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दलालों का अड्डा बने सरकारी कार्यालय

रेवाड़ी(सिटीकिंग) वाहनों का पंजीकरण कराना हो या फिर वाहन चालका लाइसेंस बनवाना हो, बिना दलाल के समय पर आपका काम होना इतना आसान नहीं है। लाइसेंस और पंजीकरण कार्यालय पूरी तरह दलालों के अड्डे में तब्दील हो चुके हैं। दोनों कार्यालयों में क्लर्क आवेदकों को इतना परेशान करते हैं कि आखिर उन्हें अपने काम के लिए दलालों की शरण में जाना ही पड़ता है। दलाल लोगों से इन कार्यों के लिए मोटा पैसा वसूल करते हैं। इसका हिस्सा क्लर्कों व अफसरों तक भी जाता है, जिस कारण दलालों का काला कारोबार बिना रोट-टोक चल रहा है। कोर्ट व तहसील परिसर में करीब एक दर्जन ऐसे दलाल हैं, जो लोगों से मोटा पैसा लेकर उनका निर्धारित समय पर काम कराते हैं। इन दलालों के लिए यह मोटी कमाई का जरिया बना हुआ है। दोनों कार्यालयों में भ्रष्टाचार इस कदर हावी हो चुका है कि आम आदमी के लिए सीधे कार्यालयों में जाकर न तो लाइसेंस बनवाना आसान है और न ही वाहनों को पंजीकरण कराना। लाइसेंस बनवाने के काम में मोटर ट्रेनिंग स्कूल भी अव्वल हैं, तो वाहनों का पंजीकरण कराने में वाहन विक्रता काफी आगे हैं। वाहन बेचते समय विभिन्न कंपनियों के डीलर ग्राहकों से पंजीकरण शुल्क से एक हजार रुपये तक ज्यादा वसूल करते हैं। डीलर ग्राहकों को इस बात के लिए तैयार कर लेते हैं कि वे पंजीकरण उन्हीं के माध्यम से कराएं। अगर कोई वाहन क्रेता खुद ही पंजीकरण कराने की बात करता है, तो उसे पंजीकरण कार्यालय इतना परेशान कर देता है कि उसे अपनी गलती पर पछताना पड़ता है। सूत्रों के अनुसार कोर्ट और तहसील परिसर में ऐसे दलालों का बोलबाला हैं, जो पंजीकरण कराने से लेकर नए लाइसेंस बनवाने व पुराने लाइसेंस का नवीकरण कराने का धंधा कर रहे हैं। ये दलाल लाइसेंस बनवाने न नवीकरण कराने के बदले निर्धारित शुल्क के अलावा दो हजार रुपए तक अतिरिक्त लेते हैं। इसमें ये कुछ हिस्सा उन क्लर्कों तक भी पहुंचता है, जो लोगों को इन दलालों की शरण में जाने के लिए मजबूर करते हैं। दलाली के इस धंधे ने अपनी जड़ें इतनी मजबूत बना ली हैं कि दोनों ही कार्यालयों में ट्रांसफर कराने के लिए बाबू न सिर्फ प्रभावशाली नेताओं की सिफारिश लगाते हैं, बल्कि इसके लिए मोटा पैसा भी अदा करने को तैयार रहते हैं। एक बार इन शाखाओं में ट्रांसफर होने के बाद ऐसे क्लर्कों के लिए धन की बरसात शुरू हो जाती है।

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