जनता का सामना करने से कतरा रही हजकां
06 May 2010
चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा राज्य के मानचित्र पर कुछ समय पूर्व नजर आने वाली हजकां अपने ही चुने गये विधायकों से राजनीतिक झटका खाकर इस कद्र निराश हुई है, कि जनता दरबार में जाने से कतराने लगी है। मात्र पांच वर्ष पूर्व एक सियासी दल के रूप में प्रकट हुई हजकां को हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में आधा दर्जन विधायक देकर प्रदेश के मतदाताओं को विधानसभा भेजा, परन्तु इनमें से हजकां सुप्रीमो कुलदीप बिश्रोई को छोड़कर सभी पांचों विधायक कांग्रेस में चले गये। इस राजनीतिक झटके ने हजकां के स्वप्र चूर-चूर कर दिये। राज्य के मौजूदा राजनीतिक चित्र पर नजर दौड़ाने से दिखाई देता है, कि हजकां राजय में राजनीतिक रूप से पिछड़ गई है। हजकां ने गठन उपरांत लम्बी-लम्बी डींगे मारने के साथ-साथ अपना राजनीतिक ग्राफ देखने के उद्देश्य से लोकसभा की समस्त सीटों पर अपने प्रत्याशी, उतारे, जिनमें से एक भजन लाल को छोड़कर सभी को पराजय मिली। हजकां भले ही लोकसभा चुनाव में प्रभावी प्रदर्शन न दिखा सकी हो, मगर इनैलो की विजयी रफ्तार को रोकने में पूर्णतया सफल रही। राज्य के विधानसभा चुनावों उपरांत कांग्रेस पार्टी को सत्ता तक पहुंचने के लिए निर्दलीय विधायकों व हजकां विधायकों की पड़ी जरूरत को देखते हुए हजकां सुप्रीमों कुलदीप बिश्रोई ने कांग्रेसी दिग्गजों से सैटिंग व सौदेबाजी के चलते कई दिन तक राजनीतिक नृत्य करते रहे, मगर कांग्रेस को सहयोग देने के बदले मिलने वाले अरमानों पर उस समय पानी फिर गया, जब कुलदीप बिश्रोई को अकेला छोड़कर पांचों विधायक कांग्रेस में चले गये। हजकां सुप्रीमों कुलदीप बिश्रोई को मिले इस राजनीतिक झटके से उभरने का अवसर मिलता, मगर इसी बीच ऐलनाबाद उप चुनाव का बिगुल बच उठा। राजनीतिक सदमा झेल रही हजकां इस उप चुनाव में अपना प्रत्याशी तक उतारने का साहस नहीं जुटा पाई, और ऐसी ही स्थिति 20 मई को होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में देखी जा रही है। जनता का सामना करने से निरंतर घबरा रही हजकां का लोकसभा व विधानसभा चुनावों उपरांत जन समस्या के समाधान को लेकर प्रदर्शन इत्यादि न करना, निरंतर प्रभावी कार्यकत्र्ताओं की अलविदाई, कार्यकत्र्ताओं को स्थानीय निकाय चुनावों में मदद न करने की घोषणा ने हजकां को राज्य के राजनीतिक चित्र से हाशिये पर ला दिया है। विधानसभा सत्र दौरान विधानसभा घेराव का खेल भी टॉय-टॉय फिस होकर रह गया, हालांकि चंडीगढ़ में हजकां नेताओं पर बरसी लाठियों से सहानुभूति लहर बटोरने का प्रयास भी हजकां सुप्रीमों ने किया, मगर उसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली। हजकां नेताओं की यह दलील है, कि पार्टी जन अदालत में जाने की बजाये संगठनात्मक ढांचे की मजबूती को प्राथमिकता दे रही है।
चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा राज्य के मानचित्र पर कुछ समय पूर्व नजर आने वाली हजकां अपने ही चुने गये विधायकों से राजनीतिक झटका खाकर इस कद्र निराश हुई है, कि जनता दरबार में जाने से कतराने लगी है। मात्र पांच वर्ष पूर्व एक सियासी दल के रूप में प्रकट हुई हजकां को हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में आधा दर्जन विधायक देकर प्रदेश के मतदाताओं को विधानसभा भेजा, परन्तु इनमें से हजकां सुप्रीमो कुलदीप बिश्रोई को छोड़कर सभी पांचों विधायक कांग्रेस में चले गये। इस राजनीतिक झटके ने हजकां के स्वप्र चूर-चूर कर दिये। राज्य के मौजूदा राजनीतिक चित्र पर नजर दौड़ाने से दिखाई देता है, कि हजकां राजय में राजनीतिक रूप से पिछड़ गई है। हजकां ने गठन उपरांत लम्बी-लम्बी डींगे मारने के साथ-साथ अपना राजनीतिक ग्राफ देखने के उद्देश्य से लोकसभा की समस्त सीटों पर अपने प्रत्याशी, उतारे, जिनमें से एक भजन लाल को छोड़कर सभी को पराजय मिली। हजकां भले ही लोकसभा चुनाव में प्रभावी प्रदर्शन न दिखा सकी हो, मगर इनैलो की विजयी रफ्तार को रोकने में पूर्णतया सफल रही। राज्य के विधानसभा चुनावों उपरांत कांग्रेस पार्टी को सत्ता तक पहुंचने के लिए निर्दलीय विधायकों व हजकां विधायकों की पड़ी जरूरत को देखते हुए हजकां सुप्रीमों कुलदीप बिश्रोई ने कांग्रेसी दिग्गजों से सैटिंग व सौदेबाजी के चलते कई दिन तक राजनीतिक नृत्य करते रहे, मगर कांग्रेस को सहयोग देने के बदले मिलने वाले अरमानों पर उस समय पानी फिर गया, जब कुलदीप बिश्रोई को अकेला छोड़कर पांचों विधायक कांग्रेस में चले गये। हजकां सुप्रीमों कुलदीप बिश्रोई को मिले इस राजनीतिक झटके से उभरने का अवसर मिलता, मगर इसी बीच ऐलनाबाद उप चुनाव का बिगुल बच उठा। राजनीतिक सदमा झेल रही हजकां इस उप चुनाव में अपना प्रत्याशी तक उतारने का साहस नहीं जुटा पाई, और ऐसी ही स्थिति 20 मई को होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में देखी जा रही है। जनता का सामना करने से निरंतर घबरा रही हजकां का लोकसभा व विधानसभा चुनावों उपरांत जन समस्या के समाधान को लेकर प्रदर्शन इत्यादि न करना, निरंतर प्रभावी कार्यकत्र्ताओं की अलविदाई, कार्यकत्र्ताओं को स्थानीय निकाय चुनावों में मदद न करने की घोषणा ने हजकां को राज्य के राजनीतिक चित्र से हाशिये पर ला दिया है। विधानसभा सत्र दौरान विधानसभा घेराव का खेल भी टॉय-टॉय फिस होकर रह गया, हालांकि चंडीगढ़ में हजकां नेताओं पर बरसी लाठियों से सहानुभूति लहर बटोरने का प्रयास भी हजकां सुप्रीमों ने किया, मगर उसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली। हजकां नेताओं की यह दलील है, कि पार्टी जन अदालत में जाने की बजाये संगठनात्मक ढांचे की मजबूती को प्राथमिकता दे रही है।