राठी ने की मायावती हार प्रकरण की कड़ी निंदा
20 मार्च 2010
सिरसा: बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश महासचिव मूलचंद राठी ने बसपा सुप्रीमो एवं उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के हार प्रकरण पर तीखी प्रतिक्रिया की है। यहां जारी एक बयान में श्री राठी ने कहा कि मायावती द्वारा अपने कार्यकर्ताओं की ओर से सम्मान स्वरूप पहनाए गए हार पर विभिन्न दलों के नेताओं के पेट में बल पड़े हुए हैं लेकिन जब कांग्रेस के नेता मंच पर नोटों के हार पहनते हैं तो कोई कुछ क्यों नहीं बोलता। उन्होंने कहा कि नेताओं को मंच पर सोने-चांदी के मुकुट, हुक्के और तलवारें भेंट की जाती हैं। करेंसी नोटों से तोला जाता है, सिक्कों से वजन किया जाता है क्या तब वह भारतीय करंसी का अपमान नहीं होता। विवाह समारोहों से लेकर सेवानिवृत्ति समारोहों में क्या लोग नोटों की मालाएं नहीं पहनते। क्या यह धन का बेहूदा प्रदर्शन नहीं है। समारोहों में नोट लुटाए जाते हैं, नृत्यांगनाओं के पांवों में फेंके जाते हैं तब किसी का ध्यान इस ओर क्यों नहीं गया। नकली नोटों से भारत की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने की कोशिशें करने वालों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई और आम आदमी तो क्या बैंकों में गंदे और कटे फटे नोटों पर कभी आरबीआई ने तवज्जो क्यों नहीं दी। बसपा नेता ने कहा कि असल में समस्या नोटों की माला की नहीं बल्कि मनुवादी सोच की है। सिर्फ उस तकलीफ की है जो एक दलित की बेटी के मुख्यमंत्री बनने पर किसी भी मनुवादी को हो सकती है अन्यथा जब पूरे देश में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू की अनेकानेक मूर्तियां लगाई गईं, उनके नाम पर स्मारक बनाए गए और करोड़ों रुपया खर्च किया गया। उनके नाम से योजनाएं शुरू हुईं तब किसी ने कुछ क्यों नहीं बोला। आज रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी कार्रवाई करने को आमादा दिखाई देता है और बसपा के सिंबल तक को रद्द किए जाने की मांगें उठ रही हैं। श्री राठी ने कहा कि मायावती दलितों के सम्मान की प्रतीक है और बसपा के प्रतीक को रद्द करने की बात तो दूर, आंख उठाकर देखने को भी बसपा का कोई कार्यकर्ता बर्दाश्त नहीं कर सकता।
सिरसा: बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश महासचिव मूलचंद राठी ने बसपा सुप्रीमो एवं उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के हार प्रकरण पर तीखी प्रतिक्रिया की है। यहां जारी एक बयान में श्री राठी ने कहा कि मायावती द्वारा अपने कार्यकर्ताओं की ओर से सम्मान स्वरूप पहनाए गए हार पर विभिन्न दलों के नेताओं के पेट में बल पड़े हुए हैं लेकिन जब कांग्रेस के नेता मंच पर नोटों के हार पहनते हैं तो कोई कुछ क्यों नहीं बोलता। उन्होंने कहा कि नेताओं को मंच पर सोने-चांदी के मुकुट, हुक्के और तलवारें भेंट की जाती हैं। करेंसी नोटों से तोला जाता है, सिक्कों से वजन किया जाता है क्या तब वह भारतीय करंसी का अपमान नहीं होता। विवाह समारोहों से लेकर सेवानिवृत्ति समारोहों में क्या लोग नोटों की मालाएं नहीं पहनते। क्या यह धन का बेहूदा प्रदर्शन नहीं है। समारोहों में नोट लुटाए जाते हैं, नृत्यांगनाओं के पांवों में फेंके जाते हैं तब किसी का ध्यान इस ओर क्यों नहीं गया। नकली नोटों से भारत की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने की कोशिशें करने वालों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई और आम आदमी तो क्या बैंकों में गंदे और कटे फटे नोटों पर कभी आरबीआई ने तवज्जो क्यों नहीं दी। बसपा नेता ने कहा कि असल में समस्या नोटों की माला की नहीं बल्कि मनुवादी सोच की है। सिर्फ उस तकलीफ की है जो एक दलित की बेटी के मुख्यमंत्री बनने पर किसी भी मनुवादी को हो सकती है अन्यथा जब पूरे देश में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू की अनेकानेक मूर्तियां लगाई गईं, उनके नाम पर स्मारक बनाए गए और करोड़ों रुपया खर्च किया गया। उनके नाम से योजनाएं शुरू हुईं तब किसी ने कुछ क्यों नहीं बोला। आज रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी कार्रवाई करने को आमादा दिखाई देता है और बसपा के सिंबल तक को रद्द किए जाने की मांगें उठ रही हैं। श्री राठी ने कहा कि मायावती दलितों के सम्मान की प्रतीक है और बसपा के प्रतीक को रद्द करने की बात तो दूर, आंख उठाकर देखने को भी बसपा का कोई कार्यकर्ता बर्दाश्त नहीं कर सकता।