की स्वतंत्रता की बात की जा रही है, वहां ऐसी रीति-रिवाज की मौजूद है, जिनमें मर्दों से अधिक औरतों को मान-सम्मान दिया जा रहा है। भारत के विभिन्न कोनों में स्थित आदिवासी कबीलों में आज भी औरतों को उच्च स्थान दिया गया है। रीति-रिवाजों में भी प्रथम दर्जा देकर नारी उत्थान की उदाहरण आज भी प्रचलित है। त्रिपुरी नामी कबीले के अपने ही रीति रिवाज है। कबीले के वक्त जमाई तथा जमाई खाता जैसी रिवायतें आज भी कबीले में देखने को मिलती हैं। शादी से पहले दूल्हे को निश्चित समय के लिए अपने ससुराल में रहना पड़ता है, ताकि ससुराल वाले भली-भांति जाना पायें, कि उनका जमाई कामकाज तथा घर का बोझ उठाने के लिए समक्ष है या नहीं। पूरी तसल्ली के पश्चात ही शादी की तारीख निश्चित की जाती है। कानून इतने सख्त हैं, कि शादी से पहले लड़क-लड़की को मिलने की इज्जात नहीं दी जाती। शादी के बाद खुलता है, दूल्हे राजा का जमाई खाता। इस नियम के अनुसार शादी के पश्चात जमाई की ससुराल में वहां निश्चित काम सौंपा जाता है, जिसके पूर्ण न होने पर उसे भारी हर्जाना देना पड़ता है। दोनों परिवारों में एक संधिहोती है। अगर संधि की शर्तें दोनों में से कोई तोड़ता है, अगर लड़के को बिना किसी कारण ससुराल वाले घर से निकाल देते हैं, तो लड़की के मां बाप को नकदी के रूप में हर्जाना भुगतना पड़ता है। इसी तरह जमाई को रस्मों के अनुसार निर्धारित शर्तें पूरी करनी होती है। अगर लड़का ससुराल वालों को बताए अनुसार काम काम नहीं कर पाता, तो उसके बदले में निर्धारित राशि देकर दी शादी की रस्म पूरी करनी पड़ती है। प्राचीनकाल से चली आ रही यह प्रथा त्रिपुरी कबीले में अभी भी प्रचलित है, जबकि दूसरी ओर देश में नारी की स्वतंत्रता की आवाज बुलंद की जा रही है।

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