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सिरसा में मधुमेह व चर्म रोग पर वेबवार्ता कार्यक्रम आयोजित

04 फरवरी 2010
प्रस्तुति: मनमोहित ग्रोवर
मारे समाज में यह धारणा बनी हुई है कि दवाईयां शरीर को खराब करती है। इसलिए लोग समय पर दवाई नहीं लेते जिससे मरीज की स्थिति गंभीर हो जाती है। दूसरा कारण यह है कि झोला छाप डॉक्टरों के कारण भी लोगों का विश्वास समाप्त होता है। किसी भी रोगी की जाँच हमेशा प्रशिक्षित चिकित्सक से ही करवाएं। कभी भी रोगी की जिन्दगी से खिलवाड़ न करें। आज सामुदायिक रेडियो केन्द्र के कार्यक्रम हैलो सिरसा में केन्द्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान से मधुमेह व चर्म रोग पर बातचीत के दौरान डॉ. के.के बालिया ने उपरोक्त बातें कहीं। इस दौरान चर्म रोग व मधुमेह विशेषज्ञ डॉ. बालिया ने श्रोताओं की समस्याओं का निदान भी किया। पेश है बातचीत के मुख्य अंश:
मधुमेह क्या होता है?
वास्तव में यह मैटाबोलिक रोग है जिससे पैंकिर्या से इंसुलिन का निमार्ण कम हो जाता है। रक्त मे ग्लुकोज़ की मात्रा बढ़ जाती है। यदि कोई मरीज लगातार रोग से ग्रस्त रहता है तो उस पर दवाई का असर भी नहीं होता। रोग के पुन: उभरने की समस्या भी रहती है। मधुमेह दो प्रकार का होता है। जुरेनल मधुमेह बचपन में ही होता है। पैंकिर्या नाम मात्र के इंसुलिन पैदा करता है। तीस या पैंतीस वर्ष की आयु के बाद मधुमेह के होने से अभिप्राय यह है कि पैंकिर्या सुस्त हो गया है। इसे टाइप टू डायबिटीज़ भी कहते हैं।
क्या मधुमेह संक्रामक रोग है और इसके लक्षण क्या हैं?
यह संक्रामक रोग नहीं है। इसमें खानदानी कारक अहम् भूमिका निभाते है। अगर मां-बाप को मधुमेह है तो बच्चों को भी यह रोग हो सकता है। इससे बचने के लिए हमें सदा सचेत रहना चाहिए और परहेज पर भी ध्यान देना होगा। आज हमारी जीवन शैली बदल गयी है। जंक फूड की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है। पोष्टिक तत्व भी बहुत लिए जाते हैं, परन्तु व्यायाम नहीं किया जाता, जिससे हमारा पाचन बिगड़ जाता है। आज सभी लोग आरामदायक जीवन जीना पसंद करते है। मधुमेह के मुख्यत: लक्षण यह है कि इसमें प्यास अधिक लगने लगती है, भूख भी अधिक लगती है। चालीस वर्ष की आयु के बाद निरंतर मधुमेह की जाँच करवाते रहना चाहिए।
डायबिटीज़ होने के बाद सर्वप्रथम क्या करना चाहिए?
डायबिटीज़ होने के पश्वात् सबसे पहले तो हमें जीवन शैली में परिर्वतन लाने का प्रयास करना चाहिए। रोजाना कम से कम चार या पांच किलोमीटर सैर अवश्य करें। शुगर की कम मात्रा या हो सके तो बिल्कुल ही प्रयोग ना करें। वसा युक्त व तली हुई वस्तुओं से परहेज करें। साधारण व संतुलित भोजन लेना चाहिए। रोटी बनाते समय आटे को छानना नहीं चाहिए। चौकर हमारे भीतर जा कर ग्लूकोज़ को सोखने में मदद करता है। इससे कैस्ट्रोल को काबू करने में भी बहुत हद तक मदद मिलती है। अगर डयबिटीज़ के कारण मरीज़ की हालत यदि गंभीर हो जाती है तो चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।
इस क्षेत्र में किस प्रकार के चर्म रोग होने की अशंका रहती है?
किसी भी प्रकार का चर्म रोग हो सकता है लेकिन मुख्यत: स्कैबिज़ के होने की अशंका बनी रहती है। यह एक संक्रामक रोग है। एक बार होने पर यह समाज में फैलता ही चला जाता है। इसके फैलने के मुख्य कारण जैसे कि एक दूसरे के कपड़े पहनना, किसी का तौलिया प्रयोग करना, किसी के साथ सोना आदि। इसका मुख्य लक्षण यह है कि यह हमेशा गर्दन से नीचे होता है। अगर समय पर इसका इलाज न करवाया जाएं तो इसकी स्थिति गंभीर हो सकती है।

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