सिटीकिंग परिवार में आपका हार्दिक स्वागत है। सिटीकिंग परिवार आपका अपना परिवार है इसमें आप अपनी गजलें, कविताएं, लेख, समाचार नि:शुल्क प्रकाशित करवा सकते है तथा विज्ञापन का प्रचार कम से कम शुल्क में संपूर्ण विश्व में करवा सकते है। हर प्रकार के लेख, गजलें, कविताएं, समाचार, विज्ञापन प्रकाशित करवाने हेतु आप 098126-19292 पर संपर्क करे सकते है।

BREAKING NEWS:

पद पर रहते हुए भी पार्षद, सरपंच व पंच नहीं कहला रही महिलाएं

05 फरवरी 2010
बठिण्डा(प्रैसवार्ता) पंजाब राज्य के बठिण्डा जिला सहित कई अन्य जिलों में निर्वाचित महिला पार्षद, सरपंच व पंच विजयी होने उपरांत भी स्वयं को पार्षद, सरपंच या पंच कहलाने का गौरव प्राप्त नहीं कर पा रही है, क्योंकि उनके पति, ससुर, जेठ व देवर ही पंच, सरपंच व पार्षद कहलाते हैं। ''प्रैसवार्ता" द्वारा एकत्रित किये गये विवरण मुताबिक सरकारी तथा गैर सरकारी, राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं के समारोहों में महिलाएं सरपंच, पंच व पार्षद होने पर भी भाग नहीं लेती, बल्कि उसके परिवारजन ही भागीदारी करते हैं। महिलाएं खेतों, खलिहानों, कारखाने, अस्पताल, स्कूल-कॉलेज, सरकारी कार्यालयों में मजदूर, नर्स, शिक्षक, कल्र्क व अधिकारी के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है, परन्तु ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं का राजनीतिक रूप में उठना स्वीकार नहीं किया गया है। वर्तमान में ग्रामीण समाज का परम्परावादी तथा रूढ़ीवादी दृष्टिकोण यह मानकर चल रहा है कि नारी जीवन की सार्थकता ममतामयी मां, आज्ञाकारी बहू, गुणवती पुत्री तथा पत्नी होने तक ही सीमित है। महिलाओं और उनके कार्यों को पुरूषों की नजर से ही देखने का परिणाम है कि पार्षद, सरपंच या पंच निर्वाचित होने उपरांत भी महिलाओं की चेतना में बदलाव नहीं आया है। पड़ौसी राज्य हरियाणा तथा राजस्थान में तो महिलाएं घूंघट में रहती हैं। जिला बठिण्डा के शहर रामपुरा फूल, तलवंडी साबो सहित कस्बे गोनियाना, संगत, रामा मंडी, भुच्चों के अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों में चुनावी प्रदति अनुसार अनुसूचित, पिछड़ी जाति तथा जनजाति की, जो महिलाएं जन प्रतिनिधी चुनी गई है, उनमें दिहाड़ी मजदूर से लेकर सम्पन्न परिवारों में से हैं, मगर विडम्बना देखिये कि न तो दिहाड़ी मजदूर को पार्षद, सरपंच व पंच कहलाने का अवसर मिला है और न ही कोई सामानय या धनाढ्य परिवार की महिला को पार्षद, सरपंच व पंच कहलवाने का गौरव प्राप्त हुआ है। अधिकांश पार्षद, सरपंच, पंच महिलाएं पूर्ववत: घर-गृहस्थी, कृषि व रोजमरा्र के अन्य कार्य जारी रखे हुए हैं तथा ज्यादातर अपने अधिकारों तथा पंचायती राज के नियमों की जानकारी नहीं रखते। कुछ जन प्रतिनिधी महिलाएं तो अंगूठा टेक हैं-जबकि कुछ के हस्ताक्षर या अंगूठा उनके पति, देवर या जेठ वगैरा लगा देते हैं। कई बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि जब कोई सरकारी, गैर-सरकारी या सामान्य व्यक्ति किसी महिला जन प्रतिनिधी से मिलना चाहे, तो परिवारजन मिलने नहीं देते। कुछ जन प्रतिनिधी महिलाएं जरूर सक्रिय देखी गई है। महिला प्रतिनिधियों की इस दशा का कारण समाज में व्यापक पुरूष प्रधान मानसिकता तो है, परन्तु उनका निरक्षर होना भी एक मुख्य कारण है। महिला प्रतिनिधियों के इस आरोप में भी सत्यता है कि उनके परिवारजन उन्हें आगे नहीं आने देते और न ही बैठकों में भाग लेने देते हैं। यही कारण है कि वह निरंतर पिछड़ रही है। उनका मानना है कि जब तक महिलाएं स्वयं जागृत नहीं होगी, तब तक महिलाओं में चेतना की आशा नहीं की जा सकती, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि राजनीति में महिलाओं का दखल युग-युग से सत्ता में स्थापित पुरूष वर्ग को हजम नहीं होता था, परन्तु अब स्थिति बदल चुकी है। पुरूष प्रधान समाज भले ही महिलाओं को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में न देखता हो, परन्तु वर्तमान में पुरानी परम्पराओं में जरूर बदलाव देखने को मिलने लगा है।

Post a Comment