हरियाणा- जहां फिर मिलेगा-दूध दही का खाना
01 फरवरी 2010
मुजफ्फरनगर(प्रैसवार्ता) दूध-दही के खाने के लिए कभी अपनी विशेष पहचान रखने वाले राज्य हरियाणा में फिर से दूध की नदियां बहने लगेंगी। ''प्रैसवार्ता'' को मिली जानकारी अनुसार मथुरा बेटेनरी कालेज के छात्रों ने ओवम सिक्रोनाईजेशन नामक एक तकनीक तैयार की है, जिससे बांझ पशु भी दूध देने लगेंगे। हस्तिनापुर तथा बावूगढ़ के राजकीय फार्म में इस तकनीक का प्रयोग 70 से 80 प्रतिशत सफल हो चुका है। रिसर्च टीम के मुताबिक ओवम सिक्रोनाईजेशन तकनीक से बांझ पशुओं में रिसेप्टल और ल्यूटेलाईज हारमोन विकसित किये जायेंगे। जिसके चलते ही 11वें दिन पशु हीट में आ सकेंगे। इस तकनीक से पशु को पहले दिन रिसेप्टाल और आठवें दिन ल्यूटेलाईज हारमोन दिये जाते हैं। दसवें दिन पुन: रिसेप्टाल हारमोन की एक डोज दी जाती है और इस उपचार के 11वें दिन पशु गर्भधारण की स्थिति में आ जाते हैं। मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी विक्रम सिंह ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि दो राजकीय फार्मों में 80 पशुओं पर किये गये प्रयोग की तकनीक ओवम सिक्रोनाईजेशन पर खरी उतरी है। बांझपन रहे यह पशु अब दूध दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि मुजफ्फरनगर ब्लॉक के चार पशुओं पर भी रिसेप्टाल और ल्यूटेलाईज हारमोन का परीक्षण किया गया-जिनमें से तीन पशुओं ने न केवल गर्भधारण किया, बल्कि अच्छी मात्रा में दूध भी दिया। यह सभी पशु ऐसे थे, जिन्होंने पहली बार बच्चा जनने उपरांत तीन-चार साल तक गर्भधारण नहीं किया, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि बांझ पशुओं को इससे फायदा होगा। विक्रम सिंह के अनुसार ओवम सिक्रोनाईजेशन में एक पशु पर 11 से 12 सौ रुपये तक खर्च आता है। भविष्य में यह तकनीक दूध और इससे निर्मित उत्पादों की आसमान छू रही कीमतों से राहत दिला सकेगी।
मुजफ्फरनगर(प्रैसवार्ता) दूध-दही के खाने के लिए कभी अपनी विशेष पहचान रखने वाले राज्य हरियाणा में फिर से दूध की नदियां बहने लगेंगी। ''प्रैसवार्ता'' को मिली जानकारी अनुसार मथुरा बेटेनरी कालेज के छात्रों ने ओवम सिक्रोनाईजेशन नामक एक तकनीक तैयार की है, जिससे बांझ पशु भी दूध देने लगेंगे। हस्तिनापुर तथा बावूगढ़ के राजकीय फार्म में इस तकनीक का प्रयोग 70 से 80 प्रतिशत सफल हो चुका है। रिसर्च टीम के मुताबिक ओवम सिक्रोनाईजेशन तकनीक से बांझ पशुओं में रिसेप्टल और ल्यूटेलाईज हारमोन विकसित किये जायेंगे। जिसके चलते ही 11वें दिन पशु हीट में आ सकेंगे। इस तकनीक से पशु को पहले दिन रिसेप्टाल और आठवें दिन ल्यूटेलाईज हारमोन दिये जाते हैं। दसवें दिन पुन: रिसेप्टाल हारमोन की एक डोज दी जाती है और इस उपचार के 11वें दिन पशु गर्भधारण की स्थिति में आ जाते हैं। मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी विक्रम सिंह ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि दो राजकीय फार्मों में 80 पशुओं पर किये गये प्रयोग की तकनीक ओवम सिक्रोनाईजेशन पर खरी उतरी है। बांझपन रहे यह पशु अब दूध दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि मुजफ्फरनगर ब्लॉक के चार पशुओं पर भी रिसेप्टाल और ल्यूटेलाईज हारमोन का परीक्षण किया गया-जिनमें से तीन पशुओं ने न केवल गर्भधारण किया, बल्कि अच्छी मात्रा में दूध भी दिया। यह सभी पशु ऐसे थे, जिन्होंने पहली बार बच्चा जनने उपरांत तीन-चार साल तक गर्भधारण नहीं किया, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि बांझ पशुओं को इससे फायदा होगा। विक्रम सिंह के अनुसार ओवम सिक्रोनाईजेशन में एक पशु पर 11 से 12 सौ रुपये तक खर्च आता है। भविष्य में यह तकनीक दूध और इससे निर्मित उत्पादों की आसमान छू रही कीमतों से राहत दिला सकेगी।