आस्था- जहां घास खाने से होते हैं-गुनाह माफ
01 फरवरी 2010
कुल्लू(प्रैसवार्ता) हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जनपद की सैंज, बंजार, गुणेशी, गडसा, भूंतर आदि क्षेत्रों में सदियों में एक परम्परा चली आ रही है-जहां अपनी भूल-चूक की माफी मांगने पर लोग देवता से क्षमा याचना के लिए घास खाते हैं। ''घाह खाऊ'' नामक एक प्रथा की जानकारी देते हुए किशोर राणा ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि देव समाज के लोग देवता से माफी मांगने का सबसे उत्तम उपाय इसे मानते हैं और श्रद्धालुओं की मान्यता है कि देवता उन्हें तुरन्त क्षमा कर देते हैं। शांघड़ी देवता के पुजारी भागीरथ ने ''प्रैसवार्ता" से कहा कि सूखी घास जबान पर रखकर क्षमा याचना की जाती है और घास खाता देखकर देवता क्षमा दान कर देते हैं। देवताओं के कोप परिवार में कलह, रोग, आर्थिक नुकसान इत्यादि कर देते हैं। घाटी क्षेत्र में यह परम्परा सदियों से चली आ रही है और लोग भी अपने प्रायश्चित करने का इसे सबसे बढिय़ा तरीका मानते हैं।
कुल्लू(प्रैसवार्ता) हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जनपद की सैंज, बंजार, गुणेशी, गडसा, भूंतर आदि क्षेत्रों में सदियों में एक परम्परा चली आ रही है-जहां अपनी भूल-चूक की माफी मांगने पर लोग देवता से क्षमा याचना के लिए घास खाते हैं। ''घाह खाऊ'' नामक एक प्रथा की जानकारी देते हुए किशोर राणा ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि देव समाज के लोग देवता से माफी मांगने का सबसे उत्तम उपाय इसे मानते हैं और श्रद्धालुओं की मान्यता है कि देवता उन्हें तुरन्त क्षमा कर देते हैं। शांघड़ी देवता के पुजारी भागीरथ ने ''प्रैसवार्ता" से कहा कि सूखी घास जबान पर रखकर क्षमा याचना की जाती है और घास खाता देखकर देवता क्षमा दान कर देते हैं। देवताओं के कोप परिवार में कलह, रोग, आर्थिक नुकसान इत्यादि कर देते हैं। घाटी क्षेत्र में यह परम्परा सदियों से चली आ रही है और लोग भी अपने प्रायश्चित करने का इसे सबसे बढिय़ा तरीका मानते हैं।