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संगीत व फिल्मी जगत संघर्ष का क्षेत्र

11 जनवरी 2010

प्रस्तुति: प्रवीन कुमार
संगीत व फिल्मी जगत संघर्ष का क्षेत्र है। इसमे कठोर तप्सया की जरूरत है। इसके द्वारा बहुत ज्यादा समाज सेवा की जा सकती है। परन्तु सांस्कृति स्थानीय लोगो के सहयोग के बिना विकसित नही हो सकती। इसके विकास के लिए आम जन के सहयोग की आवश्यकता है। इतने विशाल भारत मे अधिकतर कला तो छिपी ही रह जाती है। बहुत सारे कलाकार अपनी कला को भीतर लिए ही मर जाते हैं। यह कहना है। हरियाणवी पॉप कलाकार गजेंद्र फौगाट का। संगीतकार फौगाट सामुदायिक रेडियो के एक कार्यक्रम मे पत्रकारिता विभाग के छात्र सुधीर के साथ क्षेत्र की जनता के साथ रूबरू हुए व अपनी आने वाली एलबम का गाना जाट चालैया रै अपनी सुरीली आवाज मे सुना कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
आप बचपन के दिनों को कैसे याद करते हैं?
बचपन ही एक ऐसा समय होता है। जिसे कि अविस्मरणीय पल कहा जाता है। क्योंकि बचपन की गतिविधियों मे परमात्मा की भी हिस्सेदारी होती है। उस समय वह हर तरह के छल-कपट से दूर होता है। मेरा बचपन भी अठखेलियों मे गुजरा जो कि आज के हिसाब से बहुत बुरा लगता है। परन्तु उस समय वह मह्ज एक शरारत थी। अपने बचपन को याद करते हुए उन्होंनें एक शायर की पक्तियों को कुछ यूं कहा:
मेरे दिल के किसी कोने मे मासूम सा बच्चा।
बड़ों की देख कर दुनिया ,बड़ा होने से डरता है।
अपने संगीत व फिल्मी जगत के बारे में बताएं?
खेल के क्षेत्र मे अपना हाथ अजमाने के बाद मेरी एकाएक संगीत के क्षेत्र मे रूची बढ़ी व मैने गायन के क्षेत्र मे कदम रखा। उसके बाद भगवान की कृपा व लोगो के आर्शीवाद के मै बुलंदियो को छूता चला गया। जिसके पश्चात मैने गुरदास मान के साथ स्टेज कार्यक्रम भी किए व बीस हरियाणवी एलबम जनता की सेवा मे पेश की। जिसमे कि जाटा का छोरा, शिव बमलहरी आदि मे लोगो का बहुत ज्यादा प्यार व दुलार मिला। इसके साथ साथ मैने फिल्मी क्षेत्र मे भी काम किया। जैसे की किस्मत,शिव रजनी जैसी फिल्मों मे को करने का मौका मिला। जिसे मैने बखूबी तरीके से निभाया।
हरियाणवी कलाकारों द्वारा पंजाबी संगीत की नकल के बारे में आप क्या कहेंगें?
उन्नीस सो बावन मे भी पंजाबी संगीत फिल्मी जगत मे था। परन्तु उन्नीस सो छयासठ मे हरियाणा अस्तित्व मे आया और उसके बाद भी यह कृषि प्रधान क्षेत्र रहा व संस्कृति की ओर कोई ध्यान नही दिया गया। जब संस्कृति की ओर प्रेरित हुए तो मात्रा अधिक हो गई व गुणवत्ता मे कमी आ गई। जिससे की नकल करना स्वभाविक था। हमे किसी चीज का ज्यादा सहारा नही लेना चाहिए। इसमे अध्ययन की कठोर अवश्यकता है। संगीत सात सुरों का संगम है व किसी अच्छी चीज़ का नकल करना बुरा भी नही है। यहाँ के लोग सक्षम हैं परन्तु उन्हे अच्छा खरचने की आदत नही है। जिस कारण हमारे कलाकार ओर राज्यों से पिछड़े हुए है।
संगीत मे आपके आदर्श कौन हैं व आप खुद को किस स्थान पर पाते हैं?
संगीत मे मेरे आदर्श गुरदास मान हैं। मै बचपन से ही उनके गीत गाता था। जहां तक संगीत मे स्थान की बात है। एक बार तानेसेन के चेलो ने उनसे पूछा की आप संगीत मे स्वंय को किस स्थान पर मानते हैं। तो वे उन्हे एक समुंद्र के किनारे ले गए व समुंद्र से चुली भर पानी लिया और बूंद बूंद कर उसे गिरा दिया। जब अंतिम बूंद गिरी तो कहा कि मै इसका एक हिस्सा हूँ बाकी सारा समुद्र संगीत है। जब उनका हैसीयत यह थी तो मैं कहां हूँ। इसका अंदाजा स्वयं ही लगा लें।

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