तपेदिक दवाई का अविष्कार
पहले तपेदिक एक जानलेवा रोग था और इसके लिए कोई दवा नहीं थी, परन्तु डाक्टर वाक्समैन ने मिट्टी से इस रोग की दवाई बनाई। डाक्टर वाक्समैन को उनके स्कूल के प्रबंधक नौकरी से निकालना चाहते थे, क्योंकि वह मिट्टी के विभिन्न-विभिन्न नमूनों पर प्रयोग करते थे। वर्ष 1911 से डाक्टर वाक्समैन लगातार मिट्टी से प्रयोग कर रहे थे, परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी। 1932 में उनके प्रयोग ने सिद्ध किया कि तपेदिक के कीटाणु ज्यादा देर तक मिट्टी में नहीं रह सकते। लंबी खोज उपरांत डाक्टर वाक्समैन ने मिट्टी में मौजूद माईकों से स्टैपरोमाईसटन जैसी दवा का विकास किया, जो तपेदिक के कीटाणुओं को मार सकती थी। अपने प्रयोग के लिए उन्होंने अमेरिकी सरकार से सहायता मांगी थी, जो नहीं मिली, परन्तु वह निराश नहीं हुए और कामनवैल्थ की 9600 डालर की सहायता से यह खोज करने में सफल हुए। 1943 में स्टैपरोमाईसटन एक प्रमुख अंटीबाईटक्स के रूप में बाजार में आई, जो कामयाब साबित हुई और इससे डाक्टर बाक्समैन को करोड़ डालर बतौर रायल्टी मिले, परन्तु इस महान वैज्ञानिक यह राशी अपनी प्रयोगशाला को दे दी। डाक्टर वाक्समैन को १९५२ में नौबल पुरस्कार दिया गया।-हरजोत सिंह (प्रैसवार्ता)