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अवैध दवाईयों की बिक्री करने वाले गिरोह से औषधि जगत को खतरा

सिरसा(सिटीकिंग)औषधि व्यापार जगत में अवैध दवाईयां निर्माण करने, तस्करी तथा विकल्प की आड़ में घटिया दवाईयों की बिक्री करने वाला एक समांतर गिरोह देश भर में तैयार हो गया है, जिससे औषधि उद्योग के साथ-साथ जीवन और मौत के बीच झूलते लोगों को बचाने के लिए प्रयासरत चिकित्सकों के विश्वास के लिए एक बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है। इसी वजह से आम लोगों में यह भावना बनती जा रही है, कि चिकित्सा जगत में सेवा भावना की अपेक्षा लूट सिद्धांत हावी हो गया है। दरअसल दवाईयों के व्यापार में 90 प्रतिशत कम्पनीज, होलसेल तथा रिटेल डीलर दवा विक्रेता 60 से 75 प्रतिशत लाभ कमाते हैं। सामान्य अस्पताल, कुछ धर्मार्थ चिकित्सालयों के इर्द-गिर्द के मैडीकल हाल इस अवैध औषधि व्यापार जगत से जुड़े हुए हैं, जबकि अन्य कई मैडीकल में भी इस रोग से अछूते नहीं है। सूत्रों अनुसार दवाईयों के अधिकृत विक्रेताओं के अतिरिक्त कुछ लोग दिल्ली से थोक में दवाईयां लाते हैं, और अपने घरों या अन्य स्थानों पर गोदाम बनाकर शहर व ग्रामीण क्षेत्रों में सप्लाई करते हैं। सिरसा शहर में एक ऐसा गोदाम पकड़ा गया था। चिकित्सक अभी मानने लगे हैं, कि इस तरह का कारोबार करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। ज्यादातर मैडीकल हाल वाले डाक्टरों द्वारा लिखी गई दवाई के स्थान अन्य दवाई देने से भी गुरेज नहीं करते, जिससे दुकानदार घटिया दवा देकर भारी मुनाफा कमाते हैं। एक चिकित्सक ने नाम न छापने पर प्रैसवार्ता को बताया सीफोटैक्सिस नामक एंटी बायोटैक टीके के स्थान पर एंपीलिसलीन नामक टीका अक्सर दुकानदार देते हैं और मजेदार बात यह है, कि उस टीके के उपर लेबल सीफोटैक्सिस का होता है। सीफोटैक्सिस नामक यक टीका काफी महंगा होता है, मगर इसके स्थान पर विकल्प के रूप में दवा विक्रेता अच्छा मुनाफा कमाने के लिए एंपीलिसलीन देते हैं। चिकित्सक मानते हैं, कि बड़ी कम्पनियों द्वारा तैयार की जाने वाली दवाईयों के विकल्प के रूप में बिकने वाली दवाईयों को औषधी जगत में 'जैसरिक' कहा जाता है और आम तोर पर इन दवाईयों पर लगे लेबल पर दवा के वास्तविक मूल्य से 10 गुणा अधिक मूल्य प्रिंट होता है। ज्यादातर दवा विक्रेता इन दवाईयों पर लगे प्रिंट रेट पर ही दवा देते हैं। इसी प्रकार ग्लूकोज की बोतलों पर भी लागत से तीन या पांच गुणा तक अधिक कीमत छपी होती है, जिसका लाभ दवा विक्रेता उठाता है। इस क्षेत्र की सबसे अधिक चिंताजनक बात यह है कि चिकित्सकों व दवाईयां बनाने वाली कम्पनियों के बीच भी अवैध व्यापार होने लगा है, जिसे सामान्य भाषा में घूस या नजराना कहा जाता है। दवा कम्पनियों के प्रतिनिधि, चिकित्सकों को बड़े स्तर पर लालच देकर उनसे अपनी कम्पनी की दवाईयां लिखने के लिए मजबूर करते हैं। सूत्र बताते हैं कि अच्छी कम्पनियों डाक्टरों को कार, स्कूटर, फ्रिज, म्यूजिक सिस्टम, वाशिंग मशीन तथा नकद उपहार देती है। जिस कारण डाक्टर उस कंपनी की दवा लिखकर उक्त कंपनी को लाभ पहुंचाते हैं, जबकि उसी साल्ट से बनी दवाईयां काफी सस्ते पर उपलब्ध हो जाती हैं। सरकार के निर्देशानुसार दवा विक्रेताओं को स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रत्येक दवाई का बिल काटना जरूरी है, लेकिन दवा विक्रेता इसका पालन नहीं करते। इस तरह से सरकारी राजस्व को क्षति पहुंचती है, वहीं रोगियों को भी नकली दवाईयों की बिक्री साबित करने में दिक्कत आती है। शहरों के ज्यादातर निजी अस्पतालों के भीतर स्थित मैडीकल स्टोर के संचालक 30 से 50 हजार रुपये तक प्रति मास किराया देते हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक दवाई पर अस्पताल के चिकित्सक का कमीशन तय होता है। ऐसी स्थिति में दवा विक्रेता को विवश होकर कई गुणा ज्यादा पैसा रोगियों से वसूलना पड़ता है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता, कि स्वास्थ्य विभाग इससे बेखबर है, बल्कि औषधि अवैध व्यापार करने वालों से सांठगांठ के चलते देखकर भी अनदेखा किया जा रहा है।

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