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धड़ल्ले से बिक रही है प्रतिबंधित दवाईयां

05 फरवरी 2010
सिरसा(प्रैसवार्ता) स्थानीय शहर में ही नहीं, बल्कि देश-प्रदेश के अन्य दवाई बाजारों में ऐसी दवाईयां धड़ल्ले से बिक रही हैं, जिनके खतरनाक कुप्रभावों की वजह से विश्व के कई विकसित देशों ने वर्षों पहले इनकी बिक्री व प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि देश भर में दवाईयों के हो रहे करीब बीस हजार करोड़ रुपये के व्यापार में ऐसी प्रतिबंधित दवाईयों का हिस्सा एक हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा है। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार डायरिया रोग के लिए गोली के रूप में दी जाने वाली दवाई कुइनायडोक्लोर के प्रभाव से व्यक्ति अंधा भी हो सकता है और इसी वजह से इसके प्रयोग पर डेनमार्क, जापान, अमेरिका, यूरोप के अन्य देशों में पिछले दो दशक से प्रतिबंध लगा हुआ है, परन्तु भारत में यह दवाई ऐंटरकुइनोल के रूप में बेची जा रही है। गोली, टीके व सिरप के रूप में मिलने वाली दवाई क्लोरोफैनिकोल कुछ वर्ष पूर्व तक टाईफाईड से प्रभावित बच्चों को दी जाती रही हैं, लेकिन इसके प्रयोग से बच्चों में रक्त की कमी की समस्या सामने आने से यूरोप, यू.एस.ऐ., जर्मनी, हालैंड, जापान, कोरिया व फिलीपाईस इत्यादि देशों ने इसकी बिक्री पर रोक लगा दी थी, परन्तु भारत में यह दवाई क्लोरोमाईस्टिन व परैक्सीन मार्के के नाम से खूब बिक रही है। सूत्रों के मुताबिक विश्व में हुई खोज के अनुसार कुइनोलोन ग्रुप की दवाईयां बच्चों की हड्डियों के विकास पर कुप्रभाव डालती है, जिस कारण कई देशें में 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों व किशोरों के लिए इस दवा के प्रयोग की मनाही है, लेकिन भारत वर्ष में इसकी बिक्री व प्रयोग पर कोई अंकुश नहीं है। इससे भी खतरनाक दवा सिजाप्राइड है, जो किसी समय पाचन प्रणाली को दुरुस्त रखने के लिए दी जाती थी, लेकिन जल्दी में ही इस दवाई के न सिर्फ चमड़ी पर ही बुरे प्रभाव नोट किये गये, बल्कि यह 50 प्रतिशत केसों में मौत के अवसर भी पैदा करती है। इसी प्रकार दर्द से राहत दिलवाने के लिए प्रयोग होने वाली गोली निमोस्लाइड किडनी को काफी हद तक क्षतिग्रस्त कर सकती है, लेकिन इन दवाईयों पर अब तक किसी भी प्रकार की रोक नहीं लग पाई है।

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