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हरियाणवी एलबमों में अश्रलीलता व फूहड़पन की भरमार: कर्मबीर फौजी

26 जनवरी 2010

सिरसा(सिटीकिंग) जाने-माने हरियाणवी गायक कर्मबीर फौजी का मानना है कि हरियाणवी पॉप के नाम पर जो कुछ भी हाल ही के बरसों में बाजार में आया है, उसे हरियाणवी संस्कृति, जीवनशैली और बिंबों को प्रदेश व देश की सीमाओं से पार ले जाने और लोकप्रिय बनाने में कामयाबी हासिल की है। साथ ही वे स्वीकार करते हैं कि हरियाणवी एलबमों के बाजार में बहुतायत में अश्रलीलता व फूहड़पन की भरमार है। चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो पर केंद्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान के साथ क्षेत्र के लोगों के साथ रूबरू हुए युवा गायक ने कहा कि प्रोडयूसर पैसे कमाने के कारण अश्रलीलता को बढ़ावा देते हैं और यह सिलसिला रूकना चाहिए। जेसीडी नेशनल क्रिकेट एकेडेमी के तत्वावधान में यहां चल रहे गली क्रि केट टूर्नामेंट के सिलसिले में सिरसा आए फौजी की अब तक करीब तीन दर्जन हरियाणवी ऑडियो व वीडियो एलबम रिलीज हो चुकी हैं और वे स्वयं तीन सौ के लगभग हरियाणवी गीत लिख चुके हैं। उन्होंने दर्जनों पुराने लोकगीतों को डीजे बीट्स के अनुरूप ढ़ाल कर नए अंदाज में गाया है और इसे वे समय की आवश्यकता करार देते हैं। हैलो सिरसा कार्यक्रम में सिरसावासियों से बातचीत करते हुए फौजी ने जहां श्रोताओं की फरमाइश पर अपने चुनींदा गीत सुनाए वहीं हरियाणवी लोकसंगीत और हरियाणवी पॉप के विभिन्न पक्षों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि स्कूल के दिनों से ही उनकी रूचि गायन में थी मगर उनके परिजन गायकी को अच्छा काम नहीं मानते थे और इसलिए उनकी इस रूचि का घर में घोर विरोध हुआ। कैथल जिले के पट्टी अफगान में जन्में फौजी बताते हैं कि गांव में पहलवानी का खासा प्रचलन था इसलिए परिवार के लोगों ने उन्हें कुश्ती के रास्ते पर धकेल दिया। कुश्ती के दम पर ही उनका बारहवीं कक्षा में पढ़ते हुए सेना में चयन हो गया। उन्होंने कहा कि सेना में रहते हुए उन्हें महसूस होता था कि हरियाणवी गाने वाले कम ही लोग होते थे। फौज में रहते हुए अपनी गायकी के कारण साथियों में मशहूर होने के कारण उनके मन में अपनी गायकी के प्रति विश्वास में और इजाफा हुआ। उन्होंने कहा कि शरीर में चोट लगने के कारण जब उन्हें सेना छोडऩी पड़ी तो उन्होंने हरियाणवी गायन को अपना कॅरियर बनाने का विचार किया। उन्होंने कहा कि गीत लिखने का सिलसिला तो उन्होंने सेना में रहते हुए ही प्रारंभ कर दिया था। उन्होंने कहा कि गायन में उनका नाम जैसे जैसे स्थापित हुआ परिवार के जो लोग गायन को अच्छा नहीं मानते थे उन्हें भी मुझ पर गर्व होने लगा। एक सवाल के जवाब में फौजी ने कहा कि पंजाब में लोग संगीत और पॉप हरियाणा से बहुत विकसित है और इसकी एक वजह यह है कि वहां आम आदमी द्वारा संगीत को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। कर्मबीर फौजी मानते हैं कि पंजाब में आम आदमी के समर्थन के बल पर ही पंजाबी संगीत, उसके लिए लिखने, गाने व बजाने वालों की संपन्नता के वे द्वार खुल सके, जिन्हें देखकर किसी को भी इष्र्या होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि हरियाणा में अच्छे हरियाणवी कलाकारों को जहां आम जन का बहुत अधिक साथ्र नहीं मिलता वहीं सरकारों का ध्यान भी इस और अब तक नहीं गया है। सरकार बेहतर लोक कला को बढ़ावा देने के लिए कुछ ठोस आर्थिक मदद मुहैया कराए तो हरियाणवी संगीत को फूहड़ता से बचाकर रखा जा सकता है। पंडित लखमी चंद और पंडित मांगे राम को अपना आदर्श व प्रेरणा स्रोत बताने वाले कर्मबीर फौजी का कहना है कि सामाजिक सरोकारों को ध्यान में रखकर लेखन व गायन इन दिनों कम इसलिए हो रहा है चूंकि उसका बाजार नहीं है। एक श्रोता ने जब फौजी के अपने एलबमों के फिल्मांकन में फूहड़ता की ओर इशारा किया तो कर्मबीर फौजी ने दावा किया कि उनका प्रयास ऐसे एलबम तैयार करने का होता है जिन्हें परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर देख पाएं। मगर फिर भी यदि उनके किसी एलबम में कोई ऐसा तत्व है तो भविष्य में उसे बदलने में वे कोई संकोच नहीं करेंगे। फौजी ने श्रोताओं के अनुरोध अपने चर्चित गीत- पाणी आली पाणी प्या दे,नीचे चाल्ले टेंक कैरियर, साथ रहणिए संग के साथी,पतला दुपट्टा तेरा मुंह दीखे आदि गाकर सुनाए।

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