योग क्या है-डा. सत्यवीर सिंह 'मुनि'
जो व्यक्ति योग से परिचित नहीं है,उनके लिए योग एक अद्भुद वस्तु है। लोग सोचते हैं कि योग में मनुष्य किसी अजीव लोक में पहुंच कर ईश्वर के दर्शन करता है। पर ऐसी बात नहीं है, महर्षि पतंजलि नें योग को एक सूत्र में परिभाषित किया है। जो इस प्रकार है-
योगश्चित्तवृत्तिनिरोध: ।।योगदर्शनशात्र समाधिपाद सूत्र दो।।
महर्षि पतंजलि के अनुसार योग चित्त अर्थात मन की वृत्तियों का निरोध है।
चित्त की वृत्तियों के निरोध से क्या होता है ? इसके संबन्ध में महर्षि पतंजलि ने योगदर्शनशस्त्र समाधिपाद के सूत्र तीन में कहा है-
तदाद्रष्टु:स्वरूपेवस्थानम ।। योगदर्शनशात्र समाधिपाद सूत्र तीन।।
योग से स्वरूप की प्राप्ति होती है। स्वरूप की प्राप्ति के बाद ईश्वर की प्राप्ति होती है। बिना स्वरूप को प्राप्त किए ईश्वर को प्राप्त करना असंभव है, अत: यदि आप वास्तव में ईश्वर का दर्शन करना चाहतें है, तो योग द्वारा चित्त की वृत्तियों का निरोध कर स्वरूप की प्राप्ति करों।
रामायण में भगवान राम नें कहा है-
मम् दर्शन फल परम अनूपा, जीव पावै निज सहज स्वरूपा।
चित्त की वृत्तिया अभ्यास और वैराग्य से होती है। निरन्तर धैर्यपूर्वक योगाभ्यास से निर्बिज समाधि प्राप्त होती। साधक परमपद को प्राप्त कर जीवनमुक्त हो जाता है-बिजनौर
योगश्चित्तवृत्तिनिरोध: ।।योगदर्शनशात्र समाधिपाद सूत्र दो।।
महर्षि पतंजलि के अनुसार योग चित्त अर्थात मन की वृत्तियों का निरोध है।
चित्त की वृत्तियों के निरोध से क्या होता है ? इसके संबन्ध में महर्षि पतंजलि ने योगदर्शनशस्त्र समाधिपाद के सूत्र तीन में कहा है-
तदाद्रष्टु:स्वरूपेवस्थानम ।। योगदर्शनशात्र समाधिपाद सूत्र तीन।।
योग से स्वरूप की प्राप्ति होती है। स्वरूप की प्राप्ति के बाद ईश्वर की प्राप्ति होती है। बिना स्वरूप को प्राप्त किए ईश्वर को प्राप्त करना असंभव है, अत: यदि आप वास्तव में ईश्वर का दर्शन करना चाहतें है, तो योग द्वारा चित्त की वृत्तियों का निरोध कर स्वरूप की प्राप्ति करों।
रामायण में भगवान राम नें कहा है-
मम् दर्शन फल परम अनूपा, जीव पावै निज सहज स्वरूपा।
चित्त की वृत्तिया अभ्यास और वैराग्य से होती है। निरन्तर धैर्यपूर्वक योगाभ्यास से निर्बिज समाधि प्राप्त होती। साधक परमपद को प्राप्त कर जीवनमुक्त हो जाता है-बिजनौर