महंगाई की तेज धार , सभी बेकरार
10 फरवरी 2010
प्रस्तुति: डॉ. भरत मिश्र प्राची(प्रैसवार्ता)
केन्द्र सरकार के घोषित तमाम प्रयासों के वावयूद भी महंगाई थमने का नाम नहीं ले रही है। दिन पर दिन बाजार में खाद्य पदार्थो के दाम बढ़ते ही जा रहे है। ऐसा लगने लगा है कि बाजार पर सरकार का अब कोई नियंत्रण ही नहीं रहा। इस बढ़ती जा रही महंगाई के लिए केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को दोषी ठहरा रही तो राज्य सरकार केन्द्र को, आखिर इस तरह के परिवेश के लिए दोषी कौन है ? देश की आम जनता इस तरह के विवाद में न उलझकर, सीधे तौर पर महंगाई से निजात पाना चाहती हैं। केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार, आज बाजार सभी के नियंत्रण से बाहर होता दिखाई दे रहा है, तभी तो महंगाई घटने के बजाय दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। एक तरफ केन्द्र सरकार के आम बजट की चर्चा है तो दूसरी ओर बजट पूर्व पेट्रोलियम पदार्थो की कीमत में वृद्धि किये जाने की वकालत है। इस तरह के प्रारुप पूर्व में भी उभरते रहे है ,जहां बजट पूर्व ही कुछ सामानों के दाम में वृद्धि कर दी जाती है तथा विरोध के बाद बजट में की गई वृद्धि में कुछ कमी कर दी जाती है। इस तरह के दोहरेपन की नीति अपनाकर सरकार सभी को खुश करने का प्रयास करती है। जो केवल सरकार का आम जन के प्रति मात्र छलावा का उभरता स्वरुप है। केन्द्र सरकार ने बजट पूर्व रशोई गैस सिलेंडर की कीमत में 100रु. बढ़ाने के साथ - साथ पेट्रोलियम की कीमत में भी वृद्धि किये जाने की संभावना व्यक्त कर जनमानस के बीच एक हलचल पैदा कर दी है। महंगाई तो पहले से ही काफी बढ़ी हुई है, कम होने का नाम ही नहीं ले रही है, और इधर महंगाई पर चिंतन जारी है। सम्मेलन पर सम्मेलन हो रहे है पर परिणाम शून्य। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का क्रम जारी है। आखिर महंगाई किस तरह नियंत्रित होगी ,इस प्रश्न पर प्राय: सभी मौन है । पक्ष विपक्ष इस मुद्दे पर एक जैसे हो गये है। जमाखोरों मुनाफाखोरों का मनोबल दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है । जिसके कारण बाजार अनियंत्रित हो चले है। जहां गरीब का जीना दुर्भर हो गया है।आज अमीर एवं गरीब के बीच का फासला पहले से काफी बढ़ चला है । अमीर और अमीर होता जा रहा है तो गरीब और ज्यादा गरीब। गरीब को राहत देने के नाम पर केन्द्र एवं राज्य सरकारों के बीच तरह तरह की योजनाओं के माध्यम से प्रतिस्पद्र्धा का दौर जहां जारी है वहीं महंगाई को कम करने का सार्थक प्रयास कहीं नजर नहीं आता। जिसे मात्र छलावा ही कहा जा सकता है। इस तरह के उभरते परिवेश में देश का मध्यमवर्गीय सबसे ज्यादा परेशान देखा जा सकता है। जहां ऐसे वेतनभोगी लोगों की संख्या बहुत ही कम है, जो आज के बाजार का सामना कर सके। इस तरह के लोगों की दिनचर्या के आधार पर यहां के आम आदमी के जीवन की दिनचर्या की तुलना कभी भी नहीं की जा सकती। आज भी देश की अधिकांश आबादी अल्प वेतनभोगी है जो आज के बाजार में कतई टिक नहीं सकती। वैसे भी वेतनभोगी का वेतन जिस अनुपात में बढ़ता दिखाई देता, बाजार भाव कई गुणा बढ़ जाता है तथा सहन सभी को करना पड़ता है। इधर सरकार द्वारा आम बजट से पूर्व ही पेट्रोलियम पदार्थ में की जाने वाली वृद्धि का भी सीधा प्रभाव बाजार पर ही पड़ता है जिससे सामानों के दाम और बढ़ जाते है। आज बढ़ती जा रही महंगाई से सभी परेशान है। दाल , सब्जी, आनाज के भाव आसमान छूने लगे है। इस बढ़ते भाव के आगे हर तरह की कमाई अब छोटी लगने लगी है। एक समय ऐसा था कि संकट काल में आम आदमी दाल- रोटी खाकर अपना गुजारा कर लेता था और आज जब दाल ही 100रु. के करीब हो चली है जो आम आदमी कैसे वसर कर सकेगाा , विचार किया जा सकता है। आज ऐसा कोई सामान नहीं जिसपर सरकार टैक्स नहीं लेती हो। सामान उत्पादन से लेकर बाजार एवं आम आदमी तक पहुंचने तक टैक्स बार बार देना पड़ता है । यह भी महंगाई बढऩे का एक प्रमुख कारण हैं जिसे प्राय: नगण्य समझा जाता है। दिन पर दिन बढ़़ते जा रहे नये नये टैक्स भार तले आम जन जीवन दबता जा रहा हैं। जनप्रतिधियों का बदला स्वरुप जहां आज ये जन नेता न होकर राजनेता हो चले है , जिनकी सुख सुविधाएं दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। ये आज की महंगाई में चार चांद लगा रहे है । जहां बढ़ती जा रही महंगाई के प्रति यदि सही मायने में उन्हें जरा सी भी चिन्ता होती तो देश में नये नये टैक्स का स्वरुप उभर कर सामने नहीं आता , जिनपर इन सबकी सुख सुविधाएं निर्भर होती है। आज की बढ़ती जा रही महंगाई से निजात पाने के लिये सबसे पहले जरूरी है कि बढ़ते हुए टैक्स के दर को कम किया जाय । बाजार को मुनाफखोरों के चंगुल से बचाया जायं। सरकारी तौर पर सामानों के भाव बढऩे की कभी घोषणएं न की जाय । वेतन के अनुपात को बाजार भाव के अनुरुप इस तरह रखा जाय जिससे बाजार भाव पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। हर स्तर पर अनावश्यक खर्च में कटौती की जाय । एक दूसरे पर दोषारोपड़ की प्रकिया को रोककर बढ़ती जा रही महंगाई को रोके जाने की दिशा में आवश्यक कदम उठाए जाय। तभी महंगाई की तेज धार से सभी को बचाया जा सकता है।