चायपत्ती से चलेंगी गाड़ियां
06 जनवरी 2010
नई दिल्ली(वार्ता) पाकिस्तान के एक वैज्ञानिक ने नैनो साइंस की मदद से इस्तेमाल की हुई चाय की पत्ती से बायोडीजल बनाने का दावा करके ऊर्जा के क्षेत्र में नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। पाकिस्तान में नेशनल सेंटर ऑफ फिजिक्स में कार्यरत वैज्ञानिक डॉ. सैयद तजामुल हुसैन और उनकी टीम ने एक वर्ष के गहन शोध के बाद वैज्ञानिक परीक्षणों में पता लगाया है कि जिस चाय की पत्ती को इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है, उससे बायोडीजल बनाने की अपार संभावनाएं हैं। बायोडीजल सामान्य डीजल के गुणों जैसा होता है, बस फर्क यह है कि इसे तेल कुओं से हासिल न करके कृषि उत्पादों की मदद से बनाया जाता है। जैसा हमारे देश में जटरोफा के बीजों से डीजल तेल या गन्ने की मदद से एथनॉल बनाया जा रहा है। इन दोनों उत्पादों का डीजल की जगह प्रयोग भी किया जा रहा है। पाकिस्तान के अखबार ‘द न्यूज’ के अनुसार डॉ. हुसैन की यह महत्वपूर्ण खोज प्रतिष्ठित बायो टेक्नोलॉजी के जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित की जाएगी। डॉ. हुसैन के अनुसार एक किलोग्राम इस्तेमाल हो चुकी चाय की पत्ती से नैनो तकनीक इस्तेमाल करके तकरीबन 560 मिलीलीटर तक बायोडीजल बनाया जा सकता है, लेकिन अगर इसका औद्योगिक उत्पादन हो तो मात्रा बढ़ने की संभावना है। डॉ. हुसैन के अनुसार इतना ही नहीं इस्तेमाल पत्ती से शराब बनाना भी संभव है। इस्तेमाल चायपत्ती से अगर औद्योगिक स्तर पर डीजल बनाना संभव हो पाया तो कृषि, वाहन एवं ईंधन उद्योग के क्षेत्र में क्रांति आ जाएगी। दूसरा इसका सबसे बड़ा फायदा पर्यावरण को होगा। इस डीजल के प्रयोग से सामान्य ईंधन से पैदा होनेवाले धुंए में कमी आएगी, जिससे पर्यावरण साफ-सुथरा रहेगा। इसके अलावा धरती पर बढ़ रही गर्माहट पर भी काबू पाया जा सकेगा और चायपत्ती उगानेवाले किसानों की आय के अवसरों में बढ़ोतरी हो सकेगी।
नई दिल्ली(वार्ता) पाकिस्तान के एक वैज्ञानिक ने नैनो साइंस की मदद से इस्तेमाल की हुई चाय की पत्ती से बायोडीजल बनाने का दावा करके ऊर्जा के क्षेत्र में नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। पाकिस्तान में नेशनल सेंटर ऑफ फिजिक्स में कार्यरत वैज्ञानिक डॉ. सैयद तजामुल हुसैन और उनकी टीम ने एक वर्ष के गहन शोध के बाद वैज्ञानिक परीक्षणों में पता लगाया है कि जिस चाय की पत्ती को इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है, उससे बायोडीजल बनाने की अपार संभावनाएं हैं। बायोडीजल सामान्य डीजल के गुणों जैसा होता है, बस फर्क यह है कि इसे तेल कुओं से हासिल न करके कृषि उत्पादों की मदद से बनाया जाता है। जैसा हमारे देश में जटरोफा के बीजों से डीजल तेल या गन्ने की मदद से एथनॉल बनाया जा रहा है। इन दोनों उत्पादों का डीजल की जगह प्रयोग भी किया जा रहा है। पाकिस्तान के अखबार ‘द न्यूज’ के अनुसार डॉ. हुसैन की यह महत्वपूर्ण खोज प्रतिष्ठित बायो टेक्नोलॉजी के जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित की जाएगी। डॉ. हुसैन के अनुसार एक किलोग्राम इस्तेमाल हो चुकी चाय की पत्ती से नैनो तकनीक इस्तेमाल करके तकरीबन 560 मिलीलीटर तक बायोडीजल बनाया जा सकता है, लेकिन अगर इसका औद्योगिक उत्पादन हो तो मात्रा बढ़ने की संभावना है। डॉ. हुसैन के अनुसार इतना ही नहीं इस्तेमाल पत्ती से शराब बनाना भी संभव है। इस्तेमाल चायपत्ती से अगर औद्योगिक स्तर पर डीजल बनाना संभव हो पाया तो कृषि, वाहन एवं ईंधन उद्योग के क्षेत्र में क्रांति आ जाएगी। दूसरा इसका सबसे बड़ा फायदा पर्यावरण को होगा। इस डीजल के प्रयोग से सामान्य ईंधन से पैदा होनेवाले धुंए में कमी आएगी, जिससे पर्यावरण साफ-सुथरा रहेगा। इसके अलावा धरती पर बढ़ रही गर्माहट पर भी काबू पाया जा सकेगा और चायपत्ती उगानेवाले किसानों की आय के अवसरों में बढ़ोतरी हो सकेगी।