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मेहर मित्तल अब भी हास्य से सराबोर

07 अप्रैल 2010
सिरसा(हैलो सिरसा) पंजाबी सिनेमा के प्रख्यात हास्य अभिनेता मेहर मित्तल का कहना है कि उन्होंने करीब साढ़े तीन दशक तक जिस अभिनय कौशल के दम पर पंजाबी सिनेमा के दर्शकों को जमकर गुदगुदाया और हंसाया, वह उन्हें जन्मत: प्राप्त था। उनका मानना है कि उन्होंने वही बातें हास्य में परोसी जो पंजाब के ग्रामीण अंचल में आमजन के मन और जुबान पर बसता है। 75 बसंत देख चुके मित्तल अब भी हास्य से सराबोर हैं और उनके 35 बरस के सिनेमा कॅरियर की अंतिम फिल्म की शूटिंग पूरी हो चुकी है। अभिनय को अलविदा कह चुके मित्तल इन दिनों ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के साथ मिलकर अध्यात्म के प्रचार में जुटे हैं। इसी सिलसिले में सिरसा पधारे मित्तल ने चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो स्टेशन पर हैलो सिरसा कार्यक्रम में केंद्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान और मुकुल मुकेश मोंगा के साथ श्रोताओं से रूबरू हुए। मेहर मित्तल को रेडियो पर खुद से रूबरू पाकर उनके सैकड़ों प्रशंसक टेलीफोन पर कतारबद्ध हो उनसे बतियाने को बेताब हो उठे। मित्तल ने श्रोताओं के सवालों के भी खूब चुटीले अंदाज में जवाब दिए। पंजाब के बठिंडा जिले के एक छोटे से गांव में जन्मे मित्तल ने अपने कॅरियर की शुरुआत एक स्कूल अध्यापक के रूप में की। इसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ में वकालत की और कालांतर में कर सलाहकार के रूप में भी काम किया। मुबई जाकर पंजाबी फिल्मों में काम करने का निर्णय उन्होंने छत्तीस बरस की उम्र में लिया। कुछ नाटकों में उनके काम को देख कर उनके बहुत सारे मित्रों ने मुंबई को रुख करने की सलाह दी। बकौल मित्तल उनके इस निर्णय में भारी जोखिम था। भरी-पूरी गृहस्थी के होते हुए इस आयु में फिल्मों में किस्मत आजमाने के अपने निर्णय को आज भी वे अपने जीवन का सबसे गलत निर्णय करार देते हैं। मित्तल कहते हैं कि अगर प्रभु ने साथ नहीं दिया होता तो मेरा सबकुछ समाप्त हो सकता था। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि मुंबई जाकर उन्होंने जब काम प्रारंभ किया तो देखते देखते प्रभु की कृपा से वे पंजाबी फिल्मों के लिए अपरिहार्य हो गए। उन्होंने कहा कि करीब दस वर्ष को कालखंड तो ऐसा रहा जब एक भी पंजाबी फिल्म उनके बगैर नहीं बनी। उन्होंने बताया कि एकाध निर्माता के साथ तो यह हालत हो गई कि सेंसर से पास होने के बाद उन्हें अपनी फिल्म में मेहर मित्तल को शामिल करने के लिए बदलाव करना पड़ा चूंकि कोई वितरक बिना मित्तल के फिल्म को बाजार में उतारने के लिए तैयार ही नहीं था। केंद्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान के एक प्रश्न के उत्तर में मेहर मित्तल ने बताया कि वे बतौर हास्य अभिनेता अपनी फिल्मों में हीरो से कई गुणा मेहनताना लेते थे चूंकि उस दौर में बगैर हास्य के किसी पंजाबी फिल्म की कामयाबी की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। उन्होंने बताया कि गुजराती समेत कुछ क्षेत्रीय फिल्मों में आज भी यही दशा है जबकि हिंदी सिनेमा में यह सूरतेहाल कभी नहीं पैदा हुआ कि हीरो से अधिक किसी अन्य कलाकार का पारिश्रमिक हो। सिनेमा और टेलीविजन में हास्य के नाम पर फूहड़ता के सवाल पर मेहर मित्तल ने बेबाकी से स्वीकार किया कि द्विअर्थी संवाद बोलने के आरोप खुद उन पर भी खूब लगे। एक फिल्म में उसके नामी प्रोड्यूसर के दबाव में कुछ ऐसे संवाद बोलने की भूल उन्होंने श्रोताओं के सामने कुबूल की जो उन्हें आज भी लगता है कि नहीं बोले जाने चाहिए थे। मगर साथ ही उन्होंने जोड़ा कि उनके डॉयलाग अभद्रता से दूर थे। कभी कभार उनके गलत अर्थ निकाल लिए जाने की संभावना रही होगी मगर अपनी ओर से उन्होंने हमेशा साफ सुथरा हास्य प्रदान करने का प्रयास किया। मित्तल से जब मुंबई में पंहुचने के बाद उनकी कामयाबी का राज पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मुंबई जाकर अक्सर कलाकार वहां की चकाचौंध वाली दुनिया मेंं पथभ्रष्ट होकर रह जाते हैं। मांस-मदिरा-सुंदरी के चक्रव्यूह से बहुत कम लोग बच पाते हैं। मित्तल का दावा है कि उन्होंने मुबई पंहुचने के कुछ समय बाद इन तीनों ही बुराई से कोसों दूर रहने का संकल्प ले लिया था। उनका मानना है कि इस संकल्प ने उनकी कामयाबी में अहम भूमिका अदा की। सिनेमा में कॅरियर बनाने के इच्छुक नौजवानों के लिए मेहर मित्तल का कहना है कि यह डगर संघर्ष की है। जिसमें कई बरस तक वहां संयम के साथ जूझने की क्षमता हो, उन्हीं लोगों को मुंबई का रूख अख्तियार करना चाहिए।

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