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पशु क्रूरता निवारण अधिनियम पर अधिक संजीदगी से काम करने की आवश्यकता:कादयान

सिरसा(सिटीकिंग) पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों को कड़ाई से लागू करने के लिए राज्य सरकार को अधिक संजीदगी के साथ काम करने की आवश्यकता है। यह कहना है कि पशुओं पर क्रूरता रोकने के अपने प्रयासों के लिए चर्चित पीपल फॉर एनिमल हरियाणा के अध्यक्ष नरेश कादयान का। कादयान चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो स्टेशन के कार्यक्रम वेबवार्ता में पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह चौहान के साथ श्रोताओं से रूबरू हो रहे थे। वेबकांफ्रेंसिंग के जरिए दिल्ली से सिरसा के विद्यार्थियों व श्रोताओं से रूबरू हुए कादयान ने कहा कि पशु क्रूरता अधिनियम उन्नीस सौ साठ के तहत केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके वर्ष दो हजार एक में सभी जिलों में संबंधित उपायुक्तों की अध्यक्षता में पशु क्रूरता निवारण समितियों का गठन करने का प्रावधान किया था। इन समितियों का कार्य कानून के विभिन्न प्रावधानों को लागू करने की प्रक्रिया की निगरानी करना है। खेदजनक स्थिति यह है कि राज्य के अधिकांश जिलों में इन समितियों का गठन ही अब तक नहीं हुआ है और हिसार, करनाल, फरीदाबाद और पंचकूला आदि जिन जिलों में यह समितियां बनी हैं, वहां ये लगभग निष्क्रिय हैं। उन्होंने दावा किया कि पिछले अनेक वर्षों से वे इन समितियों को सक्रिय करने के लिए सरकार के साथ विभिन्न स्तरों पर पत्रव्यवहार करते रहे हैं और थक हार कर इसके लिए उन्हें हाइकोर्ट में एक याचिका दायर करनी पड़ी थी। यह याचिका पांच साल से अधिक समय पर माननीय न्यायालय में विचाराधीन है।
कादयान ने कहा कि हरियाणा में ही नहीं समूचे देश में मीट की दूकानों के संचालन और बूचडख़ानों के संबंध में जारी केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों की खुली अवहेलना हो रही है। अवैध बूचडख़ाने व मीट की दूकानों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रावधान कानून में मौजूद हैं मगर कोई कार्रवाई करने के लिए राजी ही नहीं है। पशुओं पर होने वाली क्रूरता के सिलसिले में नरेश कादयान आक्सिटॉसिल इंजेक्षन के दुरूपयोग को भी बड़ी चुनौती करार देते है। दूध निकालने के लिए इस टीके का उपयोग कानून में प्रतिबंधित है। डाक्टर की पर्ची के बगैर इसकी बिक्री नहीं हो सकती। मगर जमीनी हकीकत यह है कि यह हर जगह धड़ल्ले से बिक भी रहा है और इसका दुरूपयोग भी जारी है। उन्होंने कहा कि इस टीके का दूध निकालने के लिए उपयोग न केवल पशुओं के लिए हानिकर है बल्कि उनका दूध पीने वालों की सेहत के साथ भी अपराधिक खिलवाड़ है।
नरेश कादयान जोकि हाल ही में मंदिरों में प्रयोग होने वाले शंखों पर प्रतिबंध से जुड़ी खबरों के कारणा भी खासे चर्चा में रहे हैं, कहते हैं कि मंदिरों में परंपरागत रूप से बजाए जाने वाले शंख प्रतिबंधित श्रेणी में नहीं आते । इसलिए किसी भी धार्मिक संगठन या धार्मिक प्रवृत्ति के नागरिक को चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। मगर शंखों की कुछ श्रेणियां प्रतिबंधित है और उनका भंडारण, बिक्री या उपयोग करने वालो का दंडित किए जाने का किसी को विरोध नहीं करना चाहिए। कादियान बताते हैं कि पशुओं के प्रति कू्र रता के संबंध में कानून में जो प्रावधान हैं उनकी आम लोगों को जानकारी नहीं है। इस मामले में विशेष जागरूकता अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने इस संबंध में चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग और सामुदायिक रेडियो स्टेशन के साथ मिलकर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन करने की इच्छा भी जताई। उन्होंने यह भी माना कि देशभर में ऐसे लोगों के गिरोह भी सक्रिय हैं जो पशु क्रूरता निवारण के नाम पर कई तरह के गोरखधंधे करते हैं। इनके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की दरकार है।
कादयान ने कहा कि रोक के बावजूद हरियाणा के विभिन्न हिस्सों में खरगोश, कबूतर, बटेर व मोर के शिकार की घटनाएं हो रही हैं। इन्हें सरकारी अमले को अधिक प्रभावशाली बनाकर और आमजन के सहयोग से ही रोका या कम किया जा सकता है। उन्होंने युवा वर्ग से इस दिशा में काम करने के लिए आगे आने का आवाहन किया।

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