सिरसा में मनोविज्ञान पर वेबवार्ता कार्यक्रम आयोजित
05 फरवरी 2010
मनोविज्ञान क्या है?
मनोविज्ञान का यह अर्थ कतई नहीं है कि कोई भी मनोवैज्ञानिक किसी भी व्यक्ति का चेहरा देख कर उसके बारे में बहुत कुछ बता सकता है। मनोविज्ञान भी एक विज्ञान है। मनुष्य के व्यवहार और उसके मानसिक कार्य की वैज्ञानिक जानकारी और उनके अध्ययन को ही मनोविज्ञान कहते हैं। प्राचीन दार्शनिक थेल्स ने साइके नामक शोध को पहले आत्मा के लिए और फिर बाद में मन के लिए प्रयोग किया। इनके बाद चौदह सौ नब्बे के करीब एक दार्शनिक रूडोल्फ ने मनोवैज्ञानिक शोध बनाया। लंबे समय तक इसे आत्मा के अध्ययन के रूप में जाना जाता रहा। कालांतर में यह अवधारण भी बदली । आज मनोविज्ञान को मानव के व्यवहार के अध्ययन के रूप में मान्यता है।
मनोविज्ञान में क्या बदलाव आए हैं?
प्राचीन समय में मनोविज्ञान को आत्मा का विज्ञान माना जाता था। दार्शनिक कहते थे कि आत्मा होती है। परन्तु जब वैज्ञानिको ने शोध आरंभ किया तो वे आत्मा को देख नही पाए। विज्ञान कहती है कि जो प्रत्यक्ष दिखे उस को ही मानें। उसकेे बाद मनोविज्ञान को मन का और फिर चेतना का विज्ञान माना गया। लगभग सोलह सौ साल पहले वैज्ञानिक और दार्शनिको ने आपस में विचार करने के बाद मनोविज्ञान को मनुष्य के व्यवहार का विज्ञान माना।
मनोविज्ञान का मानव जीवन में क्या उपयोग है?
अगर हमे किसी क्षेत्र के बारे में पूर्ण रूप से ज्ञान है तो हम उस क्षेत्र में बहुत अच्छी तरह कामयाब हो सकते हैं। मनुष्य के व्यवहार की समझ विकसित होने पर जीवन की विभिन्न जटिल स्थितियोंं से निपटने में मनोवैज्ञानिक अध्ययन उसके काम आ सकते हैं। मनोविज्ञान मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारने में मदद करता है। आज के युग में हमारे जीवन में मनोविज्ञान का दखल इतना बढ गया है कि हर शिक्षण संस्थान में मनोवैज्ञानिक नियुक्त किए जाते हैं। पश्चिमी देशों में तो पारिवारिक चिकित्कों की तरह लोग निजी मनोवैज्ञानिक भी रखते हैं।
तनाव को किस दृष्टि से देखा जाए?
तनाव के प्रति नजरिया बदलना होगा। जीवन में तनाव की न्यूनतम मात्रा तरक्की के लिए आवश्यक है। सितार के तारों में तनाव न हो तो संगीत नहीं निकलेगा यह तय है। जीवन में गति व लय लाने में तनाव मददगार हो सकता है। मगर एक सीमा से ज्यादा तनाव तन-मन दोनों के लिए घातक भी हो सकता है। इसलिए तनाव प्रबंधन के गुर सीखने की आवश्यकता है।
प्रस्तुति:प्रवीण कुमार व आयुष्मान
मनोविज्ञान मानव के व्यवहार का अध्ययन है। यह किसी भी व्यक्ति के जीवन को अधिक सकारात्मक, आनंददायी और उपयोगी बनाने में खासा मददगार हो सकता है। यह एक भ्रांति ही है कि मनोवैज्ञानिक की मदद केवल पागल व्यक्ति के इलाज के लिए ही ला जाती है। यह कहना है जाने-माने मनोवैज्ञानिक और नेशनल कालेज में मनोविज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर रवींद्र पुरी का। सामुदायिक रेडियो के कार्यक्रम हैलो सिरसा में केंंद्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान के साथ बातचीत में उन्होंने बताया कि मनोविज्ञान अब सार्थक व सकारात्मक जीवन जीने का विज्ञान बन चुका है। मनोवैज्ञानिक बगैर किसी औषधि के मनोदशा को दुरूस्त करने का मार्ग दिखाते हैं। यह मनोचिकि त्सा से भिन्न है चूंकि मनोचिकित्सक दवाओं से मरीज की मदद करते हैं। पश्चिमी देशों में तो प्रत्येक विद्याालय में मनोवैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त होतें हैं जो विद्यार्थियों का समय सयम पर मार्गदर्शन करते रहते हैं। भारत में अभी यह प्रचलन नया है और चुनिंदा स्कूलों में ही ऐसे विशेषज्ञों की सेवाएं ली जा रही हैं। अभिभावकों को चाहिए कि वे स्कूल संचालकों पर मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों की सेवाएं लेने के लिए दबाव बनाएं। प्रस्तुत है इस वार्तालाप के संपादित अंश :मनोविज्ञान क्या है?
