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दिमाग याद रखता है “भूला दी गई भाषाएँ”

08 फरवरी 2010
प्रस्तुति: तरकश ब्यूरो
बचपन से लेकर बुढापे तक हम ना जाने कितनी भाषाएँ सुनते हैं और कितनी ही भाषाओं को सीखने का प्रयत्न करते हैं। लेकिन हम सारी भाषाएँ याद नहीं रख पाते। यदि किसी भाषा का लगातार उपयोग ना हो तो वह भूली जाने लगती है। भारत में आज बच्चों को स्कूल में कम से कम 3 भाषाएँ हिन्दी, अंग्रेजी और एक प्रादेशिक भाषा सिखाई जाती है। इसके अलावा अभिभावक अपने बच्चों को कुछ निजी कक्षाओं में भी डालकर नई नई भाषाएँ सीखाते हैं। लेकिन बड़े हो जाने पर इनमे से कितनी भाषाएँ याद रहती हैं? बहुत कम बार ऐसा होता है कि बचपन में सिखी गई सभी भाषाएँ युवावस्था में भी याद रहती है। लेकिन अब कुछ संशोधकों ने पता लगाया है हो सकता हमे ऐसा लगे कि हम कोई भाषा भूल चुके हैं, लेकिन थोड़ा सा प्रयत्न करते ही हमें सब याद आने लगता है। ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के जेफ्री बोवर्स, स्वेन मैटिज़ और सुजैन गेज़ ने एक प्रयोग के द्वारा इस बात की पुष्टि की। उन्होनें कुछ ऐसे ब्रिटिश नागरिक चुने जिन्होनें अपने बचपन का समय भारत तथा अफ्रीकी देशों में बिताया था और हिन्दी तथा जुलु भाषा सिखी थी। जाहिर है युवावस्था आते आते ये लोग इन भाषाओं को भूला चुके थे। अब संशोधकों ने इन स्वयंसेवकों को पार्श्व में चल रहे हिन्दी और जुलु के कुछ शब्द सुनवाए और देखा गया कि उन्हें कितने शब्द याद रहते हैं। इसके बाद इन लोगों को हिन्दी और जुलु भाषा के शब्द अलग अलग छाँटने का प्रशिक्षण दिया गया। संशोधकों के आश्चर्य के बीच इन ब्रिटिश नागरिकों ने हिन्दी और जुलु भाषा की पहचान काफी अच्छी तरह से की, जबकि कई वर्षों से उन्होने इन दोनों भाषाओं को सुना या बोला नहीं था। इस शोध के नतीजे बताते हैं कि भले ही हम किसी सीखी हुई भाषा को भूल जाएँ, परंतु उसकी याद हमेशा हमारे दिमाग में बनी रहती है और जैसे ही हमे उस भाषा को फिर से सीखने का मौका मिलता है हम तेजी से उसे सीख लेते हैं।

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