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जंहा दुल्हन रात भर नाचती है

लखनऊ(प्रैसवार्ता)उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे कई ग्रामों में कौल आदीवासी रहते हैं और एक प्रथा के मुताबिक इस कबीले में दुल्हन को ससुराल में जाने से पूर्व सारी रात नाचना पड़ता है। कौल समुदाय में यह उल्लासा पर्व के रूप में मनाया जाता है। नव विवाहिता दुल्हन अपने पति घर में, जब पहला कदम रखती है, तब उसके मन में उठ रहे बहुत अरमान दबाते हुए सबके सामने रात भर नाचना पड़ता है। सांय ढलते ही नाच स्थल को सजाया जाता है, रोशनी का प्रबंध किया जाता है। जगह-जगह मालाएं और बंदनवार ''कोल दहका'' या ''कोल दहकी'' के लिए सजाई जाती है। इस कार्यक्रम को करीब आठ बजे रात्रि शुरू कर दिया जाता है-जो प्रात: सूर्य निकलने से पूर्व समाप्त कर दिया जाता है। इस नाच में दुल्हन थक कर चूर-चूर हो जाती है और नाच समाप्त होने से पूर्व वह एक गीत गाती है, जिसका मतलब होता है, हे ईश्वर अगले जन्म में यदि मुझे औरत बनाये, तो कौल जाति में न भेजना। कौल जाति की प्रथा अनुसार के इस नृत्य को पती, सास-ससुर के अतिरिक्त सभी परिवारजन देखते हैं। उल्लास में आने पर कई बार दुल्हनें की ननदे भी नृत्य में उसका साथ देती है। दूसरे दिन उस स्थान पर बिखरा सामान, याद दिलवाता दिखाई देता है कि यहां दुल्हन रातभर नाची थी।

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