'उपभोक्ताओं की समस्या' के विषय पर बातचीत
06 फरवरी 2010
उपभोक्ता कौन होता है?
उपभोक्ता के अधिकारों की सुरक्षा के विषय में २४ दिसंबर, १९८६ को केन्द्र सरकार ने एक कानून पास किया, जिसके तहत उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण किया जा सके। कानून की नज़र में प्रत्येक वह व्यक्ति जिसने किसी भी वस्तु या सेवा को मूल्य अदा करके खरीदा हो वह उपभोक्ता है।
उपभोक्ता हानि होने पर क्या करे?
सर्वप्रथम तो उपभोक्ता के पास यह सबूत होना जरूरी है कि उसने अमुक वस्तु खरीदी है। इसके लिए खरीददारी करते समय बिल की प्रति का लेना अति आवश्यक है, क्योंकि कानूनी कार्यवाई में लिखित दस्तावेज को ही सबूत माना जाता है। यदि आपके पास बिल नहीं है तो आपके पास क्षतिग्रस्त वस्तु का गारंटी या वारंटी कार्ड होना आवश्यक है। ये दोनों कागज आप अदालत में ले जाकर शिकायत दर्ज करवा सकते हैं और हर्जाने की मांग कर सकते हैं।
क्या उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ में नब्बे दिन का प्रावधान है?
किसी भी कानून के निर्माण के वक्त, समय सीमा का प्रावधान अवश्य रखा जाता है कि इतने समय के भीतर इस शिकायत का फैसला कर दिया जाएगा। इसी प्रकार उपभो1ता अदालत में भी तीन महीने का समय दिया गया है कि वह सीमित समय के अंदर उपभोक्ता की समस्या का निदान करे। परन्तु किसी कारणवश यह समय सीमा बढ़ाई जा सकती है। इसका मुख्य कारण यह है कि लाखों की गिनती में केस लंबित हैं और अदालत द्वारा निर्धारित समय सीमा को आगे बढ़ा दिया जाता है।
किन परिस्थितियों में बैंक व बीमा क्षेत्र की सेवाओं के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की जा सकती है?
किसी भी बीमा कंपनी द्वारा कोई गलत सूचना के आधार पर सेवा प्रदान की जाती है या फिर नाजायज बहाने बनाकर सुविधा देने से इंकार कर रही है तो उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। किसी भी बैंक की सेवा लेने पर उपभोक्ता के असंतुष्ट होने के जायज कारण पर, जैसे खाते में रकम होने के बावजूद चैक बाउंस होना, पूरी रकम न मिलना आदि अनेक स्थितियों में अदालत में याचिका दायर की जा सकती है। उपभोक्ता अदालतों का ढांचा क्या है?
प्रत्येक जिले में जिला उपभोक्ता फोरम होती है जिसके तीन सदस्य होते हैं। इन अदालतों में बीस लाख तक के दावे दायर कर सकते हैं। इसके बाद अगले चरण पर राज्य प्राधिकरण आता है। इसके अंदर जिला उपभोक्ता फोरम के फैसले के खिलाफ तीस दिन के अंदर अपील की जा सकती है या बीस लाख से एक करोड़ रुपये तक के दावे के लिए सीधा यहीं अपील की जाती है। इससे उच्च स्तर पर राष्टी्रय कमीशन होती है। जो कि दिल्ली में स्थित है। इसके अंदर राज्य कमीशन के खिलाफ या एक करोड़ से अधिक के दावे दायर कर सकते हैं। अंतिम चरण में सर्वोच्च न्याययालय आता है जिसके अंदर राष्ट्रीय कमीशन के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की जा सकती है।
प्रस्तुति:प्रवीण इंसा व आयुष्मान
उपभोक्ता को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता है। उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह किसी भी वस्तु अथवा सेवा की खरीददारी पर उसका बिल प्राप्त करे। अगर हमारे पास बिल की प्रति है तो हम उस वस्तु के खराब होने पर उसे ठीक करवा सकते हैं। यदि कोई दुकानदार ऐसा करने से मना करता है तो हम उसके खिलाफ उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए वह अदालत से हरजाने के लिए गुहार लगा सकता है और अधिकारों के हनन को रोक सकता है। यह विचार एडवोकेट आशीष सिंगला ने सामुदायिक रेडियो के कार्यक्रम 'हैलो सिरसा' में केन्द्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान के साथ 'उपभोक्ताओं की समस्या' के विषय पर बातचीत के दौरान व्यक्त किए। प्रस्तुत है बातचीत के संपादित अंश:9उपभोक्ता कौन होता है?
