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नाम जपे है भागों वाला

21 फरवरी 2010
सिरसा(सिटीकिंग) ईश्वर, अल्लाह, परमात्मा, मालिक को याद करने में, उसका नाम लेने में कोई जोर नहीं लगता। कोई घर-परिवार, काम-धन्धा नहीं छोडऩा पड़ता। कोई धर्म-जात नहीं बदलना पड़ता। आप चलते, बैठते, लेटते, काम-धन्धा करते हुए, घर-परिवार में रहते हुए, कहीं भी किसी भी हालात में मालिक का नाम ले सकते हैं। सिर्फ उन बुराइयों की तरफ से मुंह मोड़ लो जो मालिक के रास्ते पर बहुत बड़ी रूकावटे हैं और सुमिरन करते रहो तो तमाम खुशियां मिलेंगी व चिंता, परेशानियां उड़ जाएंगी।उक्त वचन संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने रविवार को शाह सतनाम जी धाम में आयोजित रूहानी सत्संग के दौरान भजन 'नाम जपे है भागों वाला कोई-कोई रे...' की व्याख्या करते हुए फरमाए। सत्संग के दौरान ईश्वर के नाम सुमिरन की महिमा पर प्रकाश डालते हुए संत जी ने कहा कि एक आम आदमी सोचता है कि मैं मालिक का नाम क्यों लूं? मुझमें क्या कमी है? उन्होने कहा कि इन्सान के अंदर बहुत सी कमियां होती हैं जो दिखाई नहीं देती। लेकिन वह इन्सान उन कमियों को खुद जानता होता है। अंदर की बेचैनी, परेशानी, चिंता, इन्सान के वो बिगड़े हुए कार्य जो किसी को बताए नहीं जा सकते, रिश्तों की वो खटास। वो मानसिक, शारीरिक परेशानियां जिनको आदमी किसी के साथ बांटना नहीं चाहता। आने वाले पहाड़ जैसे रोग जिसका इन्सान को पता नहीं होता। जन्म-मरण के महारोग जो किसी भी चीज से नहीं कटता। इन तमाम चीजों को खत्म करने के लिए ईश्वर का नाम लेना अति जरूरी है। अगर आप मालिक का नाम जपेंगे तो आपके अंदर की तमाम चिंताएं खत्म होती जाएंगी और अंदर-बाहर से खुशियों से मालामाल होते जाएंगे। उन्होने कहा कि मालिक के नाम वो शक्ति है जो बड़े से बड़े पहाड़ से कर्म को कंकर में बदल सकती है। लेकिन नाम का सुमिरन किया जाए। सुबह-शाम लगातार 1-1 घंटा सुमिरन किया जाए तो आप पर यकीनन मालिक की कृपा-दृष्टि बरसेगी, क्योंकि मालिक का नाम सुखों की खान है। लेकिन आज लोग नाम लेना नहीं चाहते। वैसे लोगों ने नाम ले लिया है लेकिन नाम का जाप नहीं करना चाहते। आदमी के अंदर सारा दिन मन की चालें चलती रहती हैं और मन चालों से जो आजादी दिलाता है उस राम-नाम को इन्सान कभी याद नहीं करता। उन्होने कहा कि इन्सान को जब को दुख, परेशानी, बीमारी आती है तो मालिक को याद करता है। लेकिन उस समय परेशानी ही इतनी होती है कि आदमी मालिक के नाम में दिल को लगा नहीं पाता। जैसे कोई बीमारी, शारीरिक, सामाजिक परेशानी, घर-परिवार की परेशानियां मुंह उठा लेती है तो आदमी का मुंह मालिक की खुशियों से हट जाता है और चाहते हुए भी सुमिरन नहीं होता। जो सुमिरन के थोड़े-थोड़े आदी होते हैं परेशानी के समय उनका तो सुमिरन एक्सपे्रस ट्रेन की तरह चलता है। जो सुमिरन के आदी नहीं होते उनका मन इन्सान को परेशानियों में फंसाए रहता है और आदमी तड़पता रहता है। इन्सान परेशानियों से निकलने के बारे में सोचता रहता है और सुमिरन नहीं कर पाता। इसलिए आप मालिक के नाम के आदी बन जाओ। सत्संग के दौरान पूज्य गुरू जी ने श्रद्धालुओं द्वारा पुछे गए रूहानियत संबधित प्रश्रों के उतर देकर उनकी जिज्ञासाओं को भी शांत किया। सत्संग के समापन अवसर पर बिना दान दहेज के कई शादियां भी करवाई गई। सत्संग के उपरात पूज्य गुरू जी ने हजारों लोगों को गुरूमंत्र, नामशबद की दीक्षा दी। इस अवसर पर लंगर भोजन भी करवाया गया।

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