ताला जड़कर मांगते हैं मन्नत
कलंदर की दरगाह पर 12वीं सदी से चली आ रही है अनूठी पंरपरा
29 जनवरी 2010प्रस्तुति: प्रैसवार्ता
पानीपत। श्रद्धालु अपने इष्ट देवता को खुश करने के लिए क्या नहीं करते यह किसी से छिपा नहीं। कहीं व्रत रखते हैं तो कहीं पर प्रसाद बांटते हैं। मगर पानीपत स्थित हजरत बू-अलीशाह कलंद की आठ सौ साल पहले ऐतिहासिक दरगाह पर ताला जड़कर मन्नते मांगने की अनूठी परंपरा है। रोजाना देश-विदेश से आने वाले सैकड़ों श्रद्धालु ताला जड़कर मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु कलंदर साहब की दरगाह पर जियारत के बाद शुक्रिया अदा कर ताले को खोल जाते हैं। हजरत बू-अलीशाह कलंदर ने 1209 को पानीपत में जन्म लेकर करीब 40 साल तक धार्मिक शिक्षा ग्रहण कर कई विद्याओं में निपुणता हासिल की। मगर बाद में कारणवश उन्होंने अपनी सभी किताबों को दरिया में फेंक दिया और इबादत के लिए जंगल में चले गए। ऐसी मान्यता है कि करनाल में कुंजपुरा रोड स्थित बुढ़ाखेड़ा स्थान पर कलंदर साहब ने तालाब के पानी में खड़े होकर 36 वर्ष तक कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से खुश होकर एक दिन अल्लाह ने उन्हें दर्शन दिए और उनसे वरदान मांगने को कहा। कलंदर साहब ने कहा कि स्त्री भी आपका बनाया रूप है, मगर दुखद यह है कि उन पर चारों ओर अत्याचार हो रहे हैं। इस पर भी स्त्रियां अपना दुखड़ा किसी को नहीं कह पाती। ऐसा वरदान दो कि उनके दुख दर्द कम हो जाएं। ऐसी मान्यता है कि अल्लाह ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनके सामने आकर जो मां अपने बेटे, पत्नी अपने पति और बहन अपने भाई के लिए सच्चे मन से लोकहित में मन्नत मांगेगी वह जरूर पूरी होगी। उसके बाद यह परंपरा शुरू हो गई। कलंदर साहब के 1324 ईस्वी में रूहपोश होने के बाद दरगाह पर ताला जड़कर मन्नत मांगने की परंपरा शुरू हो गई। कलंदर साहब की दरगाह के व्यवस्थापक सूफी सैयद एजाज अहमद हाशमी ने कहा कि मन्नत पूरी होने के बाद जियारत को आने वाले श्रद्धालु ताला खोलते हैं। उन्होंने दावा किया कि अनेक अवसरों पर मन्नत पूरी होने पर ताला खुद ब खुद चटककर खुल जाता है। श्रद्धालुओं की मौजूदगी में भी कई बार ऐसे अवसर आएं हैं।