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जीवन और परमात्मा का पुनर्मिलन महात्मा से ही संभव

21 मार्च 2010
हिसार:श्रीरामलीला कमेटी के तत्वावधान में झूथरा धर्मशाला में चल रही नवदिवसीय कथा के पांचवें दिन संत श्री प्रीतमदास रामायणी ने श्रीराम विवाह का वर्णन करते हुए कहा कि श्रीराम चन्द्र जी ने सीता स्वयंव में धनुष का खंडन करके जानकी का वर्णन करते हैं। धनुष को रामायण में अहंकार का प्रतीक बताया है और जब तक जीवन में अहंकार का खंडन नहीं होगा तब तक शांति रूपी सीता की प्राप्ति नहीं हो पाती, इसलिए साधक को चाहिए कि वह शांति को प्राप्त करने के लि पहले अपने जीवन अभिमान मिटाए। संत प्रीतम दास रामायणी ने कहा कि जीवात्मा परमात्मा का विशुद्ध अंग है। सहज सुख स्वरूप है। फिर यह दुखी क्यों है। उसका कारण यही है वह अपने सुख स्वरूप परमात्मा को भूलकर दुख स्वरूप संसार से सम्बन्ध बना लिया है। जीवात्मा और परमात्मा का पुनर्मिलन किसी महात्मा से ही सम्भव है। उसी को गुरू कहते हैं। सद्गुरू देव की जब कृपा हो जाती है तो गुरूदेव जीव के ऊपर जो अविज्ञा जनित अज्ञान का परदा पड़ा हुआ है। उसको अपना दिव्य ज्ञान देकर अज्ञान का परदा हटाकर जीवात्मा और परमात्मा का एकाकार करके जीवात्मा को कृतार्थ कर देते हैं। कल की कथा में हनुमान दास, रामेश्वर, सुरेश, अजय, डॉ. अजय गुप्ता, रामनिवास गोयल, माल्यार्पण कर स्वामी जी का अभिनंदन किया। इस अवसर पर श्रीराम लीला कमेटी कटला के प्रधान विनोद गुप्ता, महामंत्री सजन गुप्ता, कोषाध्यक्ष सनत बिंदल, जनक गुप्ता, सुरेश बिंदल, पवन लोहिया, वीरभान बंसल, बजरंग सिंगल, अश्वनी शर्मा, मंजरी, ललिता राजवंशी, अनिता कोहली, अजय महाजन, पे्रमलता आदि उपस्थित थे। रात्री 10 बजे विराट कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया, जिसमें कविओं ने अपनी कविताओं से दर्शको ंको भाव-विभोर कर दिया। हास्य रस, वीर रस, की कविताओं से कविओं ने समां बांधा। सम्मेलन में मशहूर कवि लाजपत राय विकट, राजेश जैन चेतन, राजेन्द्र त्रिपाटी, रमेश शर्मा, हरमिन्दर पाल, राजेन्द्र राजन, चरणजीत चरण, बागी चाचा कविओं ने शिरकत की।

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