उपभोक्ता के अधिकारों की सुरक्षा के विषय में २४ दिसंबर, १९८६ को केन्द्र सरकार ने एक कानून पास किया, जिसके तहत उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण किया जा सके। कानून की नज़र में प्रत्येक वह व्यक्ति जिसने किसी भी वस्तु या सेवा को मूल्य अदा करके खरीदा हो वह उपभोक्ता है।
उपभोक्ता हानि होने पर क्या करे?
सर्वप्रथम तो उपभोक्ता के पास यह सबूत होना जरूरी है कि उसने अमुक वस्तु खरीदी है। इसके लिए खरीददारी करते समय बिल की प्रति का लेना अति आवश्यक है, क्योंकि कानूनी कार्यवाई में लिखित दस्तावेज को ही सबूत माना जाता है। यदि आपके पास बिल नहीं है तो आपके पास क्षतिग्रस्त वस्तु का गारंटी या वारंटी कार्ड होना आवश्यक है। ये दोनों कागज आप अदालत में ले जाकर शिकायत दर्ज करवा सकते हैं और हर्जाने की मांग कर सकते हैं।
क्या उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ में नब्बे दिन का प्रावधान है?
किसी भी कानून के निर्माण के वक्त, समय सीमा का प्रावधान अवश्य रखा जाता है कि इतने समय के भीतर इस शिकायत का फैसला कर दिया जाएगा। इसी प्रकार उपभो1ता अदालत में भी तीन महीने का समय दिया गया है कि वह सीमित समय के अंदर उपभोक्ता की समस्या का निदान करे। परन्तु किसी कारणवश यह समय सीमा बढ़ाई जा सकती है। इसका मुख्य कारण यह है कि लाखों की गिनती में केस लंबित हैं और अदालत द्वारा निर्धारित समय सीमा को आगे बढ़ा दिया जाता है।
किन परिस्थितियों में बैंक व बीमा क्षेत्र की सेवाओं के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की जा सकती है?
किसी भी बीमा कंपनी द्वारा कोई गलत सूचना के आधार पर सेवा प्रदान की जाती है या फिर नाजायज बहाने बनाकर सुविधा देने से इंकार कर रही है तो उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। किसी भी बैंक की सेवा लेने पर उपभोक्ता के असंतुष्ट होने के जायज कारण पर, जैसे खाते में रकम होने के बावजूद चैक बाउंस होना, पूरी रकम न मिलना आदि अनेक स्थितियों में अदालत में याचिका दायर की जा सकती है। उपभोक्ता अदालतों का ढांचा क्या है?
प्रत्येक जिले में जिला उपभोक्ता फोरम होती है जिसके तीन सदस्य होते हैं। इन अदालतों में बीस लाख तक के दावे दायर कर सकते हैं। इसके बाद अगले चरण पर राज्य प्राधिकरण आता है। इसके अंदर जिला उपभोक्ता फोरम के फैसले के खिलाफ तीस दिन के अंदर अपील की जा सकती है या बीस लाख से एक करोड़ रुपये तक के दावे के लिए सीधा यहीं अपील की जाती है। इससे उच्च स्तर पर राष्टी्रय कमीशन होती है। जो कि दिल्ली में स्थित है। इसके अंदर राज्य कमीशन के खिलाफ या एक करोड़ से अधिक के दावे दायर कर सकते हैं। अंतिम चरण में सर्वोच्च न्याययालय आता है जिसके अंदर राष्ट्रीय कमीशन के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की जा सकती है।