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फार्मेकोविजिलैंस का सही अर्थ दवाईयों का बिना किसी नुक्सान के सही उपयोग करना है: डा. पारले

सिरसा(सिटीकिंग) राजेन्द्रा इंस्टीच्युट ऑफ टैक्नोलोजी एवं साईंसिज सिरसा में चल रही सोसायटी ऑफ फार्मेकोविजिलैंस भारत के बैनर तले आयोजित सेमिनार के दूसरे दिन के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एयर फोर्स स्टेशन कमाण्डर सिरसा ग्रुप कैप्टन जी.एस. बेदी थे जबकि विशिष्ट अतिथि डा. के.सी. सिंघल थे। इनके अतिरिक्त अध्यक्षीय मण्डल में ब्रुश हगमैन, डा. के.के. शर्मा, डा. गोबिन्द मोहन, डा. सन्दीप अग्रवाल, डा. राजेन्द्र सिंह सरां, डा. सुरेन्द्र गोयल, ओमप्रकाश, डा. जी. मुंजाल और प्राचार्य एन. महादेवन थे। मुख्य अतिथि गु्रप कैप्टन जी.एस. बेदी ने अपने संदेश में कहा कि जिस तरह फौज का काम देश के दुश्मनों पर हमला करना होता है उसी तरह फार्मेकोविजिलैंस सोसायटी का कत्र्तव्य है कि वह दवाईयों द्वारा होने वाले साईड इफैक्टस पर हमला करें। गुणवत्ता के साथ समझौता न करें और आमजनों को सुरक्षित दवाईयां उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें। आज का दिन वैज्ञानिकों द्वारा दिए गए विशेष विषयों पर तकनीकी भाषणों का रहा। डा. मिलिन्द पारले का कहना था कि फार्मेकोविजिलैंस का सही अर्थ दवाईयों का बिना किसी नुक्सान के सही उपयोग करना है। डा. शोभा रानी ने किसी भी क्षेत्र में नए फार्मेकोविजिलैंस केन्द्र की स्थापना किस प्रकार की जा सकती है के बारे में विस्तार से जानकारी दी। डा. बु्रश हगमैन ने कहा कि एक डाक्टर और रोगी के बीच अच्छे वार्तालाप से औषधि सुरक्षा और उनके गलत प्रभाव को काफी हद तक रोका जा सकता है। डा. ई. धनराज ने चेतावनी दी कि जहां बाजार में नित प्रतिदिन नई दवाईयों का पर्दापण हो रहा है तो उनको बाजार में ले जाने से पहले उनकी गुणवत्ता की पूर्ण रूप से जांच होना आवश्यक है नहीं तो वही औषधियां लाभ की बजाय रोगी को हानि ज्यादा पहुंचाएंगी। उन्होंने इस संदर्भ में कई उदाहरण भी दिए। डा. के.के. शर्मा ने कहा कि जिस तरह हमारे देश में फार्मेकोविजिलैंस को सफलतापूर्वक चलाया जा सकता है उन्होंने नेशनल फार्मेकोविजिलैंस कार्यक्रम भारत के उद्देश्यों के बारे में बताया कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत 26 प्राथमिक, 5 क्षेत्रीय केन्द्र और 2 जोनल केन्द्र स्थापित हो चुके हैं जो अपनी गतिविधियों की जानकारी राष्ट्रीय फार्मेकोविजिलैंस सोसायटी को देते रहते हैं। डा. गोविन्द मोहन ने साधारणत: दवाईयों के प्रयोग से मानसिक स्तर पर क्या दुष्प्रभाव पड़ता है इसके बारे में विस्तार से जानकारी दी। उनका ज्यादा जोर वृद्धों की बढ़ती जनसंख्या पर मानसिक प्रभाव की ओर ध्यान देने पर रहा। डा. एस.जेड. रहमान ने बताया कि हम आधुनिक युग में कीटनाशक कारखानों द्वारा छोड़ा गया धुआं तथा धातुओं द्वारा प्रदूषित वातावरण में जी रहे हैं। इस वातावरण को दूषित करने में कुछ दवाईयों का भी योगदान है। जैसे जो दवाईयां पशुओं को दी जाती हैं उनके मल-मूत्र से पीने वाला पानी और धरती का वातावरण दूषित हो रहा है। इनके बचाव के लिए क्या कदम उठाने चाहिएं इस पर भी चर्चा की गई। डा. संदीप अग्रवाल के अनुसार हर मनुष्य का वंशानुक्रम भिन्न-भिन्न होता है उसी प्रकार मनुष्य द्वारा ली गई दवाईयों का प्रभाव एवं दुष्प्रभाव भी भिन्न भिन्न-होता है। इसलिए उन्होंने ऐसी प्रणाली अपनाने का संदेश दिया जिससे दवाईयों का कम-से-कम दुष्प्रभाव तथा ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंच सके। इस अवसर पर विशेष अतिथि डा. राल्फ एडवर्ड, डा. यशपाल सिंगला, डा. नीलम जैन, डा. कविता गुलाटी सहित शहर के कई गणमान्य लोग उपस्थित थे। इस अवसर पर 110 प्रतिभागियों की पोस्टर प्रस्तुति भी दर्शाई गई।

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