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नारी की कोख सुरक्षित नहीं

03 जनवरी 2010

प्रस्तुति: प्रैसवार्ता
र्तमान में हमारे देश में लड़कियों का प्रतिशत लड़को की अपेक्षा कम है। आज अगर दस लड़के हैं, तो कई समाज में सिर्फ 6 लड़किया हैं, जो चिंता का विषय हैं। अगर हम नहीं जागे, तो भविष्य में स्थिति भंयकर होने वाली है। जिसके परिणामस्वरूप भविष्य में अनेक समाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और नैतिकता पर संकट के बादल मंडराने लगेंगे। विगत 20 साल में इस समस्या ने सबसे गंभीर रूख ले लिया, जब से विज्ञान ने हमें यह सुविधा प्रदान की है कि गर्भ की जांच करेके यह मालूम किया जा सकता है कि गर्भ में लड़का हैं या लड़की, ऐसे में लोग गर्भ में लड़की का पता लगते ही उसे मौत की नींद सुला देते है यानि नारी आज मां के उदर में सुरक्षित नहीं रही। पहले भूलचूक से लड़की पैदा हो भी जाती थी, लेकिन आज भ्रूण हत्या जोर पकड़ रही है। उधर डाक्टरों को भी मोटी कमाई करने का नया गुर मालूम पड़ गया, तो वे भी ऐसी जांच करके बताने में जुट गए। पहले वे ऐसी जांच करने के 200 रूपये फीस लेते थे, अब वे 1500 से 5 हजार रूपये तक लेने लगे हैं। इसका यह दुष्परिणाम सामने आ रहा है और अभी और आने को है कि लडकियों की संख्या घटती जा रही है। इस संबंध में व्यापक विरोध को देखते हुए सरकार ने श्प्रिनेअल डाइग्नोस्टिक टेकनीक रेगुलेशन एंड प्रिवेन्शन आफ मिसयूस एक्ट-1994 के अंतर्गत 1 जनवरी 1994 से यह कानून लागू कर दिया है, कि जो डाक्टर नर्सिंग होत क्लीनिक आदि जैनेटिक सैंटर के नाम से अपना क्लीनिक चलाएंगे, जहां पर गर्भ के शिशुओं की इस प्रकार जांच की जाएगी कि गर्भ में लडका है या लडकी, उसके लिए जांच करवाने वाले दंपति को तीन साल की सजा, डाक्टर को भी 3 साल की सजा और 10 हजार रूपये से 40 हजार रूपये तक का अर्थदंड देने का प्रवाधान रखा गया। इस संसार में हर बात के लिए कानून बने हुए हैं, फिर भी अपराध होते हैं। कानून, अपराध के बाद काम है, लेकिन जो हो गया, सो हो गया इसलिए भ्रूण हत्या को कोई कानून नहीं रोक सकता। इसे रोकना सिर्फ हमारे हाथों में है। हमने पेडों को काटा, तो प्रदूषण से प्राप्त कई आपदाओं का त्रास हम भोग रहे है। हम क्यो प्रकृति से छेडख़ानी करनी की चेष्टा कर रहे हैं? यदि हम इस मूर्खता को बरकरार रखेंगे तो परिणाम गंभीर होने वाले हैं। हमें चाहिए कि हम अपने घर आंगन में नारी को सहर्ष हसते खलते देखने की इच्छा पैदा करें। आने वाली पीढ़ी पर मंडरा रहे इस खतरे से आधुनिक विज्ञान के वरदान को अभिशप्त होने से बचाएं।

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