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श्रीमद्भागवत सम्पूर्ण काव्य शास्त्र के लक्षणों से युक्त

02 मई 2010
सिरसा(न्यूजप्लॅस) श्री सनातन धर्म सभा सिरसा के तत्वाधान में आयोजित श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञान महायज्ञ के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में कथा करते हुए नैमिषारण्यतीर्थ से पधारे हुए पूज्यपाद दण्डी स्वामी डा. केशवानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि श्रीमद्भागवत तीनों लोकों को पावन करती है और सकलकाव्यलक्षण लक्षित है अर्थात सम्पूर्ण काव्य शास्त्र के लक्षणों से युक्त है। आज के कार्यक्रम में गौरक्षा सेवा में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए जोगेंद्र सिंह एएसआई, फैशनकैम्प वाले जनकराज कार्यक्रम के प्रचार प्रसार में अहम योगदान देने वाले सुनील गावड़ी को सम्मानित किया गया। मुख्य यजमान श्री नागपाल के अतिरिक्त आज के कार्यक्रम में श्री सनातन धर्म सभा, श्री ब्राह्मण सभा के प्रधान आरपी शर्मा, सचिव बजरंग पारीक, सुरेंद्र बंसल, अशोक तलवाडिय़ा, वैद्य महावीर प्रसाद, कुंज बिहारी सर्राफ, सर्वोत्तम शर्मा सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे। इस कथा महायज्ञ का संचालन करने में श्री सनातन धर्म संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य द्रोण प्रसाद कोइराला की भूमिका भी अहम रही। कथा में स्वामी जी ने द्वितीय दिन के प्रथम सत्र में कहा कि परस्त्री के प्रति कुदृष्टि, परम प्रियतम का वियोग एवं गौ बध ये तीन व्यक्ति के तेज को नाश कर देते हैं। अत: अपने इंद्रियों को नियंत्रित करके विश्वास करना चाहिए। विश्वास ही कण-कण से भगवान को प्रगट कर सकता है। परीक्षित राजा के राज्य में सभी प्रजा अनुशाससित है। किसी के घर के दरवाजे में कोई ताला नहीं लगाता, क्योंकि राज स्वयं भी अनुशासित धर्म रक्षक है। धर्म रूपी बैल के सत्ययुग में चारों पैर थे किंतु कलीयुग में धर्मरूपी बैल केवल एक पैर पर स्थित है। वह धर्म का एक पैर है दान। सुख-दु: केवल मन की कल्पना मात्र है। जुआ, शराब, परस्त्री के प्रति कुदृष्टि एवं हिंसा कलियुग के प्रत्यक्ष निवास स्थान है। स्वामी जी ने आगे कथा के प्रसंग में परीक्षित को श्राप तथा मुक्ति के हेतु शुकदेव जी के मुखारबिंद से कथ श्रवण से सम्बंधित कथा सुनाया। उसके पश्चात तृतीय स्कंध के तथा के प्रसंग में दिति कश्यप के पुत्र हिरण्याक्ष का जन्म से सम्बंधित कथा सुनाते हुए जय विजय की कथा की चर्चा की और कहा दिति तात्पर्य भेद दृष्टि है। अदिति का तात्पर्य अभेद दृष्टि है। जहां अभेद दृष्टि होती है वहां भगवान अवतार लेते हैं और जहां भेद दृष्टि होती है वहां राक्षस जन्म लेते हैं।

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