मनोविज्ञान का यह अर्थ कतई नहीं है कि कोई भी मनोवैज्ञानिक किसी भी व्यक्ति का चेहरा देख कर उसके बारे में बहुत कुछ बता सकता है। मनोविज्ञान भी एक विज्ञान है। मनुष्य के व्यवहार और उसके मानसिक कार्य की वैज्ञानिक जानकारी और उनके अध्ययन को ही मनोविज्ञान कहते हैं। प्राचीन दार्शनिक थेल्स ने साइके नामक शोध को पहले आत्मा के लिए और फिर बाद में मन के लिए प्रयोग किया। इनके बाद चौदह सौ नब्बे के करीब एक दार्शनिक रूडोल्फ ने मनोवैज्ञानिक शोध बनाया। लंबे समय तक इसे आत्मा के अध्ययन के रूप में जाना जाता रहा। कालांतर में यह अवधारण भी बदली । आज मनोविज्ञान को मानव के व्यवहार के अध्ययन के रूप में मान्यता है।
मनोविज्ञान में क्या बदलाव आए हैं?
प्राचीन समय में मनोविज्ञान को आत्मा का विज्ञान माना जाता था। दार्शनिक कहते थे कि आत्मा होती है। परन्तु जब वैज्ञानिको ने शोध आरंभ किया तो वे आत्मा को देख नही पाए। विज्ञान कहती है कि जो प्रत्यक्ष दिखे उस को ही मानें। उसकेे बाद मनोविज्ञान को मन का और फिर चेतना का विज्ञान माना गया। लगभग सोलह सौ साल पहले वैज्ञानिक और दार्शनिको ने आपस में विचार करने के बाद मनोविज्ञान को मनुष्य के व्यवहार का विज्ञान माना।
मनोविज्ञान का मानव जीवन में क्या उपयोग है?
अगर हमे किसी क्षेत्र के बारे में पूर्ण रूप से ज्ञान है तो हम उस क्षेत्र में बहुत अच्छी तरह कामयाब हो सकते हैं। मनुष्य के व्यवहार की समझ विकसित होने पर जीवन की विभिन्न जटिल स्थितियोंं से निपटने में मनोवैज्ञानिक अध्ययन उसके काम आ सकते हैं। मनोविज्ञान मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारने में मदद करता है। आज के युग में हमारे जीवन में मनोविज्ञान का दखल इतना बढ गया है कि हर शिक्षण संस्थान में मनोवैज्ञानिक नियुक्त किए जाते हैं। पश्चिमी देशों में तो पारिवारिक चिकित्कों की तरह लोग निजी मनोवैज्ञानिक भी रखते हैं।
तनाव को किस दृष्टि से देखा जाए?
तनाव के प्रति नजरिया बदलना होगा। जीवन में तनाव की न्यूनतम मात्रा तरक्की के लिए आवश्यक है। सितार के तारों में तनाव न हो तो संगीत नहीं निकलेगा यह तय है। जीवन में गति व लय लाने में तनाव मददगार हो सकता है। मगर एक सीमा से ज्यादा तनाव तन-मन दोनों के लिए घातक भी हो सकता है। इसलिए तनाव प्रबंधन के गुर सीखने की आवश्यकता है।