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डबवाली अग्रिकांड पीडितों को झेलनी पडी अनेक समस्याएं

16 मार्च 2010
सिरसा। डबवाली अग्रिकांड पीडि़तों ने जितनी पीड़ा करीब चौदह बरस पुराने उस भयावह हादसे में अपने परिजनों को गंवाने के कारण झेली थी,उतना ही असह्य वेदना उन्हें अग्रिकांड के बाद उपचार और मुआवजा पाने की प्रक्रिया में भी झेलनी पड़ी। यह कहना है डबवाली फायर विक्टिम एसोसिएशन के महासचिव विनोद बंसल का। बंसल चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो पर हैलो सिरसा कार्यक्रम में केंद्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान के साथ बातचीत कर रहे थे। विनोद बंसल की पत्नी और दो बच्चों को 1996 में राजीव मैरिज पैलेस में डीएवी सेंटेनरी स्कूल के समारोह के दौरान लगी आग लील गई थी और वे स्वयं भी इस हादसे में बुरी तरह झुलस गए थे। बंसल ने कहा कि अग्रिकांड के बाद सब तरफ से सहानुभूति के स्वरों और मदद के आश्वासनों की जो बोछार हुई उसमें अनेक वादे झूठे निकले। हादसे में मारे गए लोगों और घायलों के परिजनों को अपने उपचार को सरकार के खर्च पर जारी रखवाने और मुआवजा प्राप्त करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा। बकौल बंसल मुआवजा पाने की लड़ाई अब तक किसी ठोस मुकाम पर नहीं पंहुची है चूंकि डीएवी मैनेजमेंट अपने हिस्से का मुआवजा अदा करने के बजाय उसे कम करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय पंहुच गई है। विनोद बंसल कहते हैं कि यह सुकून की बात है कि पंजाब व हरियाणा हाइकोर्ट से मुआवजे संबंधी निर्णय आने के बाद हरियाणा सरक ार ने मुआवजे में उसका अंशदान डबवाली की अदालत में जमा करवा दिया है। चूंकि डीएवी प्रबंधन इस मुआवजे को कम कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय चला गया था इसलिए पीडि़तों में इस मामले के और लटकने का अंदेशा पैदा हो गया था। मगर कल ही सर्वोच्च न्यायालय ने डीएवी की अपील पर सुनवाई करते हुए मामले को आगे बढ़ाने से पहले कम से कम दस करोड़ रूपये डबवाली की अदालत में जमा कराने के निर्देश दिए हैं। यह अपने आप में राहत देने वाली खबर है। बंसल कहते हैं कि इस सारे मामले में डीएवी प्रबंधन का रवैया बहुत कष्टदायक रहा। प्रारंभ में उन्होंने घोषणा की थी कि पीडि़तों के बच्चों को स्कूल में निशुल्क पढ़ाया जाएगा। मगर कालांतर में उन्होंने उनसे फीस वसूलना प्रारंभ कर दिया। इस से आहत हो कर पीडितों को हाइकोर्ट जाना पड़ा था और बाद में अदालत ने ही ऐसे बच्चों से वसूली गई फीस वापस करने के निर्देश देकर पीडि़तों को कुछ राहत दी थी। बकौल बंसल डबवाली अग्रिकांड पीडि़तों को जिस तरह उपचार से लेकर मुआवजे और बच्चों की फीस तक के मामले में बारंबार अदालत जाना पड़ा उससे हमारी व्यवस्था की संवेदनहीनता साफ जाहिर होती है। डबाली नगर पालिका में पार्षद विनोद बंसल कहते हैं कि पीडि़तों को सरकार की ओर से किए गए वादों में कुछ पूरे हुए हैं जबकि कई मामलों में आज तक कोई प्रगति नहीं हुई। बंसल का दावा है कि हादसे के बाद प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव डबवाली आए थे। उन्होंने ऐलान किया था कि डबवाली में पीडि़तों की सुविधा के लिए सौ बिस्तर का अस्पताल बनाया जाएगा। मगर लंबी जद्दोजहद के बाद जब अस्पताल बनने की बात आगे बढ़ी तो इसे तीस बिस्तर के अस्पताल में तब्दील कर दिया गया। अंतत: जब यह बनकर तैयार हुआ तो डबवाली को मिला महज एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र। मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा इसे अपग्रेड कर साठ बिस्तर के अस्पताल में परिवर्तित करने की घोषणा की जा चुकी है मगर अभी इस दिशा में काम होना बाकी है। अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने घायलों और मृतकों के आश्रितों के लिए सरकारी नौकरी का आश्वासन दिया था। मगर इस वादे को भी आज तक अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है। अग्रिकांड पीडि़तों की आवश्यकताओं पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आग में झुलसे बहुत के पीडि़तों की प्लास्टिक सर्जरी हुई है। उन्हें लगातार फिजियोथिरैपिस्ट व अन्य चिकित्सा विशेषज्ञों की सेवाओं की दरकार होती है। रेडक्रॉस की ओर से फिजियोथिरैपी यूनिट डबवाली में स्थापित अवश्य की गई थी मगर उसे एकाएक सिरसा स्थानांतरित कर दिया गया। अग्रिकांड पीडि़तों के लिए डबवाली में कोई सरकारी मनोचिकित्सक तैनात नहीं है जबकि हादसे के डेढ़ दशक बाद भी ऐसे बहुत से लोग हैं जो इस हादसे के मानसिक झटके से पूरी तरह उबर नहीं पाए हैं।

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