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नुक्कड़ नाटक पर विशेष

22 जनवरी 2010
प्रस्तुति: मनमोहित ग्रोवर
नुक्कड़ नाटक एक ऐसी लोक कला है जो सरकारी संरक्षण के अभाव में आखिरी सांसें गिन रही है। देश के विभिन्न हिस्सों में इस कला को अपने जीवन का आधार मान कर काम कर रहे जज्बाती लोगों को छोड़ दिया जाए तो इस अनूठी विधा को बचाने के लिए कोई चिंतित नजर नहीं आता। यह कहना है मुंबई में स्मिता पाटिल स्ट्रीट थियेटर का संचालन करने वाले जाने माने नुक्क्ड नाटक कलाकार युसुफ कासमी का। अब तक विभिन्न नुक्कड़ नाटकों के बारह हजार से अधिक शो कर चुके कासमी इन दिनों अपनी एक छोटी सी नाटक मंडली के साथ जेसीडी नेशनल क्रिकेट एकेडेमी के क्रिकेट स्टेडियम में चल रही टी- टेन गली क्रिकेट प्रतिस्पर्धा के प्रचार -प्रसार के मकसद से सिरसा आए हुए हैं। सामुदायिक रेडियो स्टेशन के कार्यक्रम हैलो सिरसा में केंद्र निदेशक वीरेन्द्र सिंह चौहान के साथ श्रोताओं से रूबरू हुए कासमी ने नुक्कड़ नाटक को लेकर अपने खट्टे मीठे अनुभव इस कार्यक्रम में बांटे। उन्होंने कहा कि पहली नजर में किसी को यह लग सकता है कि टेलीविजन और इंटरनेट के इस युग में जहां रंगमंच अपने आप में कहीं गंभीर चुनौतियों से दोचार हो रहा है, वहां नुक्कड़ नाटकों का वर्तमान और भविष्य भले क्या हो सकता है। मगर जमीनी स्थिति इससे अलग है। नुक्कड् नाटक रूपी विधा में अब भी समाज को झकझोरने और उसमें बदलाव का सूत्रपात करने का दमखम कायम है। उन्होंने दावा किया कि कार्पोरेट जगत का ध्यान हाल ही कि वर्षों में इस कला की ओर गया है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि टेलीविजन धारावाहिकों में रोजगार की अनंत संभावनाएं हैं। प्रतिभावान लोग इस क्षेत्र में न केवल अपनी बौद्धिक भूख शांत कर सकते हैं बल्कि साथ साथ खासा धनोपार्जन भी कर सकते हैं। कासमी ने कहा कि टेलीविजन की दुनिया में ऑन स्क्रीन अवसरों के अलावा संपादन, लेखन व अन्य तकनीकी विशेषज्ञों की भी खासी आवश्यकता होती है और इन विधाओं में भी पैसे की कोई कमी सक्षम लोगों के लिए नहीं है। प्रस्तुत है इस बातचीत के संपादित अंश :
नुक्कड़ नाटक क्या होता है? प्रसार के लिए जब आपकी किसी बात को कही भी सुना नही जाता। तब उसे एक नाटक का रूप देकर और विभिन्न गलीयों के नुक्कड़ में जनता के सामने किया जाता है। भारत में नुक्कड़ नाटय का जन्म पश्चिमी बंगाल में अठारहवीं सदी में विश्व युद्ध के दौरान हुआ। विदेशों में भी एडस और गलोबल वार्मिंग के विषय में नुक्कड़ नाटक किए जाते है। परंतु भारत में सरकार द्वारा सहयोग नही देने के कारण यह कला अंतिम सांसे ले रही है। नुक्कड़ नाटय मंच द्वारा बहुत अच्छे स्तर पर समाज सेवा की जा सकती हैं।
नुक्कड़ नाट्य मंच पर किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है? जब नुक्कड़ नाटक प्रतियोगिता का आयोजन होता है तो कई गु्रप के कलाकार एक मंच पर एकत्रित होते है। मुम्बई में अब तक चार गु्रप अच्छे से काम कर रहे। जो कि आतंकवाद, मादक सेवन पदार्थ जैसे विषयों पर कार्य कर रहे है। आम आदमी की समस्याओं का जिक्र नुक्कड़ नाटकों में होना चाहिए। कान्सेप्ट, स्क्रिप्ट और डॉयलाग के आधार पर दर्शक नाटक को पसंद करते है। जहां तो इस प्रतियोगिता के युग में मनोरंजन की दुनिया ने बहुत तरक्की कर ली है। परन्तु आज भी मेरे नाट्य के दौरान लगभग एक हजार लोग एकत्रित होते हैं।
एकटिंग के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए क्या करना होगा? लोग आज भिन्न हस्तियों के नाम से किस्मत आजमाते है कि मुझे तो उस जैसा बनना है। परन्तु वे उसके द्वारा जीवन में किए गए संघर्ष को अनदेखा कर देते हैं। इस क्षेत्र में आने के लिए कठोर तपस्या की आवश्यकता है। इस क्षेत्र के लिए धैर्य का होना भी अति आवश्यक है। अच्छे कलाकार कभी एकटिंग नही करते। वे सामान्य भाव से ही सब काम करते हैं। इस क्षेत्र के लिए प्रशिक्षण इतना महत्व पूर्ण नही है जितना कि उतार-चढाव। जो कि कोई भी अच्छा निर्देशक बता सकता है।
नुक्कड़ नाटक को मजबूती देने के लिए किस सहयोग की आवश्यकता है? सरकार कि इलावा कारपरेट जगत का भी एक अह्म स्थान है। सरकार को भी लगातार इस क्षेत्र से जुड़े लोगो को योग्यतानुसार सहयोग करना चाहिए। क्योंकि ये सस्थाऐ सरकार का ही काम कर रही है। समाज में जागरूकता फैलाना, कोई संदेश पहुंचाना जैसे कार्य ये संस्थाए भली भांती कर सकती है।
गरीब व पिछड़े इलाकों में जहां आज तक भी टी वी संभव नही है। ऐसे इलाको में नुक्कड़ नाट्य द्वारा ही संदेश सुचारू ढंग से पहुंचाया जा सकता है। आम जन को भी चाहिए कि वह मनोरंजन की इस चकाचौंध भरी दुनिया में नुक्कड़ नाट्य कला को नजर अंदाज न करें।